आमना बेगम अंसारी : उत्तर प्रदेश में मदरसों के सर्वे को लेकर जारी राजनीति खत्म होने का नाम नहीं ले रही है। जहां एक धड़ा इस सर्वे को सकारात्मक बदलाव लाने वाला कदम बता रहा है, वहीं सांप्रदायिक दृष्टिकोण वाले लोग इसका विरोध कर रहे हैं। असदुद्दीन ओवैसी ने तो इस सर्वे को एक छोटा एनआरसी यानी नेशनल रजिस्टर आफ सिटिजंस करार दिया। उनके जैसे अन्य लोग भी पक्षपाती दृष्टिकोण रखने की वजह से इस सर्वे का विरोध करते दिखते हैं। वे सर्वे के उद्देश्य के बजाय सरकार की नीयत पर सवाल उठा रहे हैं। यह किसी भी पहल को खारिज करने का जाना-पहचाना तरीका है। ऐसा मुख्यतः मुस्लिम समाज के नेताओं के कारण हुआ है, जो अपने समुदाय को केवल वोट बैंक के लिए इस्तेमाल करते हैं और उन्हें सही शिक्षा से दूर रखते हैं। ओवैसी जैसे नेता ऐसी हर किसी सरकारी पहल को मुस्लिम विरोधी तो बता देते हैं, लेकिन यह बताने से इन्कार करते हैं कि उनके अपने चुनाव क्षेत्र यानी हैदराबाद में हर सौ में से 23 लोग गरीब क्यों हैं। यहां उनकी पार्टी ने आठ विधानसभा सीटों में से सात सीटें जीती हैं।

मुसलमानों को ऐसे नेताओं का चयन करना चाहिए, जो जज्बाती भाषणों की जगह जमीनी स्तर पर काम करते हुए उनका भला करें। भलाई के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है समुचित शिक्षा। वास्तव में इसी बात को ध्यान में रखते हुए उप्र सरकार ने राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) की मुस्लिम समुदाय के बच्चों के शिक्षा अधिकार संबंधी एक रिपोर्ट के आधार पर मदरसों का सर्वेक्षण शुरू किया। इसका निर्णय उत्तर प्रदेश के मदरसा बोर्ड ने सर्वसम्मति से लिया।

ध्यान रहे कि अनुच्छेद 15(5) सरकार को ऐसी नीतियां बनाने का अधिकार देता है, जिनके जरिये समाज के पिछड़े वर्ग का उत्थान किया जा सके। इस बात से हम सभी अवगत हैं कि आजादी के 75 वर्षों के बाद भी मुस्लिम समुदाय शिक्षा एवं समृद्धि में काफी पिछड़ा है। ऐसे में मदरसों के सर्वेक्षण का निर्णय पूर्णतः संवैधानिक है। यह मुस्लिम समुदाय के लिए इसलिए हितकारी है, क्योंकि इससे ही उन्हें यह जानकारी मिलेगी कि मदरसे उनके बच्चों के लिए कितने उपयोगी हैं? यदि मदरसा शिक्षा उतनी ही उपयोगी है, जितनी कि उसे मुस्लिम नेता बता रहे हैं तो प्रश्न उठेगा कि क्या वे अपने बच्चों को उनमें पढ़ाते हैं?

किसी भी राष्ट्र के नागरिक उसकी सबसे बड़ी संपत्ति होते हैं। नागरिकों में जागरूकता एवं आर्थिक संपन्नता किसी भी समाज और राष्ट्र की उन्नति के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। यह सब सही शिक्षा से ही संभव है। आज के आधुनिक युग में देश को आगे ले जाने के लिए भावी पीढ़ी को वैसे ही शिक्षित किया जाना चाहिए, जैसे विकसित राष्ट्र कर रहे हैं। राष्ट्र के प्रत्येक नागरिक के लिए शिक्षा की समान व्यवस्था करना सरकार के लिए अनिवार्य है।

पिछले कई वर्षों से मदरसों में शिक्षा पा रहे विद्यार्थियों का आकलन हमें यही बताता है कि मदरसों की तालीम में वह शिक्षा शामिल नहीं है, जो छात्रों को इतना समर्थ बनाए कि वे अपने समाज और साथ ही राष्ट्र की प्रगति में पूर्ण सहयोग दे सकें। मदरसों की शिक्षा प्रणाली की जांच-परख सिर्फ देश के लिए ही नहीं, बल्कि मदरसों में तालीम हासिल कर रहे विद्यार्थियों के लिए भी एक सकारात्मक कदम है। ऐसे किसी सर्वे से ही उन कमियों का पता चलेगा, जिनकी वजह से वहां के विद्यार्थी देश की प्रगति में पूर्ण सहयोग नहीं दे पा रहे और न ही उनका सही से मानसिक विकास हो पा रहा है।

मुस्लिम समुदाय मदरसे की तालीम के कारण ही सामान्य शिक्षा से दूर एवं पिछड़ा है। इसका कारण मदरसों में उस शिक्षा का अभाव है, जो एक आम छात्र मुख्यधारा के शैक्षणिक संस्थानों से प्राप्त करता है। मदरसों से निकले विद्यार्थी मेडिकल, तकनीक एवं सिविल सेवा संस्थानों से दूर दिखते हैं। वहीं दूसरे संस्थानों से निकले छात्र इन क्षेत्रों में काफी आगे हैं। मुसलमानों में सामान्य शिक्षा की कमी के लिए वह शिक्षा प्रणाली जिम्मेदार है, जो केवल धार्मिक शिक्षा को ही प्राथमिकता देती है। आखिर मुस्लिम समुदाय के बच्चों के लिए धार्मिक शिक्षा अन्य समुदायों से अधिक आवश्यक क्यों है?

मदरसों की तालीम में इस पर बहुत जोर दिया जाता है कि यह सांसारिक जीवन अल्लाह की ओर से एक परीक्षा मात्र है। इसी कारणवश मदरसों से निकलने वाले अधिकतर विद्यार्थी प्रतिस्पर्धी एवं आवश्यक शिक्षा से वंचित रह जाते हैं और वे जीवन भर मदरसों से मिली तालीम के अनुरूप ही चलते हैं। वे अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, दर्शन, भूगोल और विज्ञान इत्यादि में निपुण नहीं होते। इस कारण व्यक्तिगत एवं सामाजिक स्तर पर वे सक्षम नहीं होते और समाज में केवल धार्मिक मार्गदर्शक बनकर जीवन बिता पाते हैं। इससे वे न स्वयं का हित साध पाते हैं और न ही समाज और देश का। आज के सांसारिक जीवन में सभी को हर प्रकार की जानकारी आवश्यक है। यह जरूरी नहीं कि बच्चे प्रत्येक विषय में महारत हासिल करें, परंतु हर विषय का अध्ययन आवश्यक है। समाज एवं इतिहास की उचित जानकारी ही भावी पीढ़ी का सही मार्गदर्शन कर सकती है।

चूंकि मदरसों की शिक्षा व्यवस्था में केवल एक ही समुदाय के विद्यार्थियों को सम्मिलित किया जाता है, इसलिए वह उन्हें सहअस्तित्व वाले समाज की जानकारी नहीं दे पाती। भारत जैसे विविधता भरे देश में हमें अपने शैक्षणिक संस्थानों को हर उस बात से लाभान्वित करना चाहिए, जो भाईचारा सिखाए, न कि केवल एक विशेष समुदाय से जुड़े रहने का नजरिया दे।

(लेखिका सिटिजंस फाउंडेशन फार पालिसी साल्यूशंस में शोधार्थी एवं नीति विश्लेषक हैं)