नई दिल्ली [मोहम्मद शहजाद]। बचाव इलाज से बेहतर है। यह नुस्खा हमेशा से कारगर रहा है। आज जब पूरी दुनिया कोरोना महामारी की जद में है तो इसकी प्रासंगिकता और बढ़ गई है। कारण इसका तेजी से बढ़ता संक्रमण और अब तक ला-इलाज होना है। यही वजह है कि दुनिया के अधिकतर देशों ने इसी पुराने नुस्खे को आजमाते हुए  या तो अपने यहां पूरी तरह से लॉकडाउन घोषित कर दिया है या फिर इस दिशा में बढ़ रहे हैं।

नि:संदेह कोरोना के फैलाव को रोकने का यही कारगर तरीका है, क्योंकि इसकी अब तक कोई दवा ईजाद नहीं की जा सकी है। देश भर में स्कूल, दफ्तर, बाजार और यातायात के सभी साधनों को पूरी तरह से बंद कर दिया गया

है। ऐसे में सवाल यह भी उठता है कि देश इस स्थिति के लिए कितना तैयार है और कितने दिनों तक इसे बर्दाश्त कर सकता है? दरअसल लॉकडाउन तभी कारगर हो सकता है जब उसे योजनाबद्ध तरीके से लागू किया जाए। चीन के वुहान से आरंभ हुई इस बीमारी के बारे में दुनिया को दो-तीन महीने पहले ही पता चल चुका  था। इसके बावजूद चीन समेत दुनिया भर की मेडिकल साइंस की तमाम कोशिशें इसे वहीं तक सीमित करने में असमर्थ रहीं। 

पड़ोसी होने के नाते तब ही हमें सजग हो जाना चाहिए था। हमारे देश में सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि लोग इन बीमारियों के प्रति जागरूक नहीं हैं। दुनिया के कई देशों में इसके भयावह रूप लेने के बावजूद लोग आज भी लॉकडाउन को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। पहले कुछ राज्यों द्वारा लॉकडाउन की घोषणा के बाद लोगों ने इसे कामकाज से छुट्टी मानकर तफरी का जरिया मान लिया। बाद में सरकारों ने जब सख्ती दिखाई तो बाजारों में लोग अपनी रोजमर्रा की जरूरत के सामान के लिए उमड़ पड़े। इस आपाधापी को देखकर शहरों में रह रहे काफी लोगों ने अपने पैतृक स्थान और गांवों की तरफ भागना शुरू कर दिया। अगर उन्हें पहले से ही लॉकडाउन के बारे में जागरूक किया जाता तो शायद यह स्थिति टाली जा सकती थी। जो जहां है, उसे वहीं रहने के लिए प्रेरित किया जा सकता था।

कई राज्यों में पूर्ण लॉकडाउन होते-होते अच्छी खासी आबादी शहरों से ट्रेन और बस के जरिये अपने गंतव्य स्थान तक पहुंच चुकी है। इनमें जाने कितने लोग कोरोना से संक्रमित होंगे और आगे यह संक्रमण कितने लोगों तक फैलाएंगे? शायद यही वजह है कि केंद्र सरकार को पूरे देश में लॉकडाउन जैसा सख्त निर्णय लेने के लिए मजबूर होना पड़ा। नि:संदेह यह स्वागतयोग्य है, लेकिन इससे देश के अधिकतर हिस्सों में खाने- पीने की वस्तुओं को जमा करने की जो होड़ मची, उसमें भी लोगों में जागरूकता का अभाव नजर आया। लोग यह भूल गए कि उनके बीच सामाजिक दूरी बनाने के लिए ही इस लॉकडाउन की घोषणा की गई है।

महत्वपूर्ण बात यह है कि लॉकडाउन का निर्णय हमेशा कल्याणकारी योजनाओं को ध्यान में रखकर लिया जाना चाहिए। देश की आबादी के एक बड़े हिस्से को असंगठित क्षेत्र से रोजगार मुहैया होता है। इनमें काफी तादाद दिहाड़ी मजदूरी करने वालों और कामगारों की है। लॉकडाउन की स्थिति में रोज कमा कर खाने वाले इन लोगों के पास दो जून की रोटी का जुगाड़ कैसे हो पाएगा। अगर उनके पास कुछ जमा-पूंजी होगी तो भी वह इस लॉकडाउन को कितने दिनों को झेल पाने में सक्षम होंगे। आपातकालीन परिस्थितियों में हमारे यहां कालाबाजारी का भी बाजार गर्म हो जाता है।

पूरी तरह से लॉकडाउन की घोषणा होते ही दिल्ली समेत कई अन्य जगहों पर राशन और सब्जियों की कीमतें आसमान छूने लगी हैं। ऐसे में आने वाले दिनों ये चीजें इनकी पैदावार करने वालों की पहुंच से ही यह दूर होती जाएंगी। जाहिर है कि असंगठित क्षेत्र से जुड़ी देश की बड़ी आबादी के लिए इस स्थिति का सामना करना बहुत मुश्किल होगा। सरकार के पास ऐसा कोई आंकड़ा भी नहीं है कि फलां आदमी भूख से तड़प रहा होगा, ऐसे में उसे राशन- पानी उपलब्ध कराना उसकी जिम्मेदारी है। इस तरह की समस्याओं पर भी सरकार को ध्यान देना होगा।