राजीव सचान : विपक्षी दलों को एकजुट करने के प्रयास और तेज होते दिख रहे हैं। भाजपा से नाता तोड़कर महागठबंधन से हाथ मिलाने के बाद नीतीश कुमार विपक्षी दलों को एक करने के अभियान के तहत दिल्ली की यात्रा कर चुके हैं। यद्यपि उनका यही कहना है कि वह पीएम पद के दावेदार नहीं, लेकिन उनके समर्थक-सहयोगी उन्हें इस पद के लिए उपयुक्त बता रहे हैं। बीते दिनों पटना में ऐसे पोस्टर दिखे, जिन पर लिखा था-प्रदेश में दिखा, देश में दिखेगा। क्या दिखेगा, यह स्पष्ट नहीं, लेकिन कोई भी समझ सकता है कि क्या दिखाने और बताने की कोशिश हो रही है।

उपराष्ट्रपति चुनाव के समय विपक्षी एकता को भंग करने वाली ममता बनर्जी फिर से विपक्ष को एक करने में जुट गई हैं। हाल में उन्होंने कहा कि वह नीतीश कुमार, अखिलेश यादव, तेजस्वी यादव, हेमंत सोरेन और अन्य मित्रों के साथ मिलकर भाजपा को बेदखल करेंगी। उन्होंने अन्य मित्रों का नाम लेने से परहेज किया। क्यों किया, यह तो ज्ञात नहीं, लेकिन वह अतीत में कांग्रेस को साथ लिए बिना विपक्ष को एक करने की कोशिश कर चुकी हैं। भले ही ममता कांग्रेस को साथ न लेना चाहती हों, लेकिन वह इससे अनभिज्ञ नहीं हो सकतीं कि नीतीश, तेजस्वी और हेमंत तो कांग्रेस के साथ हैं।

जिस तरह ममता बनर्जी कांग्रेस का साथ नहीं लेना चाहतीं, उसी तरह केसीआर यानी तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव भी। उन्होंने पिछले दिनों यह कहकर चौंकाया कि 2024 में केंद्र में गैर भाजपा सरकार बनने पर देश भर के किसानों को मुफ्त बिजली और पानी दिया जाएगा। आखिर उन्होंने यह घोषणा किस अधिकार से की? यह प्रश्न इसलिए, क्योंकि अभी तक किसी भी भाजपा विरोधी नेता ने यह नहीं कहा है कि वे उन्हें इसके लिए अधिकृत कर रहे हैं कि वह अगले लोकसभा चुनाव के लिए विपक्ष का एजेंडा तय करें।

केसीआर के बारे में एक खबर यह भी है कि वह अपने दल तेलंगाना राष्ट्र समिति को राष्ट्रीय स्वरूप देने जा रहे हैं। इससे उन्हें कितनी सफलता मिलेगी, यह वक्त बताएगा, लेकिन यह साफ है कि वह अपने हिसाब से विपक्षी दलों को एकजुट करना चाहते हैं। विपक्षी दलों को अपने तरीके से एकजुट करने के अभियान को राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रमुख शरद पवार भी धार दे रहे हैं। इसके लिए पिछले दिनों उन्होंने राकांपा का राष्ट्रीय अधिवेशन दिल्ली में किया। वह यह कहते रहे हैं कि कांग्रेस के बिना विपक्षी एकता संभव नहीं।

विपक्षी दलों को एकजुट करने का काम एक और नेता ओमप्रकाश चौटाला भी कर रहे हैं। वह जिस इंडियन नेशनल लोकदल के जरिये तीसरा मोर्चा बनाने की कोशिश कर रहे हैं, उसका हरियाणा में केवल एक विधायक है। वह देवीलाल की जन्मतिथि पर फतेहाबाद में एक रैली करने जा रहे हैं। इस रैली के लिए उन्होंने विपक्षी नेताओं को निमंत्रण देना शुरू कर दिया है। उनका दावा है कि यह रैली भाजपा के विरुद्ध तीसरा मोर्चा बनाने में कारगर साबित होगी। चौटाला ने इस रैली में अखिलेश यादव को निमंत्रित किया है। इसका मतलब है कि इसमें मायावती नहीं शामिल होंगी।

इसी तरह यदि आंध्र से चंद्रबाबू नायडू शामिल होते हैं तो जगनमोहन रेड्डी शामिल नहीं होंगे। यदि वाम दलों के नेता शामिल होते हैं तो फिर ममता शामिल नहीं होंगी। फिलहाल इसका पता नहीं कि ओमप्रकाश चौटाला की रैली में कौन-कौन शामिल होगा, पर यह सबको पता है कि वह शिक्षक भर्ती घोटाले में सजा काट चुके हैं और आय से अधिक संपत्ति के मामले में दोषी करार दिए जा चुके हैं। क्या जब भ्रष्टाचार का मुद्दा सतह पर है, तब विपक्षी नेता उनके साथ मंच साझा करना पसंद करेंगे?

जब भाजपा विरोधी नेता अपने-अपने स्तर पर विपक्ष को एकजुट करने की कोशिश कर रहे हैं, तब इसे अनदेखा नहीं कर सकते कि आम आदमी पार्टी अपने बलबूते नरेन्द्र मोदी को चुनौती देने की तैयारी करती दिख रही है। गुजरात और हिमाचल प्रदेश में ‘एक मौका केजरीवाल को’ नारे के साथ जनता को आकर्षित करने की कोशिश यही बताती है कि केजरीवाल खुद को नरेन्द्र मोदी के समकक्ष रख रहे हैं। हालांकि कई भाजपा विरोधी दलों के नेताओं ने समय-समय पर केजरीवाल से मुलाकात की है, फिर भी यह कहना कठिन है कि आम आदमी पार्टी विपक्षी एका की जो पहल हो रही है, उसमें भागीदार बनना चाहती है।

कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा का उद्देश्य भले ही नफरत के माहौल से लड़ना बताया जा रहा हो, लेकिन ऐसी यात्राएं राजनीतिक और चुनावी लाभ के लिए ही होती हैं। लगातार कमजोर होती कांग्रेस इस यात्रा के जरिये स्वयं को इतना सशक्त करना चाह रही है कि विपक्षी दल उसके नेतृत्व में गोलबंद होने को बाध्य हों। यह समय बताएगा कि ऐसा हो पाएगा या नहीं, लेकिन इसमें संदेह नहीं कि भाजपा विरोधी दलों को एकजुट करने के प्रयास जितने अधिक नेता करेंगे और वह भी अपने-अपने हित और हिसाब से, उनमें एका की संभावना उतनी ही क्षीण होगी।

‘ज्यादा जोगी मठ उजाड़’ वाली कहावत शायद ऐसी ही स्थितियों को व्यक्त करने के लिए बनी है। विभिन्न नेताओं की ओर से विपक्ष को एक करने की कोशिश यही बताती है कि वे सब एकजुट हो सकने वाले भाजपा विरोधी दलों का नेतृत्व करना चाहते हैं और इस चाहत के पीछे प्रधानमंत्री बनने की आकांक्षा है। हर नेता को ऐसी आकांक्षा रखने का अधिकार है, लेकिन यदि विपक्ष को एक करने की कोशिश करने वाले सभी नेता प्रधानमंत्री बनना चाहेंगे तो फिर उनका एकजुट होना संभव नहीं।

(लेखक दैनिक जागरण में एसोसिएट एडिटर हैं)