संसार में प्रतिद्वंद्वी रहेंगे ही, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि एक-दूसरे से घृणा की जाए। अहिंसा एक शाश्वत तत्व है। शून्यांश पर हिंसा नहीं, अहिंसा ही है। सह अस्तित्व के लिए अहिंसा अनिवार्य है। दूसरों का अस्तित्व मिटाकर अपना अस्तित्व बनाए रखने की कोशिश अंतत: घातक होती है। अहिंसा भारतीय संस्कृति की मुख्य पहचान है। अहिंसा सभी को अभय प्रदान करती है। वह सृजनात्मक है और समृद्धि से युक्त है। आज का सभ्य संसार वातावरण में घुटन और अस्वस्थता का अनुभव कर रहा है। एक ओर कहीं विध्वंसक भौतिकता व्याप्त है तो दूसरी ओर स्वार्थपरक भावनाओं से वह विषाक्त हो रहा है। आज शांति के लिए एक आध्यात्मिक जाग्रति आवश्यक है जो राष्ट्र, समाज और परिवार से हिंसा का अंधकार दूर कर सके।
महावीर स्वामी का अमृत संदेश समस्त प्राणी जगत के कुशल-क्षेम का संवाहक है, अपार शांति का अक्षय स्रोत है। जैन धर्म में अहिंसा का बड़ा ही व्यापक अर्थ लगाया जाता है। किसी की हत्या न करना या खून न बहाना ही अहिंसा का उदाहरण नहीं है। मन-वचन-कर्म से किसी को कोई कष्ट न देना अहिंसा है। अहिंसा के अंतर्गत केवल मानव ही नहीं पशु-पक्षी, जीव-जंतु को भी कष्ट नहीं पहुंचाना है। अर्थात अपनी आत्मा के समान ही सबको मानो। अहिंसा का संबंध मनुष्य के हृदय के साथ है, मस्तिष्क के साथ नहीं। जिसके जीवन में अहिंसा का स्वर झंकृत होता है, वह केवल शत्रु को ही प्यार नहीं करता, बल्कि उसका कोई शत्रु होता ही नहीं है। जिसको आत्मा के अस्तित्व में विश्वास है, वही हिंसा का त्यागी हो सकता है। कुछ लोग अहिंसा को कायरता और निर्बलता मानते हैं, किंतु महात्मा गांधी ने अहिंसा के मार्ग पर चलकर ही इतने बड़े ब्रिटिश साम्राज्य से अपने देश को स्वतंत्र करा लिया था। मनुष्य की तमाम विकृत प्रवृत्तियां हिंसा की ही देन हैं, जिसके कारण शांति का वृक्ष सूख रहा है। प्रेम की फसलों पर स्वार्थ और लोभ का पाला पड़ गया है। सौहार्द की टहनियां टूट कर गिर रही हैं। अहिंसा शुष्क-नीरस-जड़ पदार्थ नहीं, यह वह चेतना है जो आत्मा का विशेष गुण है। भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. राधाकृष्णन ने स्पष्ट शब्दों में कहा है, ‘यदि आज मानवता को बचाना है तो महावीर के बताए हुए रास्ते के अतिरिक्त कोई दूसरा रास्ता नहीं है।
[ बीना जैन ]