[ राजीव शुक्ला ]: लॉकडाउन का चौथा चरण शुरू हो गया है। लगता है कि बहुत कुछ बदला है, लेकिन केंद्रीय गृह मंत्रालय जो निर्देश दे रहा है उनका पालन सही तरह नहीं हो रहा है। कई राज्य सरकारें अपनी ओर से नियम बना रही हैं। इससे भी ज्यादा गलत बात यह है कि जिला और पुलिस प्रशासन अपने ढंग से काम कर रहे हैं। ऐसा लगता है कि उन्हें सख्ती करने और किस्म-किस्म की रोक लगाने को कहा जा रहा है।

यदि सामान नहीं बिकेगा तो उत्पादन नहीं होगा और न ही कल-कारखाने चलेंगे

यदि गृह मंत्रालय के ताजा निर्देशों को देखा जाए तो शॉपिंग मॉल के अलावा सारी दुकानें खुली होनी चाहिए। उनमें सिर्फ दो गज दूरी का नियम लगाया गया है। दुकानों का खुलना और सुबह 7 बजे से शाम 7 बजे तक लोगों का बेरोकटोक आना-जाना इसलिए जरूरी है, क्योंकि यदि सामान नहीं बिकेगा तो न तो उत्पादन होगा और न ही कल-कारखाने चलेंगे। यदि ये नहीं चले तो न लोगों को रोजगार मिलेगा और न ही काम-धंधा आगे बढ़ेगा।

लोगों को दिनचर्या ऐसी बनानी होगी जिसमें कोरोना से बचकर काम किया जा सके

कोरोना से लड़ाई लड़ने के लिए हर नियम का पालन होना ही चाहिए, लेकिन इसी के साथ यह भी समझना होगा कि कोरोना इतनी जल्दी जाने वाला नहीं है। लोगों को अपनी दिनचर्या ऐसी बनानी होगी जिसमें कोरोना वायरस के संक्रमण से बचकर काम किया जा सके।

अब कोरोना के साथ ही जीवन गुजारना होगा और देश को चलाना होगा

अब कोरोना के साथ ही जीवन गुजारना होगा और देश को चलाना होगा। कोई भी यह दावे के साथ नहीं कह सकता कि अमुक दिन कोरोना खत्म हो जाएगा? इस मामले में अमेरिका के राष्ट्रपति से लेकर दुनिया के किसी भी शासनाध्यक्ष को कुछ भी पता नहीं है। सब अंधेरे में तलवार चला रहे हैं। इन हालात में अब हर देश को अपनी गतिविधियां सामान्य बनानी होंगी।

कोरोना काल में लाखों मजदूरों का दर्द दूर करना आसान काम नहीं

भारत में लाखों मजदूरों को इतनी विकट परिस्थितियों में अपने घरों को लौटना पड़ रहा है कि उन्हें देख आंखें नम हो जा रही हैं। हममें से कोई भी उनकी सही तरह मदद नहीं कर पा रहा है। कोई आरोप-प्रत्यारोप कितने भी लगा ले, लेकिन मजदूरों का दर्द दूर करना आसान काम नहीं। अब ये लाखों मजदूर कब वापस लौटेंगे, कोई नहीं जानता। गांवों में भी उनकी स्थिति कैसी रहेगी, यह कोई नहीं जानता। कुछ दिन तो गांव में उनके परिवार के लोग उनकी देखभाल करेंगे, लेकिन उसके बाद उनमें भी कलह हो सकती है। फिलहाल मजदूर वापस शहर लौटते नहीं दिखते।

फैक्ट्री चालू करने की अनुमति तो मिल गई, लेकिन काम करने वाले लोग नहीं हैं

कई उद्योगपतियों ने मुझे बताया कि उन्हें फैक्ट्री चालू करने की अनुमति मिल गई है, लेकिन काम करने वाले लोग नहीं हैं। ऐसे में उत्पादन ठप पड़ा है। उनका यह भी कहना है कि महीने दो महीने तो जैसे-तैसे वेतन देकर निकाल लिया, लेकिन जब हमारी खुद की आमदनी जीरो है तो हम आगे वेतन कैसे दे पाएंगे? जो सरकारों की लेनदारी है उसे बजाय माफ करने के लेने की कोशिश की जा रही है। उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा कि आगे क्या होने वाला है। जब बेरोजगारी बढ़ेगी तो देश में सामाजिक अशांति को रोकना मुश्किल होगा।

जाने माने अर्थशास्त्री रुचिर ने कहा- भारत मे सबसे कड़ा लॉकडाउन है 

मेरे मित्र रुचिर शर्मा विश्व की बहुत बड़ी वित्तीय कंपनी मॉर्गन स्टेनली में उच्च पदाधिकारी हैं और ट्रंप टॉवर, न्यूयॉर्क में रहते हैं। वह मार्च में अपने माता-पिता से मिलने दिल्ली आए थे और तब से यहीं फंसकर रह गए हैं, क्योंकि हवाई सेवाएं बंद हैं। वह जाने माने अर्थशास्त्री हैं। उनकी तमाम किताबें विश्व भर में पढ़ी जाती हैं। रुचिर ने मुझे बताया कि उन्होंने इस दौरान कई देशों के वित्त मंत्रियों से बातचीत की है। उन्होंने यह निष्कर्ष निकाला कि भारत मे सबसे कड़ा लॉकडाउन है। जिन देशों में भारत से कहीं ज्यादा कोरोना मरीज हैं वहां आर्थिक गतिविधियां चल रही हैं। चूंकि कल-कारखाने चल रहे हैं इसलिए कहीं कम संख्या में लोगों को नौकरियों से हाथ धोना पड़ रहा है। कई देशों में तो लोग पार्कों में दौड़ने और टहलने जाते हैं। सिर्फ रेस्तरां, सिनेमाहाल बंद हैं।

अमेरिका में कोरोना महामारी का भयंकर प्रकोप है, लेकिन उद्योग-धंधे चल रहे हैं

अमेरिका में इस महामारी का भयंकर प्रकोप है, लेकिन वहां भी उद्योग-धंधे चल रहे हैं। वहां सरकार की तरफ से सभी प्राइवेट कंपनियों में तनख्वाह दी जा रही है, ताकि किसी कर्मचारी की नौकरी न जाए। जो आर्थिक पैकेज दिए जा रहे हैं उनमें सरकार अपने खजाने से उद्यमियों और व्यापारियों को पैसा दे रही है। ये किसी किस्म का कर्ज नहीं, बल्कि सरकार अपनी ओर से पैसा सहायता के रूप में दे रही है जो उनसे वापस नहीं लिया जाएगा। यही काम यूरोप के देश और जापान आदि भी कर रहे हैं। स्वीडन ने तो अपने यहां लॉकडाउन ही नहीं लगाया, बल्कि सारा ध्यान लोगों की इम्युनिटी यानी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में लगाया।

अमेरिका में कई देशों के विदेशी छात्र पढ़ रहे हैं उनके खातों में पैसे भेजे गए हैं

नोएडा के एक उद्योगपति की फैक्ट्री अमेरिका में है। उनके खाते में कर्मचारियों की तनख्वाह के पैसे पहुंचने लगे। उन्होंने सरकार से कहा कि जब हमारी फैक्ट्री चल रही है और हमें मुनाफा हो रहा है तो इस पैसे की क्या जरूरत है? इस पर सरकार ने कहा कि आप इस पैसे को व्यापार बढ़ाने में खर्च कीजिए और लोगों को रोजगार दीजिए। अमेरिका में कई देशों के जो विदेशी छात्र पढ़ रहे हैं उनके खातों मे भी पैसे भेजे गए हैं।

मूल धन मत माफ करो, कम से कम ब्याज तो छह महीने का माफ कर दो

भारत के पास धन की कमी हो सकती है इसलिए यह सब नहीं हो पा रहा, पर सरकार उद्योग और व्यापार जगत से जो पैसा लेती है, कम से कम उसे तो माफ किया जा सकता है ताकि लोगों की नौकरियां न जाएं। यही नहीं देश में करोड़ों लोगों ने बैंक से लोन ले रखा है। मेरा कहना है कि मूल धन मत माफ करो, कम से कम ब्याज तो छह महीने का माफ कर दो ताकि उन्हें मासिक किस्त न देनी पड़े। अभी तीन महीने का ब्याज माफ नहीं, बल्कि टाला गया है और उस पर भी कहते हैं कि चक्रवृद्धि ब्याज लेंगे। यह तो सरासर अन्याय है।

एक वायरस दुनिया को खत्म करने के लिए काफी है

हमें कोरोना से सबक लेना चाहिए। आज कोरोना है कल कोई और वायरस हो सकता है। अब एक वायरस दुनिया को खत्म करने के लिए काफी है। अब लड़ाई मिसाइल और बम से नहीं लड़ी जानी। स्वास्थ्य पर हम जीडीपी का सिर्फ 1.5 प्रतिशत खर्च करते हैं।

स्वास्थ्य का बजट रक्षा बजट के बराबर का करना होगा

हमें स्वास्थ्य का बजट रक्षा बजट के बराबर का करना होगा ताकि इतने सरकारी अस्पताल समस्त सुविधाओं से लैस हों कि किसी भी वायरस से लड़ लें। पैसा इधर-उधर बर्बाद करने के बजाय स्वास्थ्य सुविधाओं पर लगाना चाहिए ताकि मरीजों को सस्ता और कारगर इलाज मिल सके।

( लेखक पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हैं )