मध्य प्रदेश, ऑनलाइऩ डेस्क। बचपन से ही मुझे समाचार पत्र पढ़ने का बहुत शौक था। मेरा पसंदीदा अखबार ‘दैनिक जागरण व नई दुनिया’ था। अखबार पढ़ते-पढ़ते मुझे लिखने का भी शौक लग गया। मैंने लेखन की शुरुआत ‘पत्र संपादक के नाम’ स्तंभ से की। किसी बड़े अखबार में लिखना और उसमें अपने नाम को छपा हुआ देखना शायद हर लिखने-पढ़ने वाले को सुख की अनुभूति देता होगा। जब मेरा लिखा हुआ छपता तो पढ़कर मैं खुश होता और परिचितों को भी दिखाता था।

धीरे-धीरे ‘दैनिक जागरण और नई दुनिया’ अखबार के उस दौर में छपने वाले विभिन्न स्तंभों के लिए मुझे लिखने के बहुत से मौके मिले। स्नातक की पढ़ाई करने के दौरान मेरे करीबियों को पता लग चुका था कि मैं अखबार के लिए लिखता हूं। मेरा लिखा हुआ जो भी प्रकाशित होता, उसे मैं अखबार से काटकर एक फाइल में सहेज कर रख लेता था। यह मेरी सबसे बड़ी पूंजी थी। 

हालांकि घर के लोग मेरे इस शौक से बहुत अधिक संतुष्ट नहीं रहते थे। उनका कहना था कि मुझे ठीक से पढ़ाई करनी चाहिए ताकि कोई अच्छी नौकरी मिल जाए। मैं पढ़ाई करता था, लेकिन अपने शौक से समझौता करने को तैयार नहीं था। 1982 में मैं परास्नातक की पढ़ाई करने देवास तक जाता था। अब आवश्यकताएं भी बढ़ गई थीं, जेब खर्च के लिए पैसे भी चाहिए थे, सो एक कंपनी में नौकरी करने लगा। इस दौरान भी मेरे लेखन का सिलसिला जारी रहा। मैं नियमित करीब आठ किलोमीटर दूर काम पर जाता, पढ़ाई करता। फिर समय निकालकर लेखन भी करता।

बारिश हो या ठंड, मैं पूरी ईमानदारी से अपना काम करता था। दो वर्ष तक अनवरत ड्यूटी करते-करते कम वेतन व अधिक मेहनत के कारण अब मेरा मन काम में नहीं लगता था। वाकई में वे जीवन के बहुत कठिन और मुसीबत वाले दिन थे। मेरे पास शिक्षक बनने की योग्यता भी थी, लेकिन घर में सब लोग कहने लगते कि तुम्हें लिखने से ही फुर्सत नहीं मिलती तो नौकरी किस प्रकार मिलेगी?

अखबार में लिखने-पढ़ने का मुझे सबसे बड़ा फायदा यह मिला कि मेरी हिंदी अच्छी हो गई थी। इसी बीच पता चला कि उज्जैन जिले में शिक्षकों की भर्ती के लिए आवेदन मांगे गए हैं। मैं इस पद के लिए पात्र था, सो आवेदन कर दिया। कुछ ही दिनों बाद मेरे पास जिला शिक्षा अधिकारी, उज्जैन का कॉल लेटर आया, जिसमें योग्यता व जरूरी प्रमाण पत्रों के साथ मुझे साक्षात्कार के लिए नियत समय पर पहुंचना था। साक्षात्कार वाले दिन मैं समय से उज्जैन के शिक्षा अधिकारी के कार्यालय पहुंच गया। वहां कुल बावन पदों के लिए भर्ती निकली थी और साक्षात्कार के लिए पांच सौ बावन अभ्यर्थी आए थे।

काफी देर इंतजार करने के बाद मैं साक्षात्कारकर्ताओं के समक्ष अपने अभिलेखों के साथ उपस्थित हुआ। चयन समिति में जिला शिक्षा अधिकारी सहित जिले के पांच अन्य वरिष्ठ अधिकारी भी थे। उनमें से एक ने मुझसे मेरी रुचि के बारे में सवाल किया। मैंने तुरंत उनके समक्ष ‘दैनिक जागरण और नई दुनिया’ में प्रकाशित हुए अपने लेखों की कतरनों वाली मोटी सी फाइल रख दी और बताया कि मैं बीते आठ साल से ‘दैनिक जागरण और नई दुनिया’ के लिए लेखन कर रहा हूं।  

मेरी रुचि और मेहनत देखकर तत्कालीन जिला शिक्षा अधिकारी दंग रह गए और कहने लगे कि यह तो ‘दैनिक जागरण और नई दुनिया’ अखबार का प्रतिभाशाली बेरोजगार लेखक है। भला इनसे बढ़िया बच्चों को और कौन पढ़ा सकता है? मेरे लेखों को देखने के बाद उन्होंने तत्काल नियुक्ति पत्र देने की बात कही। इसके बाद वह अधिकारी बोले कि जीवन में हमेशा वह काम करना चाहिए, जिसे करने में आनंद की अनुभूति हो। 

अब तुम लेखक के साथ शिक्षक भी बन गए हो। शासकीय शिक्षक की नौकरी पाकर मेरा जीवन संवर गया। मुझे नौकरी दिलाने में प्रतिष्ठित समाचार पत्र दैनिक जागरण और नई दुनिया की बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका रही, क्योंकि शिक्षक पात्रता तो बाकी सब अभ्यर्थियों के पास भी थी। आज मैं जिस भी मुकाम पर हूं, इसका सारा श्रेय ‘दैनिक जागरण और नई दुनिया’ समाचार पत्रों को देना चाहूंगा। इसके साथ ही पढ़े-लिखे लोगों से यह कहना चाहता हूं कि अगर आप अपनी रुचि का काम करते हैं तो हमेशा खुश रहते हैं और यह आपके कॅरियर का रास्ता भी बन जाता है। (दिनेश तिवारी बड़नगर)