[ कैप्टन आर विक्रम सिंह ]: अपनी कालजयी रचना पहला गिरमिटिया के जरिये गांधी जी को समझने के लिए एक नई दृष्टि प्रदान करने वाले गांधी मनीषी लेखक गिरिराज किशोर नहीं रहे। उनकी इस रचना ने गांधी की प्रासंगिकता पर बहस को आगे बढ़ाने का काम किया था। भारतीय राष्ट्र जीवन में गांधी जी की भूमिका को लेकर जब-तब बहस छिड़ती ही रहती है। यह बहस यही बताती है कि गांधी जी का सही तरह से मूल्यांकन होना अभी भी शेष है।

गांधी जी का सही तरह से मूल्यांकन होना अभी भी शेष

अक्सर गांधी जी का स्मरण स्वतंत्रता की लड़ाई को अंजाम तक पहुंचाने के लिए किया जाता है। कौन सोच सकता था कि अगस्त 1920 को आजादी के लिए प्रारंभ हुआ संघर्ष 27 वर्ष बाद देश को विभाजित कर पाकिस्तान की ओर चला जाएगा। गांधी का रास्ता धर्मनिरपेक्षता का था। उन्होंने सत्य-अहिंसा को अपना हथियार बनाया जो उदात्त भारतीय आध्यामिकता से ही प्रेरित था। गांधी ने भारत के मानस को समझा और राष्ट्रीय परिदृश्य पर असहयोग आंदोलन की परिकल्पना की। इसे जमीन पर उतारने की जल्दी में उनसे पहली गलती होती है।

एक समानांतर मजहबी संगठन खड़ा हो गया

प्रथम विश्वयुद्ध के बाद इस्लामिक ऑटोमन साम्राज्य के बंटवारे में तुर्की की हैसियत गिरकर सामान्य देशों जैसी रह गई थी। खलीफा का पद स्वत: अर्थहीन हो गया था। भारत के मुसलमानों ने खलीफा की बहाली की मांग उठाई। गांधी जी ने असहयोग आंदोलन में मुस्लिम भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए खलीफा की बहाली के मुद्दे को एक अवसर के रूप में देखा। कांग्रेस के विचारशील बौद्धिक वर्ग ने जिनमें जिन्ना भी थे, इस पर विरोध प्रकट किया। जिन्ना तब राष्ट्रवादी थे। उन्होंने कहा था कि इससे राजनीति में मुल्लाओं और मौलवियों का प्रवेश हो जाएगा। यही हुआ भी। आंदोलन के दौरान जगह-जगह खिलाफत कमेटियां बनीं। एक समानांतर मजहबी संगठन खड़ा हो गया।

हताशा में भारत में हुए हिंदू-मुस्लिम दंगे

जब भारत के खिलाफत आंदोलनकारियों ने तुर्की जाकर कमाल अतातुर्क के खिलाफ पर्चे बांटे तो खलीफा माजिद को षड्यंत्रकारी मानकर देश निकाला दे दिया गया। मुस्लिम देशों में तो कहीं कुछ नहीं हुआ। हमारे यहां हताशा में हिंदू-मुस्लिम दंगे प्रारंभ हो गए। मालाबार, केरल का मोपला दंगा हमारे इतिहास के भीषण धार्मिक नरसंहारों में एक हैं।

हिंदू-मुस्लिम एकता का गांधी का स्वप्न खंड-खंड हो गया

खिलाफत के माध्यम से हिंदू-मुस्लिम एकता का गांधी का स्वप्न खंड-खंड हो गया। यदि यह मान लें कि गांधी के पास विकल्पों का अभाव था तो आखिर शेष भारत के लिए धार्मिक आतंकवाद से टक्कर लेना संभव क्यों नहीं हुआ? आजादी के आंदोलन में हिंदू-मुस्लिम विभाजन को मजबूती से रोक पाने की असफलता ने भारत विभाजन का मार्ग प्रशस्त किया।

देश भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद का दीवाना तो था, लेकिन उनके साथ खड़ा नहीं हुआ

जब मुस्लिम लीग के इलाहाबाद सम्मेलन में अल्लामा इकबाल पाकिस्तान के विचार का बीजारोपण करते हैं तब तक गांधी के असहयोग आंदोलन को स्थगित हुए आठ वर्ष बीत चुके थे। वहीं देश भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद जैसे क्रांतिकारियों का दीवाना तो था, लेकिन उनके साथ खड़ा नहीं हुआ।

गांधी ने हिंदू समाज का विभाजन रोकने के लिए 1932 में बाबा साहब से किया समझौता

यह देश घूम फिरकर गांधी के ही पास आया। गांधी ने दांडी यात्रा की, अहिंसक नमक आंदोलन चलाया, हिंदू समाज का विभाजन रोकने के लिए 1932 में बाबा साहब से समझौता किया। फिर वे अस्पृश्यता के विरूद्ध पूरी क्षमता से लग गए। उनसे सशस्त्र क्रांति की उम्मीद की ही नहीं जा सकती थी, लेकिन आखिर जो सक्षम थे उन्हें किसने रोका था। लेनिन, माओ, चे ग्वेरा की सशस्त्र क्रांतियों का भयानक परिणाम दुनिया ने देखा है। तमाम लोग गांधी जी को बहुत सी बातों का जिम्मेदार मानते हैं, लेकिन आजादी के आंदोलन के इतने बड़े फलक पर कोई दूसरा चरित्र आया ही नहीं।

विभाजन से मुसलमानों को पाक मिला, भारत का दिशाहीन हिंदू जातीय विभाजन से जूझने लगा

सारे देश ने दम साध कर जिन्ना की बढ़ती सांप्रदायिकता को देखा। कोई गांधी का विकल्प नहीं बना। विभाजन से मुसलमानों को उनका दारूल इस्लाम पाकिस्तान मिला, लेकिन भारत का दिशाहीन हिंदू समाज अपराध भाव के साथ समाजवाद, साम्यवाद, सांप्रदायिकता, जातीय विभाजन, क्षेत्रीय अलगाव से जूझने लगा। यह गांधी के आंदोलन का अंतिम परिणाम था। आंदोलन की शक्ति को आजादी के बाद राष्ट्रीय समग्रता के सामाजिक-सांस्कृतिक आंदोलन में परिवर्तित न कर पाना गांधी के आंदोलन की असफलता थी। उन्हें ऐसे वारिस ही नहीं मिले जो इस आंदोलन को राजनीतिक सफलता के बाद फिर सामाजिक परिवर्तन की दिशा में लगातार आगे चलाते रहते।

गांधी जी ने कहा- हिंदू समाज की आंतरिक एकता स्वत: हिंदू-मुस्लिम विवाद को करेगी समाप्त

नोआखाली यात्रा के समय मुस्लिमों के एक गांव कमालपुर में एक सवाल के जवाब में गांधी जी ने कहा कि वह अंतरजातीय विवाहों के साथ अंतर धार्मिक विवाहों का भी स्वागत करेंगे। यह बात उन्होंने बहुत बार कही कि अगर हिंदू समाज अपने अछूत शोषित समाज को समानता का स्थान दे तो हिंदू-मुस्लिम समस्या भी स्वत: समाप्त हो जाएगी। नोआखाली में सवर्ण और नमो शूद्र मारे जा रहे थे। उस त्रासदी में भी सामाजिक अलगाव के कारण उनमें आपसी सहयोग नहीं था। यह बात महत्वपूर्ण है कि हिंदू समाज की आंतरिक एकता स्वत: हिंदू-मुस्लिम विवाद को समाप्त करेगी।

असहाय गांधी परिस्थितियों को विभाजन की ओर जाते हुए देख रहे थे

यह अकारण नहीं कि जिन्ना उन्हें हिंदुओं का नेता कहते थे। असहाय गांधी परिस्थितियों को विभाजन की ओर जाते हुए देख रहे थे। यह अक्षमता जिन्ना और अंग्रेजों के लिए देश को बांट देने का बड़ा अवसर बनी। बावजूद सब कुछ के ये गांधी ही थे जो अस्पृश्यता निवारण, हिंदू समाज की एकता, हिंदू-मुस्लिम सहयोग, स्वदेशी के लिए लड़े। दूसरा कोई भी सामाजिक एकता के लिए न तो अछूतों की बस्तियों में रहा, न नोआखाली जैसे दंगों में गया। अगर मान भी लें तो आखिर गांधी की गलतियों को सुधारने के लिए हमने क्या किया है?

कर्मठ राष्ट्र अपने राष्ट्र नायकों की गलतियों पर विलाप नहीं करते, बल्कि समाधान निकालते हैं

यह सवाल राष्ट्र की अंतरात्मा से है। कर्मठ राष्ट्र अपने राष्ट्र नायकों की गलतियों पर विलाप नहीं करते, बल्कि आगे बढ़कर समाधान निकालते हैं। हम गांधी जी के समालोचक भी हैं, लेकिन उन्हीं के आदर्शों में भविष्य की किरण भी देखते हैं। गांधी के अफ्रीका प्रवास का जैसा मूल्यांकन गिरिराज किशोर पहला गिरमिटिया में किया वैसा ही किसी को उनकी कथित गलतियों का भी करना चाहिए।

( लेखक पूर्व सैनिक एवं पूर्व प्रशासक हैैं )