[ प्रो. कल्पलता पाण्डेय ]: सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने हाथरस कांड का सच सामने आना और अधिक सुनिश्चित कर दिया है कि सीबीआइ जांच की निगरनी हाईकोर्ट करेगा, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि इस घटना के बहाने किस तरह सस्ती राजनीति की गई और टीवी मीडिया एवं बुद्धिजीवियों की ओर से मनमाना नैरेटिव गढ़ने का काम किया गया। अगर क्रमवार घटनाएं, उनके बाद की कार्रवाई और कथित बुद्धिजीवियों का रवैया देखें तो साफ हो जाता है कि राजनीतिक दलों के साथ उनका एक खेमा भी तथ्यों को दरकिनार कर राजनीतिक एजेंडा सेट करने का माध्यम बन गया था। यूपी में तो हमेशा एक नैरेटिव बनाने का प्रयास होता है, जिससे सरकार और खासकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की कानून व्यवस्था को लेकर बनी सख्त छवि को आघात पहुंचे।

सैकड़ों मीडिया कर्मियों ने पीपली लाइव फिल्म जैसा दृश्य खड़ा कर दिया था 

हाथरस में यह उतावलापन इतना था कि पीड़िता के गांव पहुंचे सैकड़ों मीडिया कर्मियों ने वहां पीपली लाइव फिल्म जैसा दृश्य खड़ा कर दिया। न्यूज चैनल सभी पक्षों की बात जानने की बजाय पत्रकारिता के मूलभूत नियमों को भी दरकिनार कर रनिंग कमेंट्री करने लगे और यह इतने अतिरेक पर चला गया कि कमेंट्री राजनीतिक भाषण में तब्दील हो गई। तथ्य गायब हो चुके थे। ग्राउंड पर रिर्पोटिंग करने की छूट चुकी आदतों से उपजी खीझ, एक जबरन इवेंट क्रिएट करने की हताशा के रूप में दिखने लगी। वे यह समझने को तैयार नहीं थे कि जब एसआइटी की टीम पीड़ित के छोटे से घर में पूछताछ कर रही है तो उस दौरान सैकड़ों मीडिया र्किमयों की अनियंत्रित भीड़ क्या जांच प्रक्रिया को बाधित नहीं करती?

हाथरस में जर्नलिस्ट और एक्टिविस्ट के बीच फर्क मिट गया

कुछ चैनलों की महिला पत्रकार जिस तरीके से पुलिस कर्मियों को उकसाने का प्रयास कर रही थीं, वह उनकी पत्रकारीय और संपादकीय दृष्टि पर भी सवाल खड़ा करने वाला था। बेहतर होता न्यूज चैनलों के संपादक अपने साथियों को निर्देशित करते कि पीड़ित परिवार के सवाल, उस पर पुलिस प्रशासन के जवाब के साथ आरोपित पक्ष की भी बात प्रस्तुत की जाए। किसी एक पक्ष के साथ खड़े होना एक्टिविस्ट का काम होता है। हाथरस में जर्नलिस्ट और एक्टिविस्ट के बीच फर्क मिट गया। 

हाथरस जैसी घटना किसी भी देश और समाज के लिए शर्म की बात है

हाथरस जैसी घटना किसी भी देश और समाज के लिए शर्म की बात है। ऐसी घटनाओं के आरोपितों को त्वरित और कड़ी सजा देकर ही संदेश दिया जा सकता है, ताकि गलत लोगों में भय हो। यही सरकार का काम है। हाथरस में 14 सितंबर को जान से मारने की लिखित शिकायत पर चंदपा थाने की पुलिस ने मामला दर्ज कर लिया। मीडिया को दिए बयान में पीड़िता की मां ने वही बताया था, जो तहरीर में है। उसके चार-पांच दिन बाद लड़की ने छेड़खानी की बात की।

पुलिस ने एफआइआर में छेड़खानी की बात जोड़ दी और आरोपित को गिरफ्तार कर लिया

पुलिस ने एफआइआर में छेड़खानी की बात जोड़ दी और 20 सितंबर को आरोपित को गिरफ्तार कर लिया। 22 सितंबर को स्थानीय सीओ ने लड़की का बयान लिया, जिसमें उसने गिरफ्तार आरोपित के अतिरिक्त तीन अन्य लड़कों द्वारा भी दुष्कर्म की बात कही। 29 को पीड़िता की दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में इलाज के दौरान मृत्यु हो गई, परंतु इससे पहले सभी आरोपित गिरफ्तार हो चुके थे। उन पर लड़की के बयान के आधार पर सुसंगत धाराएं लग चुकी थीं। घटना के बाद जो कार्रवाई होनी चाहिए थी वह हो चुकी थी, लेकिन उससे पहले राजनीति गरम हो गई।

राजनीतिक दल हुए सक्रिय, सोशल मीडिया ने दुष्कर्म होने की अफवाह फैलाई

चूंकि उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में भाजपा की सरकार थी और मुंबई में सुशांत का मुद्दा खत्म नहीं हो रहा था तथा बिहार में चुनाव थे, इसलिए राजनीतिक दल सक्रिय हो गए। सोशल मीडिया के जरिये अफवाह फैलाई गई कि दुष्कर्म तो हुआ ही, उसके साथ लड़की की जीभ काट दी गई और आंखें फोड़ दी गईं। किसी ने यह देखने की कोशिश नहीं की कि स्थानीय अस्पताल की मेडिकल रिपोर्ट, सफदरजंग अस्पताल की पोस्टमार्टम रिपोर्ट और सबसे विश्वसनीय एफएसएल की रिपोर्ट में इन बातों की पुष्टि नहीं थी। भड़काऊ ट्वीट किए जाने लगे। कई आडियो-वीडियो वायरल हुए, जिनमें कुछ मीडियाकर्मी, राजनेता आदि संदिग्ध भूमिका में दिखे। कई अनजाने लोग पीड़ित परिवार के पास रहकर माहौल खराब करने का प्रयास कर रहे थे। पीएफआइ जैसे संगठनों की उपस्थिति भी सामने आई। आखिर कथित बुद्धिजीवी इन सबको देखने से इन्कार क्यों कर रहे थे?

हाथरस कांड में जिस तरह से बयानबाजी हुई, रिर्पोटिंग हुई वह प्रायोजित ही लगा

क्या इसका संबंध दलित समुदाय के मन में योगी सरकार के लिए जहर भरने से था या बिहार के चुनाव से अथवा जातीय संघर्ष पैदा करने की साजिश से? इन सबकी जांच एसआइटी और सीबीआइ कर रही है और एक दिन सभी सवालों के जवाब आ ही जाएंगे। महिलाओं के खिलाफ अपराध समाज को आंदोलित करता है, उसकी प्रतिक्रिया भी होती है। होनी भी चाहिए, लेकिन हाथरस कांड में यह भी देखना होगा कि घटना के एक सप्ताह बाद जिस तरह से सेलेक्टिव प्रतिक्रिया हुई, बयानबाजी हुई, रिर्पोटिंग हुई, मनमाना नैरेटिव गढ़ा गया, वह प्रायोजित ही लगा।

योगी की छवि अपराधियों और माफिया के खिलाफ सख्त कदमों के कारण देशभर में अलग बनी

योगी सरकार का ट्रैक रिकॉर्ड महिला अपराधों पर कार्रवाई के मामले में बेहतर हुआ है। तीन सालों में दुष्कर्म के पांच अपराधियों को फांसी हो चुकी है। 193 मामलों में आजीवन कारावास की सजा मिली है। 2019 में महिला संबंधी वादों के कुल 15116 मामले निस्तारित हुए हैं। महिलाओं के विरुद्ध हुए अपराधों में सजा दिलाने के मामले में उत्तर प्रदेश पहले स्थान पर है। प्रदेश में 2016 के मुकाबले 2020 में दुष्कर्म के मामलों में 42 प्रतिशत की कमी आई है। जल्द सुनवाई और उस पर सजा न्याय की प्रक्रिया पर भरोसा बढ़ाती है। किसी एक घटना के आधार पर सरकार के सभी कामों को खारिज कर देना पूर्वाग्रह के कारण ही हो सकता है, अन्यथा मुख्यमंत्री योगी की छवि अपराधियों और माफिया के खिलाफ सख्त कदमों के कारण देशभर में अलग बनी है। इससे पहले किसी सरकार ने ऐसी हिम्मत नहीं दिखाई।

( लेखिका जननायक चंद्रशेखर विश्वविद्यालय, बलिया की कुलपति हैं )