[ सुधांशु त्रिवेदी ]: भारत स्वतंत्रता के 75वें वर्ष में प्रवेश कर गया है। प्रधानमंत्री ने इस अवसर पर उस अभियान का आह्वान किया, जो इस संकल्प को प्रेरित करे कि 25 वर्ष बाद जब भारत स्वतंत्रता की शताब्दी मनाए, तब हम कहां दिखना चाहेंगे? इस अवसर पर स्वतंत्रता आंदोलन में आहुति देने वाले महान कर्मयोगियों का स्मरण आवश्यक है। लंबे समय तक यह विचार पाठ्यक्रमों से लेकर बौद्धिक प्रतिष्ठानों तक छाया रहा कि स्वतंत्रता आंदोलन में एक ही दल, एक ही विचार और कुछ सीमा तक एक ही परिवार का प्रमुख योगदान था। कांग्रेस के नेतृत्व में चले आंदोलन ने निश्चित रूप से स्वतंत्रता में अपनी भूमिका अदा की, पर यदि हम 1912 में वायसराय हार्डिंग पर बम फेंके जाने से लेकर कलकत्ता के पुलिस कमिश्नर की हत्या, भगत सिंह और उनके साथियों द्वारा असेंबली में धमाके, काकोरी में चंद्रशेखर आजाद, बिस्मिल और अशफाक उल्ला खान के साथियों द्वारा सरकारी कोषागार लूटे जाने और चटगांव में सूर्यसेन के साथियों द्वारा शस्त्रागार लूटने तक की घटनाओं को याद करें तो तत्कालीन सरकार की दयनीय स्थिति का अनुमान सहज ही लगा सकते हैं।

क्रांतिकारी संघर्ष ने हमारी स्वतंत्रता में अभूतपूर्व योगदान दिया। जिन्हें जेल में रहकर पुस्तकें लिखने की सुख-सुविधा मिली, उनसे कहीं अधिक योगदान उनका है, जिन्होंने जेल में यातनाएं सहीं और कोल्हू में बैल की जगह जोत दिए गए। एक तीसरी धारा सैन्य अभियान की थी, जो रास बिहारी बोस और सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज के माध्यम से भारत की स्वतंत्रता का संघर्ष कर रहे थे। अक्टूबर 1943 में स्वतंत्र भारत की पहली निर्वासित सरकार नेताजी के नेतृत्व में स्थापित हुई। फरवरी 1946 में नौसेना के विद्रोह ने ब्रिटिश सरकार का हौसला पस्त किया। इसी कारण अंग्रेजों ने भारत को स्वतंत्र करने का निर्णय तय समय से पहले कर दिया। मोदी सरकार आने के बाद 2018 में आजाद हिंद फौज की निर्वासित सरकार के 75 वर्ष मनाए गए। इससे पूर्व यह प्रकरण लगभग विलुप्त था। हमें भारत के स्वतंत्रता संग्राम में राजनीतिक आंदोलन, क्रांतिकारी संघर्ष और सैन्य अभियान, तीनों के बलिदानियों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करनी चाहिए।

विगत 74 वर्षों में राजनीतिक दृष्टि से हमने कई पड़ाव पार किए हैं। 1972 तक चुनाव होते थे, पर सत्ता नहीं बदलती थी। 1972 से 1997 तक चुनावों में सत्ता बदलने की प्रक्रिया शुरू हुई और कांग्रेस बनाम अन्य की राजनीति केंद्र में रही। 1997 में पहली बार केंद्र में अटलजी के रूप में एक विशुद्ध गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री देश ने देखा। नरेंद्र मोदी का युग आते-आते राजनीति का केंद्र भाजपा बनाम अन्य पर आ गया। कोई यह कह सकता है कि एक से दूसरे दल को सत्ता चले जाने से कौन सा बड़ा परिवर्तन आ गया? जरा सी गहराई से देखें तो परिवर्तन का गहरा अर्थ समझ में आएगा।

स्वतंत्रता का प्रथम स्वर लोकमान्य तिलक ने 1905 में पूर्ण स्वराज के उद्घोष के साथ दिया। स्वतंत्रता आंदोलन का वैचारिक अधिष्ठान महात्मा गांधी ने 1909 में हिंद स्वराज नामक पुस्तक में दिया। इसमें उन्होंने लिखा कि हम ब्रिटेन से स्वतंत्रता प्राप्त करके उसकी ही अनुकृति यानी नकल बनना चाहेंगे तो यह स्वराज का लक्ष्य नही हो सकता, परंतु 1947 में सत्ता मिलने के बाद हमें ‘राज’ तो मिला, पर तिलक और गांधी के ‘स्वराज’ का ‘स्व’ नगण्य दिखता था। समस्त व्यवस्थाएं और विचार विदेश से प्रेरित थे। यदि राजनीतिक चेतना जेपी आंदोलन ने खड़ी की तो भारतीय राष्ट्र के ‘स्व’ की सांस्कृतिक चेतना श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन ने खड़ी की। अटलजी की सरकार में ‘स्व’ के तत्व को स्थापित करने के प्रयास में बहुत थोड़ी सफलता मिली, क्योंकि कई प्रयास गठबंधन राजनीति की बलि वेदी पर चढ़ गए।

केंद्र में मोदी सरकार आने के बाद भारत के ‘राज’ में ‘स्व’ का तत्व स्पष्ट रूप से उभरना शुरू हुआ। इसकी प्रथम अभिव्यक्ति भारत सरकार द्वारा संयुक्त राष्ट्र में योग दिवस को अभूतपूर्व समर्थन के साथ सफलतापूर्वक वैश्विक मान्यता दिलाने से शुरू हुई। पीएम मोदी द्वारा श्रीराम जन्मभूमि का शिलान्यास, भारत की सत्ता द्वारा भारत के सांस्कृतिक प्रतीक के प्रति दृढ़ निष्ठा की ऐतिहासिक अभिव्यक्ति थी।

राष्ट्र का स्वाभिमान तब तक नहीं जग सकता, जब तक शक्ति की अभिव्यक्ति न हो। स्वतंत्रता के तुरंत बाद हम बड़े, ताकतवर और विजित देश होने के बावजूद युद्ध में कश्मीर का एक बड़ा हिस्सा गंवा बैठे और अकारण संयुक्त राष्ट्र संघ में पेच फंसा दिया। इसके बाद लंबे समय हम जीतने के बावजूद बाजी हारते रहे। सेना का पराक्रम कूटनीतिक समझौतों की मेज पर आकर व्यर्थ होता चला गया। हमारी छवि एक साफ्ट स्टेट की बन गई। अटल सरकार ने पोखरण विस्फोट करके छवि में कुछ परिवर्तन लाने का प्रयास किया। नरेंद्र मोदी ने सत्ता में आने के बाद आतंकवाद पर कड़ाई से नियंत्रण किया। सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक द्वारा भारत की साफ्ट स्टेट की छवि को पूरी तरह समाप्त किया।

किसी भी राष्ट्र के लिए स्वाभिमान और शक्ति तब तक मायने नहीं रखती, जब तक विकास की किरण अंतिम सीढ़ी पर खड़े व्यक्ति तक न पहुंचे। दीनदयाल जी के अंत्योदय को साकार करते हुए नरेंद्र मोदी ने देश की लगभग संपूर्ण जनता को विकास की मुख्यधारा से जोड़ा। हाल में उज्ज्वला-2 योजना के द्वारा लगभग सभी निर्धन महिलाओं को रसोई गैस और भारत के सभी गांवों में बिजली उपलब्ध कराई गई। जब तक विकास की किरण इन वर्गों तक नही पहुंची थी, तब तक स्वतंत्रता की सार्थकता पूर्ण नहीं थी।

अब अगले 25 वर्षों के लिए चुनौतियां क्या हैं? आज हम विश्व के सबसे युवा देश हैं, परंतु पूर्ण सत्य यह है कि हम युवा देश और सबसे प्राचीन सभ्यता हैं। विश्व इतिहास में विज्ञान, गणित, चिकित्सा, पर्यावरण, खगोल, ज्योतिष, साहित्य और सर्वाधिक वैज्ञानिक भाषाओं से युक्त हमारी ज्ञान की परंपरा युवा पीढ़ी के मन से विस्मृत होती जा रही है। आज हम विकास के आवरण में छिपे पश्चिम के अंधानुकरण के शिकार हो रहे हैं। यदि हमारी अगली पीढ़ी मैकाले की मानसिक दासता और मार्क्सवाद के मायाजाल से मुक्त हो सके तो तिलक और गांधी का स्वराज साकार हो सकेगा। नरेंद्र मोदी ने जिस दिशा में देश को आगे बढ़ाया है, यदि अगले 25 वर्ष हम उसी दिशा में आगे बढ़ें तो हमारा संपूर्ण ‘तंत्र’ भारत के ‘स्व’ की अनुभूति कर पाएगा और यह सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व के लिए कल्याण का पथ प्रशस्त करेगा।

( लेखक भाजपा के राज्यसभा सदस्य हैं )