[ एनके सिंह ]: कहां तो हम ध्वनि की गति से तीन गुनी रफ्तार (मैक-3) से हवा में उड़कर और चांद-सितारों पर टूरिज्म विकसित करने के मंसूबों के साथ प्रकृति पर पूर्ण विजय का एलान कर रहे थे और कहां कोरोना रूपी एक अदृश्य अर्ध-जीव (एक ऐसा खतरनाक प्रोटीन जो मानव शरीर में स्वयं अपना प्रसार कर लेता है) पूरी दुनिया में मानव अस्तित्व के लिए ही खतरा बन गया। हालांकि मानव में एक खास बात है कि वह संकट तो उत्पन्न करता है, परंतु उसका हल भी खुद ही ढूंढ निकालता है। कोरोना वैक्सीन अब एक सच्चाई बन रही है, लेकिन क्या गारंटी है कि कोई दूसरा कोरोना फिर हमला नहीं करेगा, हमारे अस्तित्व को चुनौती नहीं देगा और हम साल भर नई वैक्सीन की तलाश नहीं करते रहेंगे? इस महामारी में दुनिया भर में लाखों जानें गंवाने, 88 ट्रिलियन डॉलर की वैश्विक अर्थव्यवस्था में से करीब आठ ट्रिलियन डॉलर (भारत की कुल जीडीपी का तीन गुना) का नुकसान उठाने और करोड़ों लोगों की नौकरियों की तबाही झेलने के बाद दुनिया को अब समझ में आया है कि विकास की हमारी परिभाषा गलत थी और प्रकृति का दोहन नहीं, बल्कि उसके साथ तालमेल ही स्थायी विकास दे सकता है।

घटनाएं या दुर्घटनाएं कई बार किसी देश का भाग्य बदल देती हैं, परमाणु विध्वंस से उभरा जापान

दरअसल घटनाएं या दुर्घटनाएं कई बार किसी देश का भाग्य बदल देती हैं। इसका कारण होता है समाज की सामूहिक चेतना में गुणात्मक परिवर्तन। परमाणु विध्वंस से उभरा जापान इसका उदाहरण है। मार्टिन लूथर की तत्कालीन ईसाई धर्म-व्यवस्था पर सवाल उठाते ‘95 थीसिस’ ने 16वीं सदी में पश्चिमी जगत में पुनर्जागरण को नई दिशा दी। भारत के पास अभी एक ऐसा नेतृत्व है, जिस पर देश की जनता का व्यापक भरोसा है। यह भरोसा समाज की सोच को सकारात्मक दिशा देते हुए क्रियात्मक बना सकता है। इसका प्रदर्शन स्वस्थ भारत अभियान में हमने देखा भी है। इसमें कोई दो राय नहीं कि 435 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर की घनी आबादी वाला हमारा देश (अमेरिका-36, ऑस्ट्रेलिया-3.5 और चीन-150), जिसमें अज्ञानता-जनित बेफिक्री और गरीबी-जनित स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव डराने वाला है, इस संकट का सबसे बड़ा शिकार होता, लेकिन समय से हुए कुछ सरकारी फैसले, परंपरागत समाज होने की वजह से हमारी प्रतिरोधी-क्षमता के कारण इस रोग की संघात क्षमता (1.4 प्रतिशत की मृत्यु दर) दुनिया के अन्य संपन्न और समृद्ध-विकसित देशों की तुलना में काफी कम रही है।

देश में उत्पादन को नई गति देने और उसे निर्यातोन्मुखी बनाने में मोदी सरकार का बड़ा कदम

अब मोदी-विरोध में कुछ लोग कह सकते हैं कि अर्थव्यवस्था को गर्त से निकालने के लिए बीत दिनों हुए दो सरकारी प्रयासों में अपेक्षित कैश आउट-गो (नकदी व्यय) दस फीसद से भी कम था, बाकि वायदा और ऋण के रूप में था, लेकिन यह भी संभव है कि राजस्व में हुए भारी नुकसान के बाद सरकार अगर खर्च बढ़ाती तो वित्तीय घाटा बढ़ जाता। फिर भी क्या यह सच नहीं कि पिछले हफ्ते घोषित उत्पादन आधारित प्रोत्साहन देश में उत्पादन को नई गति देने और उसे निर्यातोन्मुखी बनाने में एक बड़ा कदम है? देश में आज रिकॉर्ड नए उद्योगों का रजिस्ट्रेशन हो रहा है, क्योंकि टैक्स में छूट देकर इसे 15 प्रतिशत कर दिया गया है? केवल नवंबर माह में अब तक 42,000 करोड़ रुपये का रिकॉर्ड फॉरेन पोर्टफोलियो इन्वेस्टमेंट (एफपीआइ) हुआ है, जिसमें संस्थागत और व्यक्तिगत दोनों शामिल होते हैं। चालू वित्त वर्ष में कोरोना के बावजूद इस मद में कुल निवेश रिकॉर्ड लगभग 1,40,000 करोड़ रुपये का हो चुका है। यह इस बात की तस्दीक है कि मोदी सरकार की र्आिथक नीतियों पर विदेशी निवेशकों को भी भरोसा है।

आर्थिक स्थिति भारत के पक्ष में, कोरोना के चलते दुनिया का रवैया चीन के प्रति नकारात्मक

उधर मूडीज ने भारत की आर्थिक स्थिति पर कुछ और भरोसा बढ़ाते हुए अपने पहले के 11.5 प्रतिशत गिरावट के पूर्वानुमान को बदल कर 10.6 प्रतिशत कर दिया है। साफ है सभी संकेत भारत के पक्ष में हैं। चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने गत दिनों एशिया-प्रशांत आर्थिक सहयोग के मंच पर बोलते हुए यह कहकर दुनिया को चौंका दिया कि अगले साल से वह निर्यातोन्मुखी विकास से हटकर देश में ही उपभोग बढ़ाकर विकास को नई गति देंगे। जाहिर है कोरोना के उद्गम स्नोत जैसे आरोप के बाद दुनिया का रवैया चीन के प्रति नकारात्मक हुआ है।

विकास करने का सबसे बड़ा रास्ता निर्यात है

लिहाजा निर्यात के भरोसे चीन नहीं रहना चाहता, लेकिन यह भी सच है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था के इस दौर में विकास करने का सबसे बड़ा रास्ता निर्यात ही है। भारत के लिए यह एक सुनहरा अवसर होगा। यहां उद्यमिता के विकास के साथ युवाओं को रोजगार के अवसर मिलेंगे और समृद्धि बढ़ेगी। आज भी हम कृषि, खासकर खाद्यान्न और दुग्ध उत्पादन क्रमश: 29.6 करोड़ टन और 18.6 करोड़ टन करते हैं। अनाज हमारी जरूरत से काफी ज्यादा होता है। ये दोनों वस्तुएं हम निर्यात बाजार में इसलिए नहीं ले जा पाते, क्योंकि हमारी उत्पादन-लागत ज्यादा है। किसानों की इनपुट सब्सिडी को बढ़ाना, वैज्ञानिक खेती को अभियान बनाना आज की जरूरत है, ताकि बेहतर लगत मूल्यों के साथ वे गेहूं में ऑस्ट्रेलिया, दूध में न्यूजीलैंड और चावल में चीन और कंबोडिया के मुकाबले विश्व बाजार में खड़े हो सकें।

देश सफलता के उस मुहाने पर खड़ा है, जहां से वह अपनी चिर-गरीबी से बाहर आ सकता है

बहरहाल साफ नजर आ रहा है कि देश सफलता के उस मुहाने पर खड़ा है, जहां से वह अपनी चिर-गरीबी से बाहर आ सकता है। अधेरी सुरंग के उस पार निर्यातोन्मुखी उत्पादन के उत्साह का दीया टिमटिमा रहा है। राज्य के मुख्यमंत्रियों को भी इस समय अन्य भावनात्मक मुद्दे छोड़कर उद्यमिता के विकास का परिवेश तैयार करना चाहिए, ताकि हम चीन का विकल्प बन सकें। इस साल मई के महीने में केंद्र सरकार ने ‘आत्मनिर्भर भारत’ का नारा दिया और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त को लाल किले से ‘वोकल फॉर लोकल’ और ‘मेक फॉर वल्र्ड’ का नारा देकर इस अभियान को एक दिशा देने का संदेश दिया था। अब यह समाज के ऊपर है कि वह अपनी भावी पीढ़ी के लिए उत्पादन क्रांति लाकर क्या एक समुन्नत भारत बनाने को तैयार है?

( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )