नई दिल्ली [संतोष पाठक]। देशव्यापी लॉकडाउन के बीच अधिकांश निजी स्कूल लोगों की मुसीबतों को समझते नहीं दिख रहे। दिल्ली समेत देश के कई राज्यों से खबरें आ रही हैं कि स्कूलों ने फीस बढ़ा दी है। ऐसे कठिन दौर में यह जरूरी हो जाता है कि स्कूलों की मनमानी पर लगाम लगाने और अभिभावकों को राहत देने के लिए सरकारें सामने आएं।

कई राज्य सरकारें सामने आई भी हैं। दिल्ली सरकार ने भी स्कूलों को चेतावनी देते हुए कहा है कि सरकार की इजाजत के बिना कोई भी स्कूल फीस नहीं बढ़ाए। स्कूल एक महीने की ट्यूशन फीस के अलावा कोई अन्य फीस नहीं लेंगे। फीस न देने पर किसी भी बच्चे को ऑनलाइन क्लास से नहीं हटाया जाएगा। दिल्ली सरकार से पहले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल के अलावा कई अन्य राज्यों के मुख्यमंत्री भी निजी स्कूलों को इस संबंध में आदेश जारी कर चुके हैं।

हरियाणा सरकार ने आदेश जारी किया है कि लॉकडाउन की अवधि के दौरान निजी स्कूल अभिभावकों को तीन माह की फीस देने के लिए बाध्य नहीं करेंगे। स्कूल को एक माह की फीस लेने को ही कहा गया है। फीस नहीं दे पाने वाले छात्रों को ऑनलाइन पढ़ाई और अन्य सुविधाओं से वंचित नहीं किया जाएगा। वैसे सरकारी आदेशों के पालन के मामले में निजी स्कूलों का रिकॉर्ड बहुत अच्छा नहीं रहा है।

अतीत में ऐसी कई घटनाएं सामने आ चुकी हैं जिनमें यह देखा गया है कि किसी न किसी बहाने से निजी स्कूल सरकार के इस तरह के आदेशों को पूरी तरह से नहीं मानते हैं। मसलन कई स्कूलों में फीस बढ़ा दी गई है और अभिभावक जब इसे सरकारी आदेश के विपरीत बता रहे हैं तो स्कूल प्रबंधन कहता है कि आपका बच्चा अब अगली कक्षा में प्रवेश कर गया है और अगली कक्षा की फीस पिछले वर्ष भी उतनी ही थी जितनी आपसे मांग की जा रही है। यानी वे कोई न कोई तर्क देकर किसी भी कीमत पर बढ़ी हुई फीस वसूलना चाहते हैं।

हालांकि सिक्के का एक दूसरा पहलू यह भी है कि कई ऐसे स्कूल भी सामने आए हैं जिन्होंने स्वेच्छा से तीन महीनों की फीस नहीं लेने की घोषणा स्वयं की है। ऐसे स्कूल बधाई के पात्र हैं। इस संकट के दौर में बेहतर यही होगा कि सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ वीडियो कांफ्र्रेंंसग के जरिये संवाद कायम कर प्रधानमंत्री कोई राष्ट्रीय नीति बनाने की पहल करें। प्रधानमंत्री या केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री राज्य सरकारों सहित इससे जुड़े सभी पक्षों से बात करें और एक राष्ट्रीय नीति की घोषणा करें जिसे सभी राज्य सरकारें लागू करें। ऐसा करते समय केंद्र सरकार को स्पष्ट तौर पर कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए।

पहला यही कि संकट की इस विकट स्थिति में सभी स्कूलों को तीन महीने की फीस पूरी तरह से माफ करने को कहा जाए। यह आदेश सभी स्कूलों पर लागू हो और सभी अभिभावकों को इसका लाभ मिलना चाहिए। स्कूलों को यह भी आदेश दिया जाए कि वे अपने सभी कर्मचारियों को समय पर और पूरा वेतन दें।

दूसरा, जो भी स्कूल आर्थिक स्थिति का रोना रोएं, सरकार तुरंत उस स्कूल और उसकी प्रवर्तक संस्था के खातों की पूरी डीटेल मांगे और आनाकानी करने वाले स्कूलों के सभी बैंक खातों को सीज कर उनके संचालकों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करे। और तीसरा, यदि किसी स्कूल की हालत वाकई खस्ता है तो सरकार अपनी तरफ से उसकी मदद भी करे। अर्थव्यवस्था-सामाजिक व्यवस्था को हमेशा मजबूत बनाने वाले मध्य वर्ग को संकट के इस दौर में वाकई मदद की जरूरत है और इसके लिए सरकार को नई सोच और नए इरादों के साथ नए तरह के कदम उठाने ही होंगे। (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)