[रणदीप सिंह सुरजेवाला]। भारत में अपने वादों को निभाने का संदर्भ पौराणिक काल से लिया जाता है। प्राण देकर भी वचन निभाने की प्रथा रघुकुल से चली आ रही है। मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने तो पिता के वचन की मर्यादा की रक्षा के लिए 14 वर्ष सत्ता त्याग कंदमूल खाकर और कुशा का आसन लगाकर वन में व्यतीत किए। एक मोदी सरकार है जो सत्ता की मखमली कुर्सी पर चार वर्षों से हर वचन तोड़ कर बैठी है। उसने विकास को वनवास पर भेज दिया है। याद कीजिए चार साल पहले सत्ता में आने के लिए कालेधन, फसलों के दाम, नारी सुरक्षा, रोजगार, औद्योगिक विकास इत्यादि को लेकर कैसे-कैसे लुभावने वादे किए गए थे। आज चार साल बाद मोदी सरकार भव्य जश्न के आडंबर से नाकामियों पर पर्दा डालने की तैयारी कर रही है तब देश को यह जानना जरूरी है कि बीते चार सालों में देश को खर्चीली रैलियों, गढ़े हुए भाषणों, रेडियो पर मनमानी बातों और जुमलों के अलावा हासिल क्या हुआ है? देश की आर्थिक अधोसरंचना, सामाजिक, समावेशीय विकास का हाल क्या है, यह जानने की कोशिश ख़ुद मोदी सरकार की ओर से जारी किए आंकड़ों की बदौलत करते हैं मोदी जी ने अपने घोषणापत्र में वादा किया था कि कृषि उपज का समर्थन मूल्य लागत के 50 प्रतिशत से अधिक दिया जाएगा, मगर सरकार किसानों को लागत मूल्य भी नहीं दे रही है।

उदाहरण के लिए मूंग का लागत मूल्य 5700 रु है, लेकिन समर्थन मूल्य है 5575 रु। इसी तरह ज्वार का लागत मूल्य 2089 रु है, पर समर्थन मूल्य है 1700 रु। चाहे धान हो या गेहूं, चना या फिर मूंगफली, बमुश्किल लागत मूल्य मिल रहा है। इसी कारण हर 24 घंटे में 35 किसान आत्महत्या कर रहे हैं। किसानों की अच्छी पैदावार के बावज़ूद मुनाफाखोरों को विदेश से अनाज मंगाने की न केवल छूट दी जा रही है, अपितु इम्पोर्ट ड्यूटी भी शून्य की जा रही है। किसानों के नाम पर चलाई जा रही फसल बीमा योजना में भी निजी कंपनियां पैसा कमा रही हैं। मोदी जी ने कहा था, मां गंगा ने बुलाया है। उन्होंने गंगा की सफाई की बीस हजार करोड़ रु की एक योजना सामने रखी, लेकिन उसका केवल 13 प्रतिशत ही खर्च किया जा सका है। कैग का कहना है कि गंगा की एक बूंद भी साफ नहीं की जा सकी है। सुप्रीम कोर्ट ने भी नाराजगी जताते हुए कहा कि जिस गति से काम चल रहा है उससे तो गंगा सौ

वर्षों में भी साफ नहीं हो पाएगी। नारी सुरक्षा का दावा करने वाली सरकार की हालत यह है कि आज वह बेटी बचाओ- बेटी पढ़ाओ के नाम पर बेटियों के साथ भद्दा मजाक किया जा रहा है। देश में 15 वर्ष तक आयु की 6.5 करोड़ बेटियां हैं। बजट में केवल पांच पैसे प्रति बेटी का प्रावधान किया गया है। दलित भी प्रताड़ित और अपमानित किए जा रहे हैं।

आज देश के शहरों का जीडीपी में योगदान 55 प्रतिशत से अधिक है। इसे ध्यान में रखते हुए संप्रग सरकार ने शहरी विकास के लिए जवाहरलाल नेहरू शहरी नवीनीकरण मिशन के माध्यम से एक लाख करोड़ रुपये से शहरों के आधारभूत ढांचे का विकास किया था। मोदी सरकार ने इस योजना का नाम बदलकर अमरुत और स्मार्ट सिटी कर दिया। सरकार ने अमरुत योजना में 77,640 करोड़ का प्रावधान तो किया, मगर बीते चार सालों में खर्च किए

मात्र 263 करोड़ रु। यही हाल स्मार्ट सिटी योजना का भी है। सौ शहरों के विकास के 642 परियोजनाओं में से मात्र तीन प्रतिशत अर्थात 23 परियोजनाएं पूरी हुई हैं। मोदी जी ने राजीव आवास योजना का नाम बदल कर भी उसे हाउसिंग फॉर ऑल कर दिया और उसके तहत जरूरतमंदों को दो करोड़ घर देने का वादा किया। चार वर्षों बाद केवल तीन लाख 33 हजार घरों का निर्माण किया गया है अर्थात मात्र तीन प्रतिशत। मोदी जी ने युवाओं को दो करोड़ रोजगार हर वर्ष देने का वादा किया था, मगर ख़ुद मोदी सरकार बताती है कि वह केवल 4.16 लाख रोजगार प्रतिवर्ष उपलब्ध करा पा रही है। मोदी सरकार की अकर्मण्यता के चलते विदेशों तक में भारतीयों की नौकरियों पर खतरा मंडरा रहा है।

अमेरिका की नई एच 4 एच1 बी वीजा नीति के चलते वहां 7.5 लाख भारतीयों की नौकरी खतरे में है। छात्र देश का भविष्य होते हैं, लेकिन मोदी सरकार ने उनके भविष्य को अंधेरे में धकेलने का काम किया है। बीते चार सालों में एजुकेशन सेस केनाम पर मोदी सरकार ने 160786 करोड़ रु वसूले, मगर यह पैसा किस तरह शिक्षा पर खर्च किया, इसका हिसाब नहीं है और उलटे यूजीसी का 67.5 प्रतिशत बजट कम कर दिया गया। सरकार ने बीते चार सालों में शिक्षा नीति का निर्धारण भी नहीं किया। और तो और, सीबीएसइ और एसएससी नौकरी भर्ती परीक्षा के पर्चे लाखों रु में बेचकर करोड़ों युवाओं के भविष्य से खिलवाड़ किया गया। जिस मुद्रा योजना के बारे में मोदी सरकार बड़ी- बड़ी बातें करती है उसकी हकीकत यह है कि 91 फीसद लोन की औसत राशि मात्र 23,000 रु है। क्या इस राशि से कोई नया व्यापार स्थापित किया जा सकता है?

अब बात काले धन की। मोदी जी ने कहा था कि हर भारतीय के खाते में 15-15 लाख रुपये आएंगे। कालाधन आना तो दूर रहा, सरकार की सरपरस्ती में हजारों करोड़ रु का सफेद धन नीरव मोदी और मेहुल चौकसी जैसे काले चोर लूटकर भाग गए। यही नहीं मोदी सरकार काले चोरों को गोरा बनाने की फेयर एंड लवली स्कीम लेकर आई। आज बैंकों का नॉन परफॉर्मिंग असेट यानी एनपीए 2.5 लाख करोड़ से बढ़कर 8.5 लाख करोड़ पहुंच गया है। संप्रग शासन के समय 2013-14 में निर्यात 19.5 लाख करोड़ रुपये था, जो 2017- 18 में 10.37 लाख करोड़ रु हो गया। केंद्र सरकार के सात लाख करोड़ रु के करीब 150 प्रोजेक्ट रुके पड़े हैं। मेक इन इंडिया हो या स्टार्टअप इंडिया अथवा स्किल इंडिया आदि दम तोड़ती योजनाएं भी मोदी सरकार की नाकामी की पहचान बन गई हैं। पाकिस्तान सीमा पर लगातार हमले कर हमारे सैनिकों और नागरिकों को निशाना बना रहा और चीन भारतीय सीमा में सैनिक साजो-सामान जुटा रहा, लेकिन सरकार मौन है। मंत्रियों का भ्रष्ट आचरण हो या फिर राफेल लड़ाकू विमान सौदे का सवाल,मोदी जी की चुप्पी सरकार की नाकामी को साबित करती है। देखा जाए तो बीते चार सालों में देश को यदि कोई एक सौगात मोदी सरकार ने वादे के नाम पर दी है तो वह है विश्वासघात।

(लेखक हरियाणा विधानसभा के सदस्य एवं कांग्रेस के मीडिया प्रभारी हैं)