[ डॉ. जयजित भट्टाचार्य ]: अपने दूसरे कार्यकाल के दूसरे बजट में मोदी सरकार ने मौजूदा परिस्थितियों का पूरा ध्यान रखने की कोशिश की है। चूंकि यह बात अब छिपी नहीं रह गई है कि भारतीय अर्थव्यवस्था फिलहाल सुस्ती के दौर से गुजर रही है। ऐसे हालात में मांग की कमी के चलते पस्त पड़े निजी निवेश को देखते हुए सरकार ने खर्च के मोर्चे पर खुद ही पहल की है। इसके लिए राजकोषीय सुदृढ़ीकरण से कुछ छूट जरूर ली गई है, लेकिन साथ ही अपनी तंग झोली को देखते हुए सरकार ने खर्च करने के मामले में भी एक लक्ष्मण रेखा खींचने का प्रयास किया है। यदि इस दिशा में और प्रयास किए जाते तो बजट और प्रभावित करने वाला हो सकता था।

यह बजट निराश नहीं करता

फिलहाल जो हालात बने हुए हैं उन्हें देखते हुए बजट को संतुलित मानते हुए सरकार की सराहना की जानी चाहिए। वैसे भी आम बजट महज वार्षिक वित्तीय लेखाजोखा भर नहीं, बल्कि यह भविष्य को लेकर सरकार का दृष्टिपत्र भी होता है। इसमें सरकार विभिन्न मोर्चों पर अपनी मंशा स्पष्ट कर यह बताती है कि एक बेहतर भविष्य के निर्माण को लेकर उसकी क्या सोच है। इस दृष्टिकोण से भी यह बजट निराश नहीं करता। इसमें सरकार ने कई ऐसी पहल की हैं जिनके भविष्य में बहुत सकारात्मक एवं अनुकूल परिणाम मिल सकते हैं।

अर्थव्यवस्था को गति देने में सरकार की कारगर नीति नहीं आयी काम

जहां तक अर्थव्यवस्था को आवश्यक तेजी देने की बात है तो इसके लिए सरकार पिछले कुछ समय से भारतीय रिजर्व बैंक की ओर ताकती रही। रिजर्व बैंक ने भी नीतिगत दरों में उत्तरोत्तर कटौती करके सरकार को निराश भी नहीं किया। हालांकि इससे भी निजी निवेश में कोई तेजी नहीं आई, उल्टे मुद्रास्फीति बढ़ने से रिजर्व बैंक को अपनी इस रणनीति पर पुनर्विचार ही करना पड़ा। वैसे भी आर्थिक गतिविधियों को तेजी देने के मामले में मौद्रिक नीति की अपनी एक सीमा होती है, ऐसे में पूरा दारोमदार राजकोषीय नीति पर आ जाता है। बजट के रूप में सरकार के पास एक बढ़िया अवसर था, लेकिन इसका वह और भी बेहतर तरीके से इस्तेमाल कर सकती थी।

आर्थिक सुस्ती की वजह मांग में कमी होना, आखिर मांग कमजोर क्यों पड़ी

इस पर लगभग आमसहमति है कि आर्थिक सुस्ती के लिए मांग में कमी को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है, लेकिन कोई इसकी पड़ताल करने के लिए तैयार नहीं कि आखिर मांग कमजोर क्यों पड़ी है। बजट भी इसकी कुछ अनदेखी करता दिखा अन्यथा सुपर रिच यानी अति धनाढ्य वर्ग पर कर की दर जरूर कुछ घटाई जाती।

दोतरफा पड़ती मार से वस्तुओं एवं सेवाओं की खपत में ठहराव

असल में उपभोग को बढ़ाने के लिहाज से इस वर्ग की भूमिका बहुत मायने रखती है, लेकिन उस पर दोतरफा पड़ती मार से कई वस्तुओं एवं सेवाओं की खपत में ठहराव देखा जा रहा है। दोहरी मार इसलिए कि एक तो उन पर आयकर की दर अत्यधिक ऊंची है वहीं उनके उपभोग की अधिकांश वस्तुओं को विलासिता वाली मानकर ऊंचा कर वसूला जा रहा है। वैसे भी यह सरकार का वैचारिक विरोध ही दर्शाता है कि वह आर्थिक समीक्षा में संपत्ति सर्जकों को सम्मानित करने की बात करती है, लेकिन उनसे इतना ऊंचा कर वसूलती है।

करदाताओं की सबसे निचली श्रेणी को राहत देने से उत्पादों की बिक्री को कोई खास मदद नहीं मिलेगी

वहीं करदाताओं की सबसे निचली श्रेणी को जो राहत दी गई है, उससे वाहन और कंज्यमूर ड्यूरेबल्स जैसे उन उत्पादों की बिक्री को बहुत ज्यादा सहारा मिलने की उम्मीद नहीं जो क्षेत्र सबसे ज्यादा मुश्किल क्षेत्र झेल रहे हैं जबकि अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने की इन क्षेत्रों की क्षमता बहुत अधिक है। हालांकि आयकर के मोर्चे पर मिलने वाली छूट के प्रावधान खत्म करने की दिशा में कदम बढ़ाकर सरकार ने एकदम सही दिशा पकड़ी है जो प्रत्यक्ष कर संहिता यानी डीटीसी की अनुशंसा के अनुरूप ही है।

रक्षा बजट को कुछ और घटाया जा सकता था, इसमें चीन से सीख ली जा सकती है

इसके साथ ही यह और तार्किक होता कि सरकार कुछ मदों में कटौती करके उन क्षेत्रों के लिए आवंटन अधिक बढ़ाती जिनसे खपत और मांग को तेजी देने में मदद मिलती। मिसाल के तौर रक्षा बजट को कुछ और घटाया जा सकता था। इसमें चीन से सीख ली जा सकती है। चीन की साम्यवादी सरकार ने पीएलए यानी चीनी सेना को दो-टूक कह दिया था कि जब तक वह आर्थिक महाशक्ति नहीं बन जाता तब तक वह अपनी महत्वाकांक्षी मांगों को लेकर संयम बरते। फिर जब चीन आर्थिक मोर्चे पर सशक्त हो गया तो उसकी सामरिक शक्ति भी स्वाभाविक रूप से बढ़ती जा रही है।

बजट में कुछ सकारात्मक कदमों से अर्थव्यवस्था को लाभ मिलने की उम्मीद

फिर भी बजट में सरकार ने कई सकारात्मक कदम उठाए हैं जिनसे अर्थव्यवस्था को व्यापक रूप से लाभ मिलने की उम्मीद है। समावेशी विकास को मूर्त रूप देने के लिए वंचित वर्ग के लिए चलाई जाने वाली तमाम योजनाओं के लिए खूब दरियादिली दिखाई गई है। बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को लेकर भी सरकार की सोच एकदम स्पष्ट है और इसका फायदा एक साथ कई मोर्चों पर देखने को मिलेगा। इस दिशा में सड़क, बंदरगाह, डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर, जलमार्ग और कृषि एवं संबंधित गतिविधियों के लिए तमाम योजनाएं तैयार की गई हैं।

कुशल एवं अकुशल क्षेत्र में तमाम रोजगार सृजित होंगे

इससे कोर सेक्टर के कई उद्योगों को तो लाभ मिलेगा ही, वहीं कुशल एवं अकुशल क्षेत्र में तमाम रोजगार भी सृजित होंगे। इसके साथ ही आपूर्ति शृंखला की तस्वीर बेहतर होगी और अर्थव्यवस्था की क्षमताओं में खासा सुधार होगा। वैसे सरकार केवल भौतिक बुनियादी ढांचा ही नहीं, बल्कि सामाजिक अवसंरचना को सशक्त बनाने के लिए भी प्रतिबद्ध दिखाई पड़ती है।

डिजिटल अर्थव्यवस्था को लाभ मिलने से नई किस्म के रोजगार सृजित होंगे

क्वांटम कंप्यूटिंग जैसी नई तकनीक में निवेश को लेकर भी उसने 8,000 करोड़ रुपये से अधिक खर्च करने की योजना बनाई गई है जिससे डिजिटल अर्थव्यवस्था को बहुत लाभ मिलेगा और नई किस्म के रोजगार सृजित होंगे। अपने उपेक्षित इतिहास के गौरवशाली पुनरावलोकन पर खर्च बढ़ाने की सरकारी पहल भी बहुत सराहनीय है। यदि सरकार बैंकिंग और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों यानी एनबीएफसी के लिए किसी विशेष कार्ययोजना का एलान कर कर्ज प्रवाह को सुगम बनाने का खाका खींचती तो और बेहतर होगा। फिर भी वह इस मुश्किल माहौल में सभी पहलुओं का ध्यान रखकर संतुलित बजट पेश करने में कामयाब हुई है।

( लेखक सेंटर फॉर डिजिटल इकोनॉमी पॉलिसी रिसर्च के प्रेसिडेंट हैं )