[हर्षवर्धन त्रिपाठी]। CoronaGovtSteps: रविवार 22 मार्च को इतिहास में एक ऐसी तारीख के तौर पर याद किया जाएगा, जिस दिन दुनिया ने भारतीयों की सामूहिक शक्ति का नाद सुना। पूरा देश ताली, थाली और शंख के नाद के लिए एक साथ शाम पांच बजे पांच मिनट के लिए इकट्ठा हो गया। यह वो स्वस्थ प्रतिस्पर्धा थी जिसमें साथ खड़े होकर भी हर कोई आगे रहने की कोशिश कर रहा था। यह सामान्य बात नहीं है।

दरअसल देश को इस तरह से एकजुट होने की जरूरत बहुत लंबे समय से थी। 2010 में जब देश के शीर्ष दस उद्योगपतियों ने तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को चिट्ठी लिखकर सरकारी नीतियों में भरोसा न होने की बात लिखी थी, तभी से देश को एकजुट करने वाले एक मजबूत नेता की जरूरत थी।

भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई : गांधी परिवार ने सत्ता को कुछ इस तरह बनाए रखा था कि प्रधानमंत्री पद में देश का भरोसा लगभग शून्य हो चला था। देश ने 2014 के आम चुनावों में नरेंद्र मोदी में भरोसा देखा जो देश को एकजुट कर सकते थे और वही भरोसा दोबारा 2019 में भी देश की जनता ने देखा। 2014 से 2019 में नरेंद्र मोदी सरकार के किए गए निर्णयों पर ही देश की जनता ने 2019 के आम चुनावों में दोबारा भरोसा किया था और सबसे महत्वपूर्ण बात यही रही कि ज्यादातर फैसले आर्थिक नीतियों से जुड़े हुए थे। बरसों से लटके पड़े आर्थिक सुधारों को नरेंद्र मोदी की सरकार ने 2014 से 2019 के बीच बेहिचक लागू किया और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई को मजबूती से लड़ी।

मोदी सरकार के खिलाफ मुहिम : नरेंद्र मोदी को यह जानकारी थी कि भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई का सकारात्मक परिणाम लोगों को दिखने में समय लगेगा, लेकिन कमजोर लोगों पर भ्रष्टाचार के खिलाफ होने वाली लड़ाई का बुरा प्रभाव बहुत जल्दी नजर आने लगेगा। भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई का सबसे पहला दुष्प्रभाव काले धन के प्रभाव से चल रहे उद्योगों की रफ्तार में कमी आने के साथ दिखा और उसका असर भी कमजोर लोगों पर उनकी दिहाड़ी मजदूरी जाने से कार्यालय में बैठकर की जाने वाली नौकरियों में कमी के तौर पर दिखा।

इसीलिए नरेंद्र मोदी ने कड़े आर्थिक सुधारों के साथ ही उन सुधारों के बुरे प्रभाव से लोगों को बचाने के लिए ढेर सारी सामाजिक योजनाएं शुरू कीं। इससे नरेंद्र मोदी के पक्ष में अच्छी बात यह हुई कि भ्रष्टाचार के खिलाफ सरकार की लड़ाई से परेशान भ्रष्टाचारी वर्ग की मोदी सरकार के खिलाफ मुहिम बहुत कामयाब नहीं हो सकी। इसीलिए 2019 में आर्थिक रफ्तार कम होने, नौकरियों में कमी आने और दूसरे आर्थिक मानकों पर चिंताजनक तस्वीर देखने के बाद भी मध्यम और निम्न वर्ग ने नरेंद्र मोदी में भरोसा बनाए रखा और उसका परिणाम 2019 के नतीजों के तौर पर दिखा।

देश में मुसलमानों के मन-मस्तिष्क में जहर : हालांकि राजनीतिक सत्ता जाने से दुखी वामपंथियों और कट्टर इस्लामिक ताकतों को समर्थकों और विरोधियों का नरेंद्र मोदी पर इतना तगड़ा भरोसा चुभ रहा था। इसी चुभन को उन्हें निकालने का अवसर मिल गया नागरिकता कानून के विरोध के बहाने। देश में मुसलमानों के मन-मस्तिष्क में जहर भरा गया। भरा गया जहर सिर्फ शाहीन बाग की शक्ल में नहीं दिखा, दिल्ली में दंगों की भवायह शक्ल में भी यह दिखा। मोदी समर्थक भी ज्यादा कट्टर हो गए, पूरे देश में विभाजन की स्पष्ट रेखा खिंच गई। इस विभाजन की रेखा से समाज में कटुता तो बढ़ी ही, देश का एकजुट होकर खड़े होने का भरोसा कमजोर हो रहा था। फिर 22 मार्च, 2020, रविवार के दिन शाम पांच बजे देश अचानक एकजुट खड़ा हो गया, उसी नेता के कहने पर जिसे 2010 के बाद टूटे भरोसे में 2014 और 2019 में देश की जनता ने प्रचंड बहुमत से चुना था। अब असली बात समझने की जरूरत है।

कोरोना महामारी से भारत को बड़ी आर्थिक चोट : दुनिया भर में आर्थिक मुश्किलों और देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई की वजह से हिले आर्थिक तंत्र की वजह से पहले ही भारतीय अर्थव्यवस्था मुश्किल में थी और अब दुनिया में फैली कोरोना महामारी से भारत को बड़ी आर्थिक चोट लगने वाली है। फिलहाल देश को कोरोना से बचाना है और इसके लिए देश में हर कोई अपने घर में रहे, यही सबसे जरूरी है। अपनी जान की चिंता और नरेंद्र मोदी जैसे नेता का आह्वान देश को एकसाथ अपने घरों में रहने के लिए तैयार कर रहा है, लेकिन घर में रहने पर आर्थिक गतिविधि पूरी तरह से अवरुद्ध होती दिख रही है। भ्रष्टाचार के खिलाफ सरकार की लड़ाई में सबसे ज्यादा मार जिस निम्न वर्ग पर पड़ी थी, कोरोना के खिलाफ लड़ाई में वही वर्ग बेहाल होता दिख रहा है।

किसानों और गरीबों को भरकम पैकेज : उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने शुरुआत की, उसके बाद दिल्ली, पंजाब और दूसरे राज्य भी राशन के साथ कुछ रकम भी कमजोरों के खाते मे सीधे दे रहे हैं। अब केंद्र सरकार भी किसानों और गरीबों को राहत देने के लिए 1.70 लाख करोड़ रुपये के भारी भरकम पैकेज के साथ आगे आई है। इस समय जनधन खाते आज कमजोरों के लिए वरदान बन रहे हैं, लेकिन समस्या बहुत बड़ी है। इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कोरोना से लड़ाई और देश में आर्थिक मंदी के चक्र को तोड़ने के लिए नीति एक साथ बनानी चाहिए। हालांकि सवाल है कि अब इतनी बड़ी रकम सरकार कैसे जुटाएगी, जब जीएसटी वसूली और दूसरे राजस्व एकदम से कम हो गए हैं। इसका बड़ा सीधा सा रास्ता है और यह रास्ता पांच बजे पांच मिनट के लिए साथ खड़े देश ने दिखाया है। प्रधानमंत्री राहत कोष में योगदान के लिए लोगों से प्रधानमंत्री को अपील करनी चाहिए और सभी योगदान देने वालों को डिजिटल प्रशस्ति पत्र देना चाहिए।

आर्थिक मंदी को दूर करने का मंत्र: कोरोना से लड़ाई में सरकार, उद्योगपति और जनता मिलकर भरोसे के साथ खड़े हो रहे हैं। यह भरोसा कोरोना महामारी को खत्म करने में काम आएगा और कोरोना खत्म होने के बाद यही भरोसा देश में आई आर्थिक मंदी को खत्म करने में भी काम आएगा। कोरोना और उससे होने वाले नुकसान की चुनौती सबसे बड़ी है, इसलिए इसमें अवसर भी सबसे ज्यादा है।

[वरिष्ठ पत्रकार]