प्रो. लल्लन प्रसाद। कोरोना महामारी जनित आर्थिक मंदी से उबरने के लिए पिछले छह माह में केंद्र सरकार और रिजर्व बैंक ने महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। केंद्र सरकार ने अब तक इसके लिए 21 लाख करोड़ से अधिक का प्रावधान किया है। योजना में किसानों, श्रमिकों, पशुपालकों, मछुआरों, कुटीर, लघु, मध्यम और बड़े उद्योगों, छोटे बड़े व्यापारियों और समाज के सभी वर्गो का ध्यान रखा गया है। बैंकों का कर्ज चुकाने के लिए पहले तीन महीने, बाद में और तीन महीने की मोहलत दी गई। इसे और भी आगे बढ़ाया जा रहा है। संभवत: यह कई मामलों में दो वर्षो के लिए भी बढ़ाया जा सकता है।

भारत सरकार ने लोगों को अनेक तरीके से राहत दी है। रिजर्व बैंक ने, जो देश की मुद्रा नीति निर्धारित करती है, लॉकडाउन शुरू होने से अब तक मुद्रा प्रवाह (लिक्विडिटी) में कमी न हो, निवेश के लिए उद्योगों को कम ब्याज पर कर्ज की व्यवस्था हो, बैंकिंग व्यवस्था सुदृढ़ रहे और कीमतें स्थिर रहें, इस उद्देश्य से समय समय पर कदम उठाए हैं। मुद्रा प्रवाह में 3.74 लाख करोड़ की वृद्धि का प्रयास किया गया है। रेपो रेट, रिवर्स रेपो रेट एवं बैंकों के कैश रिजर्व रेशियो में लॉकडाउन के दौरान कमी की गई, ताकि बैंक अधिक कर्ज देने में सक्षम हों, जिसका लाभ निवेशक और आम लोग उठा सकें।

पिछले कुछ दिनों में शेयर बाजार और सोने की कीमतों में जो तेजी देखने को मिली, उसका एक कारण मुद्रा प्रवाह में बढ़ोतरी भी है। किसानों और छोटे उद्योगों ने बड़ी मात्र में बैंकों से कर्ज लिया। सरकार और रिजर्व बैंक द्वारा उठाए गए कदमों का सकारात्मक असर हुआ है, किंतु उतना नहीं जितना अपेक्षित था। महामारी का प्रकोप कायम रहने के कारण सरकार द्वारा तमाम प्रयासों के बावजूद अर्थव्यवस्था पटरी पर नहीं आ रही है। मांग में कमी, बेरोजगारी में वृद्धि, औद्योगिक उत्पादन में कमी, अंतरराष्ट्रीय और स्वदेशी व्यापार में गिरावट, आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में चढ़ाव एवं ब्याज दर में कमी के बावजूद निवेश में बढ़ोतरी न होने से मंदी की स्थिति बनी हुई है, जिससे भारत ही नहीं, पूरी दुनिया त्रस्त है। विश्व बैंक के नवीनतम अनुमान के अनुसार वर्तमान वित्त वर्ष में वैश्विक उत्पादन में आठ प्रतिशत और प्रति व्यक्ति आय में पांच प्रतिशत की कमी की आशंका है। इतना ही नहीं, लगभग दस करोड़ लोग अति गरीब की श्रेणी में जा सकते हैं। भारत की जीडीपी में सवा तीन प्रतिशत की गिरावट आ सकती है, जबकि अप्रैल 2020 में गिरावट का अनुमान डेढ़ से पौने तीन प्रतिशत तक दिया गया था।

जुलाई में खाने पीने की चीजों की कीमतों में करीब दस प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई, जबकि अन्य कई पदार्थो की कीमतों में गिरावट आई, किंतु खाद्य पदार्थो की बढ़ी कीमतों के कारण सूचकांक बढ़ गया। शहरों की अपेक्षा गांवों में कीमतों में अधिक बढ़ोतरी देखी गई। लॉकडाउन पूरी तरह से न हटने के कारण वस्तुओं की ढुलाई पर अधिक खर्च भी मुद्रास्फीति का कारण रहा है। इस बीच दो प्रमुख कारणों से यातायात व्यवस्था भी बाधित रही- देश के बड़े हिस्से में बाढ़ एवं अनेक शहरों में सप्ताहांत के दो दिनों का लॉकडाउन। कीमतों में बढ़त, किंतु वस्तुओं की मांग में कमी ने अर्थव्यवस्था को स्फीति मंदी (स्टैगफ्लेशन) की स्थिति में ला दिया है, जिससे उबरने के लिए लोगों की क्रय शक्ति एवं अधिक खरीद की इच्छा बढ़ाने की आवश्यकता है। रिजर्व बैंक के सर्वे के अनुसार महामारी के कारण लोगों ने खर्चो पर नियंत्रण रखा है, उपभोक्ता विश्वास सूचकांक मई में 63.7 था, जो जुलाई में घटकर 58.3 पर आ गया।

कोविड जनित मंदी पिछले सौ वर्षो में विश्व में आई बड़ी मंदियों में से एक है और कई मायनों में उन सबसे भिन्न है। पहले की मंदियों का मूल कारण या तो वस्तुओं की मांग में या पूíत में भारी कमी का होना था। मंदी में कीमतों में गिरावट होती थी। वर्तमान मंदी में मांग और पूíत दोनों में कमी आई है और कीमतों में उछाल आया है। सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा मंदी से निपटने के लिए जो कदम उठाए गए हैं, उनका असर तुरंत कम है, प्रभावशाली होने में समय लग सकता है। मुद्रा प्रवाह में बढ़ोतरी, रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट में कमी, कर्ज भुगतान के लिए समय सीमा में वृद्धि और कर्जो के पुनर्गठन की सुविधाओं के बावजूद निवेश में बढ़ोतरी बहुत कम है। कंपनियां और आम लोग बैंकों से उतना कर्ज नहीं ले रहे हैं, जितनी उम्मीद थी। कर्ज की मांग विकास दर पिछले वित्त वर्ष में 12.9 थी, जो इस वर्ष घट कर 6.28 पर आ गई है। हाल ही में प्रकाशित एक सर्वे के अनुसार 55 प्रतिशत लघु एवं मध्यम इकाइयों के लिए लिक्विडिटी अभी भी सबसे बड़ी समस्या है।

बैंक भी कर्ज देने से पहले बहुत सोच समझकर कदम आगे बढ़ा रहे हैं। बैंकों द्वारा दिए गए 94 लाख करोड़ स्टैंडर्ड ऋण के सवा छह प्रतिशत के भुगतान में कई माह की देरी हो चुकी है। मांग में कमी से कल कारखानों में क्षमता से बहुत कम उत्पादन हो रहा है। रोजगार के अवसर बहुत धीरे धीरे बढ़ रहे हैं। हालांकि देश में लोगों की क्रय शक्ति कम हो गई है। उपभोक्ता विश्वास का सूचकांक गिरा हुआ है। ऐसी स्थिति में नीतियों को प्रभावी तरीके से अमल में लाने के लिए सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक को ठोस कदम उठाने चाहिए। आज प्रशासन में चुस्ती, उद्योगों को प्रोत्साहन और उपभोक्ताओं में विश्वास बढ़ाने की आवश्यकता है।

[पूर्व विभागाध्यक्ष, बिजनेस इकोनॉमिक्स विभाग, दिल्ली विवि]