[डॉ. सूर्यकांत]। पूरी दुनिया इन दिनों कोविड-19 नामक महामारी से जूझ रही है। इसका इलाज खोजने के लिए विश्व भर के वैज्ञानिक रात-दिन एक किए हैं। योगगुरु स्वामी रामदेव ने इसकी आयुर्वेदिक दवा बनाने का दावा किया है। अगर यह कारगर होती है तो आयुर्वेद की महत्ता एक बार फिर स्थापित हो जाएगी। आयुर्वेद दुनिया की सबसे पुरानी चिकित्सा विधा है। आयुर्वेद को नए आयाम तब मिले जब आज से लगभग 2600 वर्ष पहले सुश्रुत ने इसमें शल्य क्रिया जोड़ी। बाद में मर्हिष चरक ने इसका काफी प्रचार-प्रसार किया। सुश्रुत एवं चरक द्वारा बनाए गए मानक, सूत्र, पद्धतियां धीरे-धीरे पूरे विश्व में विभिन्न चिकित्सा पद्धितियों के सूत्रधार बने। आज से 2300 वर्ष पहले ग्रीक के विद्वान हिप्पोक्रेट्स ने भी चिकित्सा के कुछ सूत्र प्रतिपादित किए जो आगे चलकर आधुनिक चिकित्सा के आधार बने। इसे बाद में एलोपैथी मेडिसिन नाम दिया गया।

16वीं शताब्दी से आधुनिक चिकित्सा भारत में आई और धीर-धीरे भारत की मूल चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद कमजोर होती गई। आधुनिक चिकित्सा के आने के बाद इस विधा के मेडिकल कॉलेज भी खोलने की आवश्यकता पड़ी। इसी क्रम में फ्रेंच उपनिवेश के अधीन पांडिचेरी में 1823 में भारत ही नहीं, बल्कि एशिया का सबसे पहला मेडिकल कॉलेज खोला गया। इसके बाद पुर्तगाली उपनिवेश के अंतर्गत गोवा में स्थापित रॉयल हॉस्पिटल को 1842 में मेडिकल कॉलेज में विकसित किया गया। तत्पश्चात ब्रिटिश शासकों ने 1835 में पहले कलकत्ता मेडिकल कॉलेज और बाद में मद्रास मेडिकल कॉलेज की स्थापना की। आगे चलकर अंग्रेजों द्वारा भारत में तीसरा मेडिकल कॉलेज लाहौर में 1860 में खोला गया। इसी श्रृंखला में मेडिकल शिक्षा को आगे बढ़ाने के लिए अंग्रेजों ने किंग जॉर्ज पंचम के 1905 में भारत आगमन के अवसर पर भारत के चौथे मेडिकल कॉलेज किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज का शिलान्यास किया।

ब्रिटिश शासन काल में कई महामारियों से लाखों भारतीयों की मृत्यु

ब्रिटिश शासन काल में भारत में कुपोषण, महामारी और संक्रामक रोगों की भयावहता देखने को मिली। देश में कालरा, स्माल पॉक्स तथा प्लेग से लाखों भारतीयों की मृत्यु हुई। शायद यही कारण था कि अंग्रेजों ने देश की चिकित्सा व्यवस्था को सुदृढ़ किया। 1873 में बर्थ एंड डेथ रजिस्ट्रेशन एक्ट, 1880 में टीकाकरण अधिनियम तथा 1897 में ऐपिडेमिक डिजिजेस एक्ट बनाया गया। 1930 में ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हाईजीन एंड पब्लिक हेल्थ, 1933 में मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया तथा 1939 में पहला रूरल हेल्थ ट्रेनिंग सेंटर एवं ट्यूबरकुलोसिस एसोशिएसन ऑफ इंडिया की स्थापना की गई। इसके साथ ही 1940 में ड्रग एक्ट की स्थापना भी की गई।

पंचवर्षीय योजनाओं में कई मेडिकल कॉलेज खोले गए

आजादी के बाद स्वास्थ्य विभाग के विकास के लिए देश की पंचवर्षीय योजनाओं में विभिन्न योजनाओं को शामिल किया गया, जिसके अंतर्गत स्तरीय सरकारी अस्पतालों का निर्माण तथा नए मेडिकल कॉलेज खोले गए। दिल्ली में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान 1956 में तथा चंडीगढ़ में 1962 में पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीटयूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च की स्थापना की गई। इसके पश्चात चिकित्सा के क्षेत्र में प्रगति काफी धीमी रही। 2004 में अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्रीत्व काल में छह नए आयुर्विज्ञान संस्थानों की नींव रखी गई, जो 2012 में कार्यरत हो पाए। 2013 में एक और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान की नींव रायबरेली में रखी गई। अखिल भारतीय आर्युिवज्ञान संस्थानों की संख्या में उल्लेखनीय प्रगति 2014 से 2019 के बीच हुई। इस दौरान सात नए संस्थान प्रारंभ हुए तथा 14 अन्य संस्थानों को प्रारंभ करने की प्रक्रिया चालू की गई। यह चिकित्सा के क्षेत्र में एक बड़ी छलांग है।

स्वास्थ्य ढांचे के स्तर को किया जाए सुदृढ़

कोविड-19 महामारी के बहाने यह सुनहरा अवसर है कि देश में स्वास्थ्य के ढांचे को स्तरीय एवं सुदृढ़ किया जाए। विश्व चिकित्सा की रैंकिंग में भारत 145वें स्थान पर है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार आधुनिक चिकित्सा के चिकित्सकों एवं जनसंख्या का अनुपात 1:1000 होना चाहिए, जबकि भारत में इसका अनुपात 1:11000 है। इसी प्रकार नर्स एवं जनसंख्या का अनुपात 1:500 होना चाहिए, जबकि भारत मे इसका अनुपात 1:3000 है। भारत में कुल 549 मेडिकल कॉलेज एवं चिकित्सा संस्थान हैं और 566 डेंटल कॉलेज हैं। जिनमें प्रतिवर्ष एमबीबीएस में प्रवेश लेने वाले छात्रों की संख्या 78,333 एवं बीडीएस में प्रवेश लेने वाले छात्रों की संख्या 26,960 है। भारत में कुल 4035 सरकारी हॉस्पिटल एवं 27951 डिस्पेंसरिज संचालित हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में 5624 कम्युनिटी हेल्थ सेंटर एवं 25743 प्राइमरी हेल्थ सेंटर और 1,58,417 सब-सेंटर्स कार्यरत हैं। सेंट्रल गवर्मेंट हेल्थ स्कीम के अंतर्गत 37 शहरों में 288 एलोपैथिक एवं 85 आयुष डिस्पेंसरीज स्थापित की गई हैं। भारत में कुल ब्लड बैंक 3108 तथा आई बैंक 469 हैं।

कोरोना महामारी के चलते विश्व के अनेक देशों का स्वास्थ्य ढांचा हुआ ध्वस्त

विश्व स्वास्थ्य रैंकिंग में शीर्ष दस स्थानों पर आने वाले देश जैसे स्पेन, इटली, अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, रूस आज कोरोना वायरस के संक्रमण से बुरी तरह प्रभावित हैं। इन देशों में चिकित्सा एवं स्वास्थ्य का आधारभूत ढांचा भारत से कहीं बेहतर है। फिर भी महामारी के चलते उनक यह मजबूत ढांचा भी ध्वस्त होता दिख रहा है। भारत को इससे सबक लेते हुए खास तौर पर ग्रामीण स्तर के स्वास्थ्य ढांचे पर विशेष ध्यान देना होगा। आधुनिक चिकित्सा के साथ-साथ भारत की पारंपरिक चिकित्सा विधाओं को भी विकसित एवं मजबूत करने की आवश्यकता है, क्योंकि ये चिकित्सा विधाएं सिर्फ उपचार पर आधारित नहीं हैं, बल्कि बीमारियों से बचाव तथा शरीर की रोगों के प्रति लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता (इम्युनिटी) को बढ़ाने के सिद्धांत पर भी कार्य करती हैं।

 

(लेखक किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय, लखनऊ के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग के प्रमुख हैं)