[श्रीप्रकाश शर्मा]। करीब 23 वर्षों से निर्वासित जीवन गुजार रहे मिजोरम के 35000 ब्रू जनजाति के परिवारों की समस्या का समाधान हाल में तब हुआ जब केंद्र सरकार की पहल पर त्रिपुरा और मिजोरम के बीच एक समझौता हुआ। इस समझौते के तहत ब्रू लोगों को स्थायी रूप से त्रिपुरा में बसाया जाएगा। ब्रू त्रिपुरा की 21 जनजातियों में सबसे बड़ी जनजाति है। इसे रियांग भी कहा जाता है। इसका मूल निवास स्थान म्यांमार और बांग्लादेश का चटगांव माना जाता है।

ब्रू जनजाति असम को छूते हुए मिजोरम के दो जिलों मामित और कोलासिब में भी निवास करती है। यह जनजाति मिजोरम के एक अन्य जिले लूंगलई में भी प्रवास करती है। मिजोरम में ब्रू जनजाति के लोगों की जनसंख्या 40,000 है। वहीं त्रिपुरा में इनकी आबादी 1.30 लाख है। त्रिपुरा और असम में रहने वाले अधिकांश ब्रू हिंदू धर्म के अनुयायी हैं। 88 प्रतिशत ईसाई आबादी वाले मिजोरम में इनका रहना मुश्किल हो रहा था।

1990 में ब्रू लोगों को निर्वाचक सूची से हटाने की मांग

ब्रू और मिजो समुदाय के बीच संघर्ष की शुरुआत तब हुई जब 1990 में ब्रू लोगों को निर्वाचक सूची से हटाने की मांग जोर पकड़ने लगी। मिजो समुदाय का मानना था कि ब्रू लोग मिजोरम के स्थायी निवासी नहीं हैं। इस प्रकार की मांग की प्रतिक्रिया में ब्रू नेशनल लिबरेशन फ्रंट और एक राजनीतिक इकाई ब्रू नेशनल यूनियन का निर्माण हुआ।

ब्रू लोगों का त्रिपुरा की ओर पलायन

इन दोनों संगठनों ने संविधान की छठी अनुसूची के अंतर्गत मिजोरम के ब्रू लोगों के लिए अधिक स्वायत्तता और ब्रू ऑटोनोमस डिस्ट्रिक्ट काउंसिल की मांग रखी। मामित के ब्रू बहुल क्षेत्र में 21 अक्टूबर, 1996 को एक मिजो ऑफिसर की हत्या की पृष्ठभूमि में हिंसक घटनाओं की जो शुरुआत हुई, उसकी लौ तेजी से फैलती गई। इसके फलस्वरूप मिजोरम से ब्रू लोगों के त्रिपुरा की ओर पलायन की शुरुआत हो गई।

ऐसा नहीं है कि त्रिपुरा के अस्थायी शरणार्थी में दो दशकों से भी अधिक अवधि से रहने वाले ब्रू लोगों की समस्याओं को सुलझाने के लिए पूर्व में प्रयास नहीं किए गए, लेकिन वे सफल नहीं हो पाए। हाल के बहुप्रतीक्षित समझौते का सफर भी आसान नहीं रहा।

2010 से की जा रही थी घर वापसी की कोशिश

इतिहास में पीछे मुड़कर देखें तो ब्रू लोगों की घर वापसी के मुद्दे को सुलझाने की कोशिश 2010 से ही की जा रही थी। इस दिशा में पहला प्रयास नवंबर 2010 में किया गया, जिसके फलस्वरूप 1622 ब्रू परिवारों के 8573 सदस्य पहली बार मिजोरम वापस आए। 2011, 2012 और 2015 में भी इस दिशा में प्रयास किए गए, किंतु बड़ी सफलता हाथ नहीं लग पाई।

अंतिम चरण के रूप में 30 नवंबर, 2018 तक इन ब्रू शरणार्थियों को मिजोरम लौट जाना था। सरकार ने उनके पुनर्वास के लिए 500 करोड़ रुपये का प्रावधान किया था, लेकिन दुर्भाग्यवश 328 परिवारों से अधिक अपने घर वापस नहीं हो पाए। इसकी एक बड़ी वजह यही थी कि मिजो लोग उन्हें स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थे।

राहत कार्यक्रमों के लिए केंद्र की ओर से 600 करोड़ रुपये

माना जाना चाहिए कि हाल के समझौते से इस विवादस्पद मुद्दे का अंतिम रूप से समाधान हो जाएगा। इस समझौते के अनुसार केंद्र सरकार ने राहत कार्यक्रमों के लिए 600 करोड़ रुपये अनुमोदित किए हैं। त्रिपुरा ने इन विस्थापित परिवारों के पुनर्वास के लिए 35 एकड़ भूमि देने का भी एलान किया है। त्रिपुरा में इन परिवारों को जनजातीय दर्जा के अतिरिक्त उन्हें मताधिकार भी प्राप्त होगा। त्रिपुरा में विकास और जनकल्याण के लिए चलाए जा रही विभिन्न राज्य एवं केंद्रीय योजनाओं में भी उन्हें समान रूप से अवसर मिलेगा। सरकार द्वारा इन ब्रू परिवारों के भविष्य को ध्यान में रखते हुए इस समुदाय के सदस्यों को फिक्स्ड डिपॉजिट के रूप में चार लाख रुपये की एकमुश्त राशि प्रदान की जाएगी।

नया जीवन शुरू करने के लिए मील का पत्थर

इसके अतिरिक्त प्रत्येक परिवार को त्रिपुरा सरकार द्वारा 1200 वर्गफीट भूमि भी दी जाएगी और आने वाले दो वर्षों तक 5000 रुपये की सहायता राशि प्रदान की जाएगी। मुफ्त राशन के साथ घर बनाने के लिए 1.5 लाख रुपये की सहायता राशि वर्षों से विकास की रोशनी से दूर रहे इन विस्थापित परिवारों के लिए एक नया जीवन शुरू करने की दिशा में मील का पत्थर साबित होगी। इस समझौते का महत्व इसलिए है, क्योंकि इसके पहले तक आम तौर पर शेष देश को यह पता ही नहीं था कि ब्रू लोग कौन हैं और उनकी समस्या क्या है? यह उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार ने ब्रू लोगों को राहत देने की ठोस पहल की। इससे यह दावा सही साबित होता है कि वह पूर्वोत्तर के साथ देश की पुरानी समस्याओं को हल करने के लिए प्रतिबद्ध है।

अवाम ने भी ली राहत की सांस

हम इस सत्य से कदाचित ही इन्कार कर पाएं कि विस्थापित के रूप में किसी नए राज्य में घर बसाने और एक नया जीवन शुरू करना आसान नहीं होता है। भावनात्मक रूप से अपनी ही जमीन और पूर्वजों की विरासत से कटकर किसी समुदाय के सामने केवल खुद की पहचान का प्रश्न ही सिर नहीं उठाता, बल्कि रोजगार, शिक्षा और फिर नए सिरे से खुद के वजूद को एक मजबूत आधार प्रदान करने का मुद्दा भी आत्मपरीक्षण के कई प्रश्न छोड़ जाता है। नए समझौते के तहत ब्रू परिवारों का त्रिपुरा में जो पुनर्वास होने जा रहा है उससे मिजोरम की सरकार के साथ-साथ वहां की अवाम ने भी राहत की सांस ली है।

आज जबकि ब्रू परिवारों के लिए त्रासदी और अनिश्चितता के दिन समाप्त हो चुके हैं और समग्र विकास की एक नई रोशनी उनके जीवन में दस्तक दे रही है तो इस बात की ताकीद करना अनिवार्य हो जाता है कि सरकार द्वारा किए गए वायदे बिना किसी विलंब के अब तक दुख और लाचारी का जीवन गुजार रहे हजारों ब्रू परिवारों को उपलब्ध हो पाएं। इसमें कोई शक नहीं कि इस दिशा में मिजोरम से पलायन के भुक्तभोगी इन परिवारों को भी अपनी सोच और दर्शन में क्रांतिकारी बदलाव लाने की सख्त दरकार है, ताकि लंबे अर्से से मिजोरम और त्रिपुरा के विभिन्न समुदायों के मध्य शांति और सौहार्द का माहौल स्थापित हो 

(लेखक मिजोरम के एक विद्यालय मेंप्राचार्य हैं)