[ब्रिगेडियर आरपी सिंह]। हाल में पाकिस्तान कैबिनेट ने उस फैसले पर मुहर लगा दी जिसके तहत गिलगित-बाल्टिस्तान (जीबी) उसका पांचवां प्रांत कहलाएगा। यह क्षेत्र जम्मू-कश्मीर का हिस्सा है और उस पर पाकिस्तान अवैध रूप से काबिज है। भारत ने इस पर कड़ा प्रतिरोध जताते हुए कहा कि 1947 की विलय संधि के आधार पर जीबी सहित जम्मू-कश्मीर का समूचा भाग भारत का अभिन्न अंग है। पाकिस्तान ने भारत के इस दावे को खारिज कर दिया। पाकिस्तान कैबिनेट के उक्त फैसले के खिलाफ जीबी में व्यापक स्तर पर विरोध प्रदर्शन हुए, जिसमें कई लोग घायल भी हो गए। दुर्भाग्यवश मीडिया में इसे बहुत तवज्जो नहीं मिली। जम्मू-कश्मीर की स्थिति को समझना बहुत महत्वपूर्ण है।

मार्च 1816 तक समूचा जम्मू, कश्मीर घाटी, लद्दाख और बाल्टिस्तान सिख साम्राज्य का हिस्सा था। 1842 में सिख सेना ने पश्चिमी तिब्बत को कब्जा लिया। फिर चीनी-तिब्बती सेना के जवाबी हमले के बाद सिख सेना को लद्दाख लौटना पड़ा और तीन सितंबर, 1843 को चुशूल की संधि हुई। दोनों पक्ष भविष्य में परंपरागत सीमा का सम्मान करने पर राजी हुए। 1846 में पहले आंग्ल-सिख युद्ध में जम्मू के राजा गुलाब सिंह ने सैन्य हमले में जानबूझकर देरी की और इसका नतीजा अंग्रेजों की जीत के रूप में निकला। ईस्ट इंडिया कंपनी ने जम्मू, कश्मीर, लद्दाख और बाल्टिस्तान के इलाके सिख साम्राज्य से हड़प लिए और गुलाब सिंह को सौगात के रूप में दे दिए। 16 मार्च 1846 को हुई अमृतसर की संधि में गुलाब सिंह को जम्मू कश्मीर का शासक बनाया गया। इसके एवज में उन्हें 75 लाख नानकशाही रुपये देना तय हुआ, लेकिन उन्होंने लड़ाई में अंग्रेजों का साथ दिया था इसलिए यह रकम घटाकर 16 लाख रुपये कर दी गई। गुलाब सिंह के उत्तराधिकारियों ने बाद में इसमें हुंजा, पुनेल, यासिन, अस्तोर, चितराल, नागर, इश्कोमन, कुह-गिजर और चिलास को भी शामिल किया।

भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 के अनुसार अन्य रजवाड़ों की तरह जम्मू-कश्मीर को भी यह विकल्प मिला था कि वह भारत या पाकिस्तान में किसी के साथ भी मिल जाए या खुद को स्वतंत्र घोषित करे। महाराजा हरि सिंह ने स्वतंत्र रहने के विकल्प को चुना। उन्होंने भारत और पाकिस्तान दोनों के साथ यथास्थिति की पेशकश की। जल्द ही पाकिस्तान ने पुंछ में हमले को शह दी और 22 अक्टूबर को अपनी सेना के सहयोग से जम्मू-कश्मीर में कबायली घुसपैठ शुरू करा दी। महाराजा ने भारत से सैन्य मदद की गुहार लगाई। भारत ने इसके लिए कुछ शर्तें रखीं। उन्हें स्वीकार करने के बाद ही नेहरू ने सैन्य मदद मुहैया कराई। 26-27 अक्टूबर को विलय की संधि पर हस्ताक्षर के साथ जम्मू-कश्मीर भारत का हिस्सा बना।

शेख अब्दुल्ला को आपात प्रशासन का प्रमुख नियुक्त किया गया। भारतीय सैनिक 27 अक्टूबर को श्रीनगर हवाई अड्डे पर उतरे और कश्मीर घाटी को घुसपैठियों से मुक्त कराया। 15 अगस्त 1947 को अस्तित्व में आए जम्मू-कश्मीर को छह भू-राजनीतिक इकाइयों में विभाजित किया जा सकता है। इनमें जम्मू, कश्मीर घाटी और लद्दाख पर भारत का नियंत्रण है। वहीं जीबी और पाकिस्तान के कब्जे वाला कश्मीर यानी पीओके पाकिस्तान के पास है। छठा हिस्सा अक्साई चिन चीन के कब्जे में है। पाकिस्तान ने जीबी का हिस्सा रही शक्सगम घाटी चीन को दोस्ती की सौगात के रूप में अवैध रूप से सौंपी। पीओके का कुल क्षेत्रफल 13,297 वर्ग किमी और मुजफ्फराबाद उसकी राजधानी है। यहां बहुसंख्यक आबादी सुन्नियों की है। यह इलाका अक्सर आतंकी गतिविधियों के कारण खबरों में रहता है।

इसके उलट जीबी 72,971 वर्ग किमी में फैला बड़ा इलाका है जो सामरिक रूप से भी बहुत महत्वपूर्ण है। यहां तमाम कीमती खनिज मौजूद हैं। पनबिजली में भी यहां अकूत संभावनाएं हैं और चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे की मुख्य कड़ी कराकोरम हाईवे यहीं से गुजर रहा है। सुन्नी बहुल पाकिस्तान और पीओके के उलट जीबी में शिया, नूरबख्शी और इस्माइली बहुतायत में हैं और सुन्नियों की आबादी 28 फीसद है। पाकिस्तान पंजाबी सुन्नियों को यहां बसाकर इलाके की जनसांख्यिकी बदलना चाहता है जिसका स्थानीय लोग पुरजोर विरोध कर रहे हैं। पाकिस्तान ने सेना और आदिवासियों के हमले से पीओके हासिल किया, लेकिन नवंबर,1947 में उसके हाथ जीबी की कमान ब्रिटिश सैन्य अधिकारियों की मिलीभगत से लगी।

गिलगित की सामरिक अहमियत और सोवियत रूस के हमले की आशंका को देखते हुए अंग्रेज सरकार ने 1935 में गिलगित को महाराजा से पट्टे पर लिया। उसका प्रशासन दिल्ली से एक ब्रिटिश अधिकारी के माध्यम से चलता था। उसकी सुरक्षा का जिम्मा ब्रिटिश अधिकारियों वाली गिलगित स्काउट्स के पास था। आजादी के साथ ही अंग्रेजों ने पट्टे को रद करते हुए 1 अगस्त, 1947 को गिलगित महाराजा को वापस लौटा दिया। महाराजा ने ब्रिगेडियर घनसार सिंह को जीबी का गवर्नर बनाया। उन्हें ब्रिटिश भारतीय सेना के अधिकारी मेजर डब्लू ए ब्राउन की सेवाएं भी मिलीं। जैसे ही महाराजा का झुकाव भारत की ओर बढ़ा वैसे ही ब्राउन ने घनसार सिंह की हत्या कर दी और अपने पूर्ववर्ती ब्रिटिश राजनीतिक एजेंट को जीबी के पाकिस्तान में विलय की सूचना दी।

2 नवंबर को मेजर ब्राउन ने पाकिस्तानी झंडा फहराकर पाकिस्तान की सेवा में सक्रिय होने का दावा किया। 16 नवंबर को पाकिस्तान ने उन्हें अपना राजनीतिक दूत नियुक्त किया और स्कार्दू, द्रास, कारगिल और लेह पर हमले के लिए जीबी को बेस के तौर पर इस्तेमाल किया। ब्राउन ने तकनीकी रूप से विद्रोह किया था, जिसके लिए वह सजाए मौत के हकदार थे। वह पाकिस्तान के साथ गहरा जुड़ाव रखते थे और पाकिस्तान छोड़ने की उनकी इच्छा नहीं थी। सेना से पदमुक्त होने के बाद वह कोई बड़ा पद चाह रहे थे। इंपीरियल केमिकल इंडस्ट्रीज में उनकी नियुक्ति हुई और 1949 में उन्हें कोलकाता में तैनाती मिल गई। नेहरू ने उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की, लेकिन सिखों ने उन्हें नहीं बख्शा, क्योंकि वे उन्हें बुंजी में छठी कश्मीर इन्फैंट्री में सिखों के दस्ते को खत्म करने का कसूरवार मानते थे।

एक दिन वह शहर की सड़क पर अधमरे मिले, लेकिन एक डॉक्टर को मिल गए जिनकी मेहरबानी से उनकी जान बच गई। जीबी पर पाकिस्तानी कब्जे को स्थानीय लोग कभी नहीं पचा पाए। अब वह उसे अपना पांचवां प्रांत घोषित कर वहां की जनसांख्यिकी में बदलाव के साथ ही चीन को खुश करना चाहता है। प्रधानमंत्री मोदी ने जब लाल किले के प्राचीर से यहां के लोगों पर पाकिस्तानी अत्याचारों का जिक्र किया था तो उन्हें एक उम्मीद बंधी थी। हालांकि उसके बाद कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। वहां अलगाववाद की चिंगारी सुलग रही है। भारत का दायित्व बनता है कि वह स्थानीय लोगों को नैतिक, कानूनी और राजनीतिक रूप से मदद मुहैया कराए। अगर भारत जीबी में लोगों से वैसे ही जुड़े जैसे पाकिस्तान कश्मीर में जुड़ गया है तो उसकी आजादी का रास्ता खुल सकता है। पाकिस्तान को उसकी भाषा में ही सबक सिखाने की जरूरत है।

(लेखक सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारी हैं)