[प्रदीप]। Genome Mapping : हाल ही में विज्ञान एवं तकनीकी मंत्रालय ने एक परियोजना के तहत जैव-प्रौद्योगिकी विभाग को भारत के बीस हजार लोगों के जीनोम की सिक्वेंसिंग यानी अनुक्रमण किए जाने की योजना को मंजूरी दी है। यह पहला मौका होगा जब भारत में इतने बड़े स्तर पर जीनोम के गहन अध्ययन के लिए खून के नमूने एकत्रित किए जाएंगे। इसके लिए ‘जीनोम इंडिया’ प्रोजेक्ट की शुरुआत कर दी गई है। 240 करोड़ लागत वाली इस महत्वाकांक्षी परियोजना को भारत की आनुवंशिक विविधता के निर्धारण की दिशा में पहला प्रयास माना जा रहा है।

हम जीव विज्ञान की सदी में रह रहे हैं। अगर 20वीं सदी भौतिक विज्ञान की सदी थी तो 21वीं सदी जैव-प्रौद्योगिकी यानी बायोटेक्नोलॉजी की होगी। पिछले दो-तीन दशकों में जैव-प्रौद्योगिकी में, विशेषकर आणविक जीव विज्ञान के क्षेत्र में चमत्कृत कर देने वाले नए अनुसंधान तेजी से बढ़े हैं। ऐसा स्वास्थ्य, कृषि, पर्यावरण, खाद्य सुरक्षा, उद्योग आदि क्षेत्रों में, जिनके केंद्र बिंदु में जीव जगत है, के सतत मांग की वजह से मुमकिन हुआ है।

दो अक्षरों का शब्द ‘जीन’ : मात्र दो अक्षरों का शब्द ‘जीन’ आज मानव इतिहास की दशा और दिशा बदलने में समर्थ है। जीन सजीवों में सूचना की बुनियादी इकाई और डीएनए का एक हिस्सा होता है। जीन इस लिहाज से स्वार्थी होते हैं कि उनका एकमात्र उद्देश्य होता है स्वयं की ज्यादा से ज्यादा प्रतिलिपियों को अगली पीढ़ी में पहुंचाना। इसलिए जीन माता-पिता व पूर्वजों के गुण और रूप-रंग संतान में पहुंचाता है। कह सकते हैं कि काफी हद तक हम वैसा ही दिखते हैं या वही करते हैं, जो हमारे शरीर में छिपे सूक्ष्म जीन तय करते हैं। डीएनए के उलट-पुलट जाने से जींस में विकार पैदा होता है और इससे आनुवांशिक बीमारियां उत्पन्न होती हैं, जो पीढ़ी-दर- पीढ़ी बच्चों को अपने पुरखों से विरासत में मिलती हैं।

‘ह्यूमन जीनोम प्रोजेक्ट’ : मानव शरीर में जीनों की संख्या अस्सी हजार से एक लाख तक होती है। इस विशाल समूह को ‘जीनोम’ नाम से जाना जाता है। जीनोम के अध्ययन को जीनोमिक्स कहा जाता है। चूंकि शरीर में क्रियाशील जीन की स्थिति ही बीमारी विशेष को आमंत्रित करती है, इसलिए वैज्ञानिक लंबे समय से मनुष्य की जीन कुंडली को पढ़ने में जुटे हैं। 1988 में अमेरिकी सरकार ने अपनी ‘ह्यूमन जीनोम प्रोजेक्ट’ की शुरुआत की। मानव आनुवंशिकी और जीनोम विश्लेषण पर इस सबसे बड़ी परियोजना को वर्ष 2003 में पूरा किया गया। वैज्ञानिकों ने इस प्रोजेक्ट के जरिये इंसान के पूरे जीनोम को पढ़ा। इस परियोजना का लक्ष्य जीनोम सिक्वेंसिंग के जरिये बीमारियों को बेहतर ढंग से समझने, दवाओं के शरीर पर प्रभाव की सटीक भविष्यवाणी, फोरेंसिक विज्ञान में उन्नति और मानव विकास को समझने में मदद हासिल करना था।

जैव प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा बीस हजार लोगों के जीनोम की सिक्वेंसिंग किए जाने की योजना ने जीनोमिक्स के क्षेत्र में भारत के प्रवेश की भूमिका तैयार कर दी है जिससे चिकित्सा विज्ञान में नई संभावनाओं के दरवाजे खुलेंगे। इस परियोजना में बेंगलुरु स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान एवं कुछ भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों सहित लगभग 20 संस्थान शामिल होंगे। जीनोम की सिक्वेंसिंग खून के नमूने के आधार पर की जाएगी। प्रत्येक व्यक्ति के डीएनए में मौजूद एडानीन, गुआनीन, साइटोसीन और थायमीन के सटीक क्रम का पता लगाया जाएगा।

यूनीक जेनेटिक ट्रेट्स : डीएनए सीक्वेंसिंग से लोगों की बीमारियों का पता लगाकर समय रहते इलाज किया जा सकता है। साथ ही भावी पीढ़ी को रोगमुक्त करना संभव होगा। परियोजना में भाग लेनेवाले छात्रों को बताया जाएगा कि क्या उनमें जीन वेरिएंट हैं जो उन्हें कुछ दवाओं के प्रति कम संवेदनशील बनाते हैं। दुनिया के कई देश अब अपने नागरिकों की जीनोम मैपिंग करके उनके यूनीक जेनेटिक ट्रेट्स को समझने में लगे हैं, ताकि किसी बीमारी विशेष के प्रति उनकी संवेदनशीलता के मद्देनजर व्यक्तिगत दवाओं को तैयार करने में मदद मिल सके।

भविष्य में कौन सी बीमारी हो सकती है : मानव जीनोम को अनुक्रमित किए जाने के बाद प्रत्येक व्यक्ति की अद्वितीय आनुवंशिक संरचना तथा रोग के बीच संबंध को लेकर वैज्ञानिकों को एक नई संभावना दिख रही है। जीनोम अनुक्रम को जान लेने से यह पता लग जाएगा कि कुछ लोग कैंसर, कुछ मधुमेह और अल्जाइमर और अन्य बीमारियों से ग्रस्त क्यों होते हैं। हम यह जान सकते हैं कि किसको कौन सी बीमारी हो सकती है और उसके क्या लक्षण हो सकते हैं। जीनोम मैपिंग से बीमारी होने का इंतजार किए बगैर व्यक्ति की जीन-कुंडली को देखते हुए उसका इलाज पहले से शुरू किया जा सकेगा। इसके माध्यम से पहले से ही पता लगाया जा सकेगा कि भविष्य में कौन सी बीमारी हो सकती है। वह बीमारी न होने पाए तथा इसके नुकसान से कैसे बचा जाए इसकी तैयारी आज से ही शुरू की जा सकती है।

एक विजन तथा कुशल नेतृत्व की आवश्यकता : लगभग दस हजार बीमारियां हैं जिनमें सिस्टिक फाइब्रोसिस, थैलेसीमिया शामिल हैं, जिनके होने का कारण एकल जीन में खराबी को माना जाता है। जीनोम थेरैपी के जरिये दोषपूर्ण जीन को निकाल कर स्वस्थ जीन को रोपित करना संभव हो सकेगा। अब समय आ गया है कि भारत अपनी खुद की जीनोमिक्स क्रंति की शुरुआत करे। तकनीकी समझ और इसे सफलतापूर्वक लॉन्च करने की क्षमता हमारे देश के वैज्ञानिकों तथा औषधि उद्योग में मौजूद है। इसके लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक विजन तथा कुशल नेतृत्व की आवश्यकता है।

[विज्ञान विषय के जानकार]