[ संजय गुप्त ]: राजस्थान में कांग्रेस की अशोक गहलोत सरकार का मुश्किल में फंसना हैरान नहीं करता, क्योंकि उसकी स्थिरता को लेकर अंदेशा उसके गठन के समय ही उभर आया था। इसका कारण था कांग्रेस का अपने बलबूते बहुमत न हासिल कर पाना। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट के रिश्ते कभी सामान्य नहीं दिखे। अब तो खुद गहलोत कह रहे हैं कि करीब डेढ़ साल से उनकी सचिन पायलट से कोई बात नहीं हुई। क्या इससे विचित्र और कुछ हो सकता है कि मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री के बीच कोई बात न हो। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि यदि कांग्रेस सरकार बनाने की स्थिति तक पहुंच सकी तो इसके पीछे सचिन पायलट का बड़ा हाथ है।

गहलोत को पायलट का उप मुख्यमंत्री बनना रास नहीं आया, सचिन अनमने ढंग से ही काम कर रहे थे

जब यह माना जा रहा था कि वह मुख्यमंत्री बन सकते हैं तब राहुल गांधी ने गहलोत को वरीयता दी-ठीक वैसे ही जैसे मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य के मुकाबले कमलनाथ को दी थी। यह तब हुआ जब सचिन और सिंधिया राहुल की युवा टोली के विशेष सदस्य थे। चूंकि अशोक गहलोत को सचिन पायलट का उप मुख्यमंत्री बनना रास नहीं आया इसलिए उन्होंने उनके पर कतरने शुरू कर दिए। सचिन अनमने ढंग से ही उप मुख्यमंत्री के तौर पर काम कर रहे थे।

खरीद-फरोख्त मामला: सचिन ने आहत होकर समर्थक विधायकों के साथ हरियाणा में डेरा डाल दिया

कोविड-19 महामारी के चलते जब यह चर्चा शांत पड़ गई थी कि सचिन सिंधिया की राह पर जा सकते हैं तब विधायकों की खरीद-फरोख्त के एक मामले में राजस्थान पुलिस ने पूछताछ के लिए सचिन को ही नोटिस थमा दी। इससे आहत होकर उन्होंने समर्थक विधायकों के साथ हरियाणा के एक होटल में डेरा डाल दिया। इससे राजस्थान में हड़कंप मचा और गहलोत ने शक्ति प्रदर्शन के लिए अपने समर्थक विधायकों के साथ बैठक बुलाई। इसमें सचिन को भी बुलाया, लेकिन न तो वह बैठक में गए और न ही उनके समर्थक विधायक।

कांग्रेस नेतृत्व ने गहलोत सरकार को बचाया, लेकिन सचिन को सियासी रूप से कमजोर किया

कांग्रेस नेतृत्व अशोक गहलोत सरकार बचाने के लिए सक्रिय तो हुआ, लेकिन उसने सचिन पर दबाव बनाने के लिए उन्हें उप मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद से हटाने का फैसला भी किया। राजस्थान विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी ने सचिन समर्थक विधायकों को जिस तरह नोटिस भेजी उससे साफ है कि कांग्रेस उनकी सदस्यता खत्म करने की कोशिश में है ताकि सचिन को राजनीतिक रूप से कमजोर किया जा सके। यह मामला अब उच्च न्यायालय पहुंच गया है।

कांग्रेस नेतृत्व भले ही पायलट को अपना नेता बता रहा हो, लेकिन विश्वसनीयता पर हमला भी कर रहा

देखना है कि वहां क्या होता है? कांग्रेस नेतृत्व भले ही सचिन पायलट को अपना नेता बता रहा हो, लेकिन वह उनकी विश्वसनीयता पर हमला भी कर रहा है। लगता है राजस्थान कांग्रेस ही नहीं पार्टी का शीर्ष नेतृत्व भी खेमों में बंट गया है। जब राजस्थान सरकार संकट में है तब राहुल गांधी मोदी सरकार पर हमला करने के लिए वीडियो बनाने में व्यस्त हैं। हालांकि अब कांग्रेस की कमान सोनिया गांधी के हाथों में है, लेकिन माना जाता है कि पार्टी के फैसलों में राहुल की ही चल रही है।

गहलोत पायलट पर भाजपा के हाथों में खेलने का आरोप लगा रहे हैं

इसमें संदेह है कि सचिन समर्थक विधायकों को नोटिस देने का काम कांग्रेस नेतृत्व की मर्जी के बगैर हुआ होगा। अशोक गहलोत सचिन पायलट को नीचा दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं। वह उन पर भाजपा के हाथों में खेलने का आरोप लगा रहे हैं। उन्होंने यह कहकर सचिन पर ही निशाना साधा कि अच्छी अंग्रेजी बोलना भर पर्याप्त नहीं। ज्ञात हो कि सचिन विदेश से पढ़ाई और नौकरी कर लौटे हैं।

लेन-देन के खेल में केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत भी शामिल हैं: कांग्रेस

सचिन के पास 19-20 विधायक ही हैं। इनमें से दो को इस आरोप में पार्टी से निलंबित कर दिया गया है कि वे भाजपा नेताओं से पैसे के लेन-देन की बात कर रहे थे। कांग्रेस का आरोप है कि लेन-देन के इस खेल में केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत भी शामिल हैं। उनकी और सचिन समर्थक विधायक की कथित बातचीत का टेप जारी किया गया है। शेखावत ने इस टेप को फर्जी बताया है।

गहलोत सरकार अभी सुरक्षित नहीं कही जा सकती

पता नहीं सच क्या है, लेकिन गहलोत सरकार अभी सुरक्षित नहीं कही जा सकती। सचिन पायलट की कांग्रेस से बढ़ती दूरी से यही लगता है कि कांग्रेस के पुराने नेता युवा नेताओं को आगे नहीं आने देना चाह रहे हैं। इन युवा नेताओं को राहुल से यह उम्मीद थी कि जब वह अध्यक्ष बनेंगे तो उन्हें मौका मिलेगा और जमीनी राजनीति से कट चुके पुराने नेताओं को किनारे किया जाएगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। युवा नेताओं का कांग्रेस से जिस तरह मोहभंग हो रहा वह पार्टी के भविष्य के लिए शुभ नहीं। इससे कांग्रेस और कमजोर ही होगी।

देश की नब्ज को परखने वाली कांग्रेस आज जमीन से कटी दिख रही है

सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस एक समय देश की नब्ज को बेहतर ढंग से समझती थी, लेकिन आज वह जमीन से कटी दिख रही है। कांग्रेस का लगातार कमजोर होते जाना न केवल उसके, बल्कि देश के लोकतंत्र के लिए अशुभ है।

राहुल मोदी को बदनाम करने की सियासत कर रहे हैं, इससे कांग्रेस पतन की तरफ जा रही है

गांधी परिवार और खास तौर से राहुल जैसी राजनीति कर रहे हैं वह कोई उम्मीद नहीं जगाती। वह महज प्रधानमंत्री मोदी से बदला लेने और उन्हें बदनाम करने की ही राजनीति कर रहे हैं। यह राजनीति कांग्रेस को पतन की तरफ ले जा रही है। इसे खुद कांग्रेसजन भी स्वीकार कर रहे हैं। राहुल ने पहले जिस तरह राफेल सौदे को तूल दिया और अब चीन की आक्रामकता को लेकर मोदी सरकार को कठघरे में खड़ा कर रहे उससे यही लगता है कि उनकी समझ से विपक्षी नेता के तौर पर उलटे-सीधे आरोप उछालना ही राजनीति है। उनके ट्वीट और बयान कोई राजनीतिक बहस छेड़ने के बजाय कांग्रेस की फजीहत ही अधिक कराते हैं।

किसी भी दल में मनमुटाव का निर्वाह सही तरह न हो तो पार्टी में गुटबाजी और बिखराव हो जाता है

किसी भी दल के नेताओं के बीच जब आपसी मनमुटाव बढ़ता है तब केंद्रीय नेतृत्व की भूमिका बढ़ जाती है। यदि इस भूमिका का निर्वाह सही तरह न हो तो पार्टी में गुटबाजी और बिखराव को ही बल मिलता है। आज कांग्रेस में यही हो रहा है। वैसे तो गुटबाजी और मनमुटाव से कोई दल अछूता नहीं, लेकिन जिन दलों का केंद्रीय नेतृत्व कमजोर है वहां हालात ज्यादा खराब हैं।

कांग्रेस में बिखराव रोकने के लिए गांधी परिवार को जनाधार वाले नेताओं को महत्व देना चाहिए

कांग्रेस में बिखराव रोकने का काम गांधी परिवार कर तो सकता है, लेकिन तभी जब वह जनाधार वाले नेताओं को महत्व दे, न कि चाटुकारों और दरबारी संस्कृति वाले नेताओं को। इस तरह की संस्कृति से बचे रहने का कारगर उपाय यही है कि हर स्तर पर नेतृत्व का चयन उसी तरह हो जैसा अमेरिका में प्राइमरी की प्रक्रिया के तहत होता है।

देश में चाटुकारिता संस्कृति फल-फूल रही है और राजनीतिक दल गुटबाजी टूट-फूट से ग्रस्त हो रहे हैं

जिला, राज्य अथवा केंद्र स्तर पर नेता कौन हो, इसका निर्धारण आम लोगों और कार्यकर्ताओं की ओर से होना चाहिए। अपने यहां ठीक उलट स्थिति है और इसी कारण चाटुकारिता संस्कृति फल-फूल रही है और राजनीतिक दल गुटबाजी, बिखराव और टूट-फूट से ग्रस्त होते रहते हैं।

[ लेखक दैनिक जागरण के प्रधान संपादक हैं ]