[ राजेंद्र सिंह ]: गंगा को हमारे समाज में मां का दर्जा हासिल है। इसीलिए उसे गंगा मैया भी कहते हैं। बहरहाल गंगा के विकास के लिए शुरू की गई तमाम योजनाएं ही आज इस नदी का बंटाधार कर रही हैं। आधुनिक घाटों, बांधों, बैराजों और एसटीपी के निर्माण से गंगा की अविरलता-निर्मलता में बाधा पैदा हुई है। जैसे हमारे शरीर के रक्त प्रवाह में बाधा आने से हार्ट अटैक होता है वैसे ही गंगा पर बैराज बनने से नदी का जल प्रवाह रुक गया है। विडंबना यही है कि गंगा के रक्त प्रवाह की बीमारी का इलाज दंत चिकित्सक से कराया जा रहा है। परिणामस्वरूप दिन-प्रतिदिन गंगा की हालत सुधरने के बजाय बिगड़ती जा रही है। जबकि इलाज के नाम पर बेइंतहा पैसा खर्च किया जा रहा है। गंगा प्राधिकरण ने जिन कामों को दस वर्ष पहले रोक दिया था अब नमामि गंगे में उन्हीं कार्यों को टुकड़ों-टुकड़ों में किया जा रहा है।

वर्ष 2014 में गंगा के लिए सबसे ज्यादा समर्पित और सक्षम व्यक्ति प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दिखते थे, लेकिन अब चार वर्ष बीत जाने के बाद इस प्रतिबद्धता के ठोस परिणाम नहीं दिखे हैं। अब गंगा के उपचार के लिए हमें प्रो. जीडी अग्रवाल जैसे सक्षम और समर्पित व्यक्ति चाहिएं जो गंगा को निर्मल बनाने का विज्ञान समझते हैं। वह गंगा के सांस्कृतिक आध्यात्मिक पहलू को भी जानते हैं। वही गंगा की अविरलता और निर्मलता के विज्ञान को भी जानते हैं। अविरलता-निर्मलता के साम्य को समझे बिना गंगा की चिकित्सा नहीं हो सकती।

गंगा दुनिया की दूसरी नदियों से अलग विशिष्टताओं वाली नदी है। गंगा जल विशिष्ट है। आधुनिक भारत में सैकड़ों शोध हुए हैं जिनसे यह विशिष्टता सिद्ध हुई है। जैसे कानपुर से 20 किलोमीटर ऊपर बिठूर से लिए गंगाजल में कॉलिफोर्म नष्ट करने की विलक्षण शक्ति मौजूद है जो कानपुर के जल आपूर्ति कुएं में आधी रह जाती है और यहां के भूजल में यह शक्ति शून्य हो जाती है। यह गंगाजल में मौजूद सूक्ष्म कणों (बायोफाज्म) के कारण है। हरिद्वार के गंगा जल में बीओडी को नष्ट करने की जबरदस्त क्षमता है। इसका क्षय करने वाले तत्वों का सामान्य जल से 16 गुना अधिक है।

यह हिमालय की वनस्पतियों से आए अंशों के कारण संभव है। भागीरथी के जल में धातुओं के एक विशिष्ट मिश्रण की शक्ति का पता चला है। ऐसा मिश्रण संसार में अभी तक कहीं नहीं मिला है। टिहरी बांध से ऊपर गंगा जल में जिन विशेष तत्वों की मौजूदगी थी वे अब गाद के साथ पीछे बैठ गए और बांध के नीचे आने वाले जल में कोलीफॉर्म नाशक या सड़न नाशक क्षमता शून्य रह गई है।

2017 में गंगा के डीएनए विश्लेषण से पता चलता है कि ऊपरी गंगा गाद में बीसों रोगों के रोगाणुओं को नष्ट करने की अद्भुत शक्ति है। इसमें 18 रोगाणु प्रजातियां जिनमें टीबी, हैजा, पेट की बीमारियां और टाइफाइड शामिल है। गंगा जल की ये सभी विशेषताएं पहले गढ़मुक्तेश्वर तक कुछ अंशों में मिलती थीं, लेकिन अब उद्योगों से निकले रासायनिक कचरे के कारण हरिद्वार और गढ़मुक्तेश्वर के जल में अब काफी समानताएं देखने को मिलती हैं।

केंद्रीय जल बोर्ड और जल संसाधन मंत्रालय के अधिकारी गंगा जल की विशिष्टताओं को समझकर गंगा का इलाज करने में सक्षम नहीं है। इसके लिए जीडी अग्रवाल जैसे व्यक्ति ही सक्षम हैं। चूंकि मौजूदा सरकार के साथ उनकी पटरी मेल नहीं खाती, लिहाजा यह जुगलबंदी नहीं बन पा रही है। गंगा नदी का सही इलाज इसलिए नहीं हो पा रहा है, क्योंकि सरकारें गंगा के लिए चिकित्सक ढूंढते समय अपना और पराया देखती हैं।

गंगा को स्वच्छ बनाने पर सरकार ने करोड़ों रुपये खर्च किए हैं, लेकिन वह रकम एक तरह से बर्बाद ही कही जाएगी। कोई भी जल संशोधन संयंत्र ठीक से नहीं चल रहा है। सभी संयंत्रों के स्थान चयन में भी गड़बड़ हुई है। शायद संयंत्र स्थापना में भी भ्रष्टाचार हुआ है। जहां संयंत्र लग सकता है वहां घाट बनाए जा रहे हैं। घाटों का निर्माण भी वैज्ञानिक तरीकों से गलत है। इस मामले में जिन अधिकारियों ने लापरवाही बरती यदि उनके साथ सख्ती की गई होती तो शायद दूसरे भी मुस्तैदी दिखाते। अधिकारियों के लिए गंगा माई नहीं कमाई है। इसीलिए अधिकारी माई से कमाई करके फल-फूल रहे हैं। एक भी अधिकारी को जेल नहीं भेजा गया। यदि ऐसे कुछ अधिकारियों पर सख्ती कर दी गई होती तो बाकियों की अकल भई ठिकाने आ जाती।

अब गंगा के लिए जहां जिस काम की जरूरत है, वहां वह काम नहीं होता है। आज गंगा के नाम पर सारा पैसा स्मार्ट सिटी के तहत एसटीपी बनाने और घाटों के निर्माण पर खर्च हो रहा है। यह तो शहरों का काम है गंगा का नहीं। जो अधिकारी इस मुहिम में लगे हैं उन्हें प्रधानमंत्री सीधे दंडित करें। वहीं गंगा को अविरल-निर्मल बनाने वाले की दिशा में काम करने के लिए सक्षम और और समर्पित लोगों को जुटाकर गंगा के काम में लगाएं। गंगा को अविरल और निर्मल बनाने का पहला काम संसद में कानून पास करना है। इस कानून का प्रारूप सरकार के पास मौजूद है। इस गंगा कानून को सभी दल पारित कराने के लिए तत्पर होंगे, लेकिन भारत सरकार को इस दिशा में पहल करने की जरूरत है।

मानसून सत्र में यह अभी तक पेश नहीं हुआ है जबकि इसका प्रारूप सरकार के पास तैयार है। शायद मंत्रालय के अधिकारी यह प्रारूप मंत्री को नहीं सौंप रहे हैं। ऐसे सभी अधिकारियों को चाहिए कि वे अपनी जिम्मेदारी समय पर पूरी करें। गंगा एवं राष्ट्र हित में अपना फर्ज निभाएं। सरकार को गंगा की संवेदनाओं को समझकर अविरलता-निर्मलता सुनिश्चित करने वाला एक अधिनियम बनाना चाहिए। तभी प्रो. जीडी अग्रवाल के प्राण बचेंगे।

गंगा जल विशिष्टता को संरक्षण प्रबंधन में अनदेखी और देरी करने वाले को जेल हो। गंगा के प्रवाह को समझे बिना गंगा के किनारों पर जो घाट बने हैं उनसे गंगा के प्रवाह में बाधाएं पैदा हुई हैं। जलशोधन के नाम पर बन रहे शोधन संयंत्रों में मल-जल को संयंत्र तक पहुंचाने की ठीक व्यवस्था नहीं होने के कारण वह पहले की ही तरह गंगा में जाता है। एक तरफ संयंत्र बनाने, दूसरी तरफ पाइप लाइन बिछाने और तीसरी तरफ संयंत्र को चलाने वाली व्यवस्था पर जो खर्च होता है उसे उठाने के लिए स्थानीय तंत्र तैयार नहीं होता। उसमें भयावह तरीके से भ्रष्टाचार बढ़ा है। इससे गंगा कार्यों में सफलता नहीं मिली है।

गंगा को निर्मल बनाने का काम देश के बड़े नेताओं को असंभव लगने लगा है। मोदी ने प्रधानमंत्री बनने से पहले गंगा को अपनी प्राथमिकता बताया था, लेकिन अब उन्होंने गंगा का नाम लेना बंद कर दिया है। गंगा का बीओडी और सीओडी का स्तर बढ़ गया है। उसे ठीक करने के लिए एक ऐसा प्रधानमंत्री चाहिए जो गंगा के लिए पूरी तरह समर्पित हो।

[ जल-जन जोड़ो अभियान से संबद्ध लेखक विख्यात जल संरक्षण कार्यकर्ता हैं ]