[डॉ. मनमोहन वैद्य]। जिस समय स्वर्गीय दत्तोपंत ठेंगड़ी ने भारतीय मजदूर संघ की स्थापना की, वह साम्यवाद के वैश्विक आकर्षण और वर्चस्व का समय था। उस परिस्थिति में राष्ट्रीय विचार से प्रेरित शुद्ध भारतीय विचार पर आधारित एक मजदूर आंदोलन की शुरुआत करना तथा अनेक विरोध और अवरोधों के बावजूद उसे लगातार बढ़ाते जाना यह पहाड़ सा काम था।

श्रद्धा, विश्वास और सतत परिश्रम के बिना यह काम संभव नहीं था। यह उनके सतत परिश्रम का ही परिणाम है कि भारतीय मजदूर संघ, भारत का सबसे बड़ा मजदूर संगठन है। जब श्रमिकों के बीच कार्य प्रारंभ करना तय हुआ, तब उस संगठन का नाम 'भारतीय श्रमिक संघ' सोचा था। परंतु जब इससे संबंधित कार्यकर्ताओं की पहली बैठक में यह बात सामने आई कि समाज के जिस वर्ग के बीच हमें कार्य करना है, उनके लिए 'श्रमिक' शब्द समझना आसान नहीं होगा। कुछ राज्यों में तो इसका सही उच्चारण करने में भी दिक्कत आ सकती है। इसलिए श्रमिक के स्थान पर मजदूर शब्द का उपयोग करना चाहिए।

ठेंगड़ी जी की एक और बात लक्षणीय थी कि वे सामान्य से सामान्य मजदूर से भी इतनी आत्मीयता से मिलते थे, उसके कंधे पर हाथ रखकर साथ चहलकदमी करते हुए उससे बातें करते थे कि किसी को भी नहीं लगता था कि वह एक अखिल भारतीय स्तर के नेता, विश्व विख्यात चिंतक से बात कर रहा है। बल्कि उसे ऐसी अनुभूति होती थी कि वह अपने किसी अत्यंत आत्मीय बुजुर्ग, परिवार के ज्येष्ठ व्यक्ति से मिल रहा है। उनका अध्ययन भी बहुत व्यापक और गहरा था।

अनेक पुस्तकों के संदर्भ और अनेक नेताओं के किस्से उनके साथ बातचीत में आते थे। पर एक बात जो मेरे दिल को छू जाती, वह यह कि कोई एक किस्सा या चुटकुला, जो ठेंगड़ी जी ने अनेक बार अपने वक्तव्य में बताया होगा, वही किस्सा या चुटकुला यदि मेरे जैसा कोई अनुभवहीन, कनिष्ठ कार्यकर्ता कहने लगता तो वे कहीं पर भी उसे ऐसा आभास नहीं होने देते थे कि वे यह किस्सा जानते हैं। यह संयम आसान नहीं है। मैं तो यह जनता हूं, ऐसा कहने का या जताने का मोह अनेक बड़े, अनुभवी कार्यकर्ताओं को होता है, ऐसा मैंने कई बार देखा है। पर ठेंगड़ी जी उसे इस तरह से ध्यानपूर्वक सुनते थे, मानो पहली बार सुन रहे हों। जमीनी कार्यकर्ता से इतना जुड़ाव और लगाव श्रेष्ठ संगठक का ही गुण है।

अपना कार्य बढ़ाने की उत्कंठा, इच्छा और प्रयास रहने के बावजूद अनावश्यक जल्दबाजी नहीं करना, यह भी श्रेष्ठ संगठक का गुण है। वह कहते थे कि कभी जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए। मेरे एक किसान मित्र महाराष्ट्र में शरद जोशी द्वारा निर्मित 'शेतकरी संगठन' नामक किसान आंदोलन में विदर्भ के प्रमुख नेता थे। बाद में उस आंदोलन से उनका मोहभंग हुआ, तब मेरे छोटे भाई के साथ उनकी बातचीत चल रही थी। मेरा भाई भी तब किसानी करता था। मेरे भाई को ऐसा लगा कि किसान संघ का कार्य अभी अभी शुरू हुआ है, तो इस किसान नेता को किसान संघ के साथ जोड़ना चाहिए। उसने मुझसे बात की। मुझे भी यह सुझाव अच्छा लगा। यह एक बड़ा नेता था।

किसान संघ का कार्य ठेंगड़ी जी के नेतृत्व में शुरू हो चुका था। इसलिए यह प्रस्ताव लेकर मैं अपने भाई के साथ नागपुर में ठेंगड़ी जी से मिला। ठेंगड़ी जी उस किसान नेता को जानते थे। मुझे पूर्ण विश्वास था कि किसान संघ के लिए एक अच्छा प्रसिद्ध किसान नेता मिलने से किसान संघ का कार्य बढ़ने में सहायता होगी। इसलिए ठेंगड़ी जी उसे तुरंत आनंद के साथ स्वीकार करेंगे। परंतु पूर्वभूमिका बताकर जैसे ही मैंने यह प्रस्ताव उनके सामने रखा, उन्होंने उसे तुरंत अस्वीकार कर दिया। मुझे बहुत आश्चर्य हुआ। बाद में ठेंगड़ी जी ने मुझसे कहा कि हम इसलिए इस नेता को नहीं लेंगे, क्योंकि हमारा किसान संघ बहुत छोटा है। वह इतने बड़े नेता को पचा नहीं पाएगा और यह नेता हमारे किसान संघ को अपने साथ खींचकर ले जाएगा। हम ऐसा नहीं चाहते हैं।

इस पर मैंने कहा कि यदि किसान संघ उसे स्वीकार नहीं करेगा, तो भाजपा के लोग उसे अपनी पार्टी में शामिल कर चुनाव भी लड़ा सकते हैं। इस पर ठेंगड़ी जी ने शांत स्वर में कहा कि भाजपा को जल्दबाजी होगी, पर हमें नहीं है। उनका यह उत्तर इतना स्पष्ट और आत्मविश्वासपूर्ण था कि यह मेरे लिए यह एक महत्व की सीख थी। ठेंगड़ी जी श्रेष्ठ संगठक के साथ साथ एक दार्शनिक भी थे। भारतीय चिंतन की गहराइयों के विविध पहलू उनके साथ बातचीत में सहज खुलते थे।

मजदूर क्षेत्र में साम्यवादियों का वर्चस्व एवं दबदबा था, इसलिए सभी कामदार संगठनों की भाषा या नारे भी साम्यवादियों की शब्दावली में हुआ करते थे। उस समय उन्होंने साम्यवादी नारों के स्थान पर अपनी भारतीय विचार शैली का परिचय कराने वाले नारे गढ़े। 'उद्योगों का राष्ट्रीयकरण' के स्थान पर उन्होंने कहा कि हम 'राष्ट्र का औद्योगीकरण, उद्योगों का श्रमिकीकरण और श्रमिकों का राष्ट्रीयकरण' चाहते हैं। श्रम क्षेत्र में अनावश्यक संघर्ष बढ़ाने वाले असंवेदनशील नारे 'हमारी मांगे पूरी हो, चाहे जो मजबूरी हो' के स्थान पर उन्होंने कहा 'देश के लिए करेंगे काम, काम के लेंगे पूरे दाम'। यानी श्रम के क्षेत्र में भी सामंजस्य और राष्ट्रप्रेम की चेतना जगाने का सूत्र उन्होंने नारे में इस छोटे से बदलाव से दे दिया। भारतीय मजदूर संघ और भारतीय किसान संघ इस संगठनों के अलावा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, स्वदेशी जागरण मंच, प्रज्ञा प्रवाह, विज्ञान भारती आदि संगठनों की रचना की नींव में ठेंगड़ी जी का योगदान और सहभाग रहा है। उन्होंने भारतीय कला दृष्टि पर जो निबंध प्रस्तुत किया, वह आगे जाकर संस्कार भारती का वैचारिक अधिष्ठान बना।

[सह सरकार्यवाह, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ]