कुशल कोठियाल। 71.05 फीसद वन भूभाग वाले उत्तराखंड के लिए भारतीय वन सर्वेक्षण (एफएसआइ) की हालिया रिपोर्ट राहत और चिंता दोनों साथ लेकर आई है। राहत की बात यह है कि पिछली रिपोर्ट में जहां उत्तराखंड में कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 45.32 फीसद हिस्सा वनाच्छादित था, वह अब 0.11 फीसद की बढ़ोतरी के साथ 45.43 फीसद पर पहुंच गया है। इस वृद्धि पर संतोष किया जा सकता है, लेकिन तस्वीर का दूसरा पहलू चिंताजनक है।

कुल वन क्षेत्र में बढ़ोतरी दर्ज की गई है, मगर 13 जिलों वाले इस सूबे में आठ जिलों में वन क्षेत्र कम हुआ है। यानी पांच जिलों के बूते ही इसमें वृद्धि हुई है। एफएसआइ की रिपोर्ट बताती है कि सघन एवं खुले वन क्षेत्रों में बढ़ोतरी हुई, जबकि आबादी के करीब वाले मध्यम सघन वन क्षेत्र घटे हैं। वन क्षेत्रों में आया यह अंतर वर्ष 2015 से 2017 के मध्य का है। साफ है कि आबादी के करीब वाले वन क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है।

भगत को भाजपा की कमान 

भारतीय जनता पार्टी ने उत्तराखंड में संगठन की कमान बंशीधर भगत को सौंप दी है। 1991 में पहली बार विधायक बने भगत उत्तर प्रदेश में मंत्री रहे। उत्तराखंड के अलग राज्य बनने के बाद भी वह दो बार कैबिनेट मंत्री रहे। भगत की सबसे बड़ी पूंजी उनकी सादगी एवं आमजन को उपलब्धता समझी जाती है। जनता एवं कार्यकर्ताओं में उनकी सीधी पहुंच इसी बूते बनी। वर्तमान में खासतौर पर झारखंड के सबक के बाद पार्टी को ऐसे ही सादे और सधे हुए कार्यकर्ता की तलाश थी। इसके अतिरिक्त क्षेत्रीय, जातीय एवं गुटीय संतुलन की दृष्टि से वह अन्य दावेदारों पर भारी पड़े। वह सरकार में हावी गुट से नहीं हैं, लेकिन सरकार से बेवजह पंगा लेने वाले शख्स भी नहीं हैं।

हाईकमान ने प्रदेश की बागडोर सरकार की गोद में रहने वाले को सौंपने के बजाय बाहर से समन्वय कायम रख सकने वाले को दी है। पार्टी कार्यकर्ताओं का मानना है कि वह संगठन क्षमता की कसौटी पर भले अव्वल न हों, लेकिन आम कार्यकर्ता की सुनने वाले जरूर हैं। प्रदेश भाजपा में मौजूदा दौर में शायद यह कमी महसूस की जा रही है। पार्टी हलकों में प्रदेश में संगठन को गति देने एवं सरकार को सकारात्मक सुझाव देने के लिए नवनिर्वाचित अध्यक्ष को तेज-तर्रार नेताओं की टीम (कार्यकारिणी) की आवश्यकता ज्यादा महसूस की जा रही है। अपनी ही सरकार के सामने पूर्ण समर्पण की मुद्रा भी पार्टी कार्यकर्ताओं को पार्टी के हित में नहीं लगती है। प्रदेश में भाजपा की सरकारों में ही पार्टी कार्यकर्ताओं की सुनवाई न होने का मुद्दा पुराना रहा है।

ढाई साल से कार्यकारिणी का इंतजार 

प्रदेश स्तर पर पार्टी कार्यकारिणी की बात चली तो राज्य में एकमात्र विपक्ष कांग्रेस की हालत तो बद से बदतर है। प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह को निर्वाचित हुए ढाई साल से ज्यादा वक्त होने को है, लेकिन वह अपनी कार्यकारिणी का गठन नहीं कर पाए हैं। कभी हरीश रावत के खासमखास रहे प्रीतम को हरदा गुट के ही लोगों ने इस स्थिति में ला खड़ा कर दिया है।

तीन साल बाद मंत्रिपरिषद का विस्तार 

प्रदेश सरकार में मंत्रिपरिषद में तीन सीटें खाली हैं। दो पद तो पहले से ही रिक्त पड़े थे, लेकिन एक पद पिथौरागढ़ विधायक प्रकाश पंत के आकस्मिक निधन से रिक्त हो गया। इस समय कुल मिला कर मुख्यमंत्री छह कैबिनेट मंत्रियों एवं दो राज्यमंत्रियों के साथ सरकार चला रहे हैं। विधानसभा में ऐतिहासिक बहुमत के बावजूद रिक्त पड़े पदों पर पार्टी के भीतर एवं बाहर सवाल उठते रहे, लेकिन सरकार और हाईकमान इस स्थिति को विधायक दल में अनुशासन कायम रखने का अचूक यंत्र मानती रही। तीन खाली सीटों को लेकर सपना पाल रहे विधायक शांत भी हैं और मुख्यमंत्री के पीछे भी खड़े हैं।

जब सब भर जाएगा तो बहुत संभव है कि विधायक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का असीमित आनंद लेते हुए पार्टी एवं सरकार के लिए परेशानी खड़ी करें। बस इसी चिंता में सरकार को तीन साल होने को हैं तथा तीनों सीटें खाली हैं। अब जा कर मुख्यमंत्री तीन पदों को भरने को लेकर सक्रिय हुए हैं। बताया जा रहा है कि आला नेता अमित शाह एवं प्रधानमंत्री से उनकी इस संबंध में वार्ता भी हो गई है। प्रदेश के नए अध्यक्ष ने निर्वाचित होने के दूसरे दिन ही बयान दे दिया कि मंत्रिपरिषद में खाली पड़ी सीटें जल्द भरी जानी चाहिए। इसके बाद दावेदार भी सक्रिय हो गए हैं और दिल्ली-दून में अपने-अपने दावे पुख्ता कर रहे हैं।

(लेखक उत्तराखंड के राज्य संपादक हैं)