प्रणय कुमार। जम्मू-कश्मीर की राजनीति के चिर-परिचित प्रतिद्वंद्वी नेशनल कांफ्रेंस और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) राजनीतिक शत्रुता भुलाकर कश्मीर में अपनी खोई हुई जमीन हासिल करने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं। वे जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद-370 हटाए जाने से पूर्व की स्थिति बहाल करने की मांग कर रहे हैं। बीते दिनों अतिवाद की सीमा लांघकर दोनों प्रमुख पार्टयिों के नेताओं ने बयान जारी किए। फारूक अब्दुल्ला तो अनुच्छेद-370 को बहाल करवाने के लिए भारत के शत्रु-देशों से हाथ मिलाने जैसी धृष्टतापूर्ण एवं अराष्ट्रीय बातें कह गए। महबूबा मुफ्ती ने राज्य के अवाम से इस लड़ाई में मदद करने की अपील की है।

चंद राजनीतिक घरानों की अपनी खोई हुई जमीन वापस पाने की मुहिम? : दुख की बात है कि कांग्रेस के नेता पी. चिदंबरम भी उनकी हां में हां मिलते नजर आ रहे हैं। उमर अब्दुल्ला ने भी दोहराया कि राज्य के हित लिए हम लड़ेंगे। क्या सचमुच ये लोग राज्य एवं वहां की अवाम के लिए लड़ रहे हैं? या यह चंद राजनीतिक घरानों की अपनी खोई हुई जमीन वापस पाने की मुहिम है? क्या वहां की जनता इन घरानों के राजनीतिक फायदों के लिए सहयोगी औजार बनने को तैयार होगी? क्या उनकी हताशा इस बात का संकेत नहीं है कि उन्हें वहां की आम जनता का पर्याप्त समर्थन नहीं है? इन सब पहलुओं को समझने के लिए अनुच्छेद-370 एवं 35ए के हटने के बाद वहां की सामाजिक, आíथक, राजनीतिक स्थितियों से लेकर शासन-प्रशासन और उनकी दैनिक कार्यशैली में आए बदलावों को समझना होगा।

सरकार की यह पहल दस्तकारों के लिए मील का पत्थर साबित होगी : 370 की समाप्ति के बाद जम्मू-कश्मीर में सरकारी कार्यो का ठेका अब महज कुछ खास रसूखदारों और राजनीतिक घरानों तक सीमित नहीं रहा है। पंचायतों का चुनाव कराकर पंचायत समिति एवं सरपंचों को अधिकार-संपन्न बनाया जा रहा है। उनके माध्यम से स्थानीय स्तर पर सरकारी योजनाओं को लागू किया जा रहा है। वहां की जनता को इन योजनाओं का सीधा लाभ प्रदान कर उन्हें मुख्यधारा में शामिल किया जा रहा है। सरकारी नौकरियों से लेकर वहां रोजगार के नए-नए अवसर सृजित किए जा रहे हैं। अभी कुछ दिन पूर्व ही जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख के लिए सरकार ने 520 करोड़ रुपये के विशेष पैकेज की घोषणा की है। इसका उद्देश्य वहां की जनता को रोजगार उपलब्ध कराना है। घाटी के हस्तशिल्पियों एवं बुनकरों द्वारा बनाए सामान को दुनिया भर में ऑनलाइन उपलब्ध कराने के लिए फ्लिपकार्ट ने अभी हाल में जम्मू-कश्मीर सरकार के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किया है। सरकार की यह पहल वहां के दस्तकारों के लिए मील का पत्थर साबित होगी।

सरकार की योजना पर्यटन को भी बड़े पैमाने पर बढ़ावा देने की : एक आंकड़े के अनुसार बीते एक वर्ष में जम्मू-कश्मीर के लगभग दस हजार से भी अधिक लोगों को सरकारी नौकरियां दी जा चुकी हैं तथा पच्चीस हजार और नौकरियां दी जाने की योजना है। आइआइटी की स्थापना से वहां के छात्रों को विज्ञान एवं इंजीनियरिंग की शिक्षा के लिए स्थानीय स्तर पर ही बेहतर विकल्प उपलब्ध हुआ है। एम्स के आ जाने से स्वास्थ्य-सेवा में आमूल-चूल सुधार की आस जगी है। चिकित्सालयों में आधुनिक चिकित्सा-उपकरण लगने के अलावा डॉक्टरों की भी कमी को दूर करने के प्रयास में तेजी आई है। सरकार की योजना पर्यटन को भी बड़े पैमाने पर बढ़ावा देने की है। पिछले एक वर्ष में केंद्र सरकार की पहल पर वहां कई झीलों के पुनर्जीवन पर तीव्र गति से कार्य जारी हैं।

2019 की तुलना में 2020 में घाटी में आतंकी वारदातों में 36 प्रतिशत की कमी आई : केंद्र सरकार के इस ऐतिहासिक निर्णय ने अलगाववादी विचारधारा एवं आतंकी गतिविधियों पर भी प्रभावी अंकुश लगाने का कार्य किया है। इससे क्षेत्र में अमन और भाईचारा का माहौल बना है और विकास को गति मिली है। गृह मंत्रलय की एक रिपोर्ट के अनुसार 2019 की तुलना में 2020 में घाटी में आतंकी वारदातों में 36 प्रतिशत की कमी आई है। 2019 में जहां घाटी में 52 ग्रेनेड हमले और छह आइईडी अटैक हुए थे, वहीं 2020 में यह आंकड़ा घटकर क्रमश: 21 और एक पर आया है। ऐसा पहली बार हुआ है कि जम्मू-कश्मीर से प्रत्येक दिन किसी-न-किसी आतंकवादी के मारे जाने या गिरफ्तार किए जाने की सूचना आ रही है। वहां सक्रिय चार मुख्य आतंकी संगठनों-हिजबुल मुजाहिदीन, लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद और अंसार गजवत-उल-हिंद के टॉप कमांडर बड़ी संख्या में मारे गए हैं।

एक आंकड़े के अनुसार वहां होने वाली पत्थरबाजी में लगभग 73 प्रतिशत की कमी दर्ज : गौरतलब है कि इन आतंकवादियों की गिरफ्तारी या मारे जाने में सेना को स्थानीय प्रशासन एवं घाटी के आम नागरिकों का भी सहयोग प्राप्त होने लगा है, जो एक बड़ा सकारात्मक बदलाव है। बीते एक वर्ष में जम्मू-कश्मीर के नौ जिले आतंकवाद-मुक्त घोषित किए गए हैं। एक आंकड़े के अनुसार वहां होने वाली पत्थरबाजी में लगभग 73 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है। आतंकियों के मारे जाने या उनकी गिरफ्तारी पर बुलाए जाने वाले हड़ताल-आंदोलन भी अब गाहे-बगाहे ही सुनने को मिलते हैं। ये बदलाव दर्शाते हैं कि वहां के आम लोगों को इस अनुच्छेद के हटने से कोई परेशानी नहीं है, अपितु उन्हें तमाम सहूलियतें ही मिली हैं। सुरक्षा एजेंसियों और स्थानीय प्रशासन ने मिलकर अलगाववादियों एवं आतंकवादियों के वित्तीय स्नेत पर भी शिकंजा कसा है। वहां के लोगों को भी अब भली-भांति समझ आने लगा है कि अलगाववादियों ने उन्हें आतंक और हिंसा की आग में धकेलकर स्वयं मलाई खाई है।

कुल मिलाकर जम्मू-कश्मीर एवं लेह-लद्दाख की स्थितियों में सुधार लाने के लिए सरकार पूरी गंभीरता से प्रयास कर रही है, परंतु अभी तो प्रारंभ है, आगे बहुत लंबी और कठिन यात्र अभी शेष है। लेह-लद्दाख तो कटु एवं संघर्षपूर्ण अतीत को भुला सुनहरे भविष्य-पथ पर दृढ़ता से कदम बढ़ा चुका है। जम्मू-कश्मीर में सत्ता-सुख पर वर्षों  से काबिज ताकतें केंद्र-सरकार के विकास-कार्यों में गतिरोध पैदा करने के हर संभव प्रयास कर रही हैं। अब तय जम्मू-कश्मीर के लोगों को करना है।

[शिक्षक, लेखक एवं सामाजिक कार्यकर्ता]