जालंधर, अमित शर्मा। पिछले सप्ताह पंजाब के तीन जिलों तरनतारन, अमृतसर और गुरदासपुर में जहरीली शराब के सेवन से 123 लोगों की मौत के बाद राज्य का राजनीतिक परिदृश्य देखकर किसी को भी कार्टून श्रृंखला ‘टॉम एंड जेरी’ की याद आ जाना स्वाभाविक है। सत्तासीन कांग्रेस समेत प्रदेश के तमाम विपक्षी दल लगातार एक-दूसरे के पीछे भाग रहे हैं। यहां यह दौड़ कुर्सी के लिए अधिक और ऐसी त्रसदी के स्थायी निदान के लिए कम दिखती है। घटना के तुरंत बाद से ‘कैप्टनमुक्त कांग्रेस’ का राग अलापने वाले पूर्व पार्टी प्रधान और वरिष्ठ कांग्रेसी सांसद प्रताप सिंह बाजवा तथा शमशेर सिंह दूलो मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के पीछे लगे हैं तो इन सांसदों के पीछे प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुनील जाखड़ और अमरिंदर सरकार की पूरी कैबिनेट लगी हुई है।

सत्ता संघर्ष में लीन तमाम विपक्षी दलों के लिए भी यह दौर ‘टॉम और जेरी’ की दौड़ से कम नहीं है। इसी दौड़ की एक और बानगी देखिए। अपनी गंभीरता का सुबूत देने का प्रयास कर रहे मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह जहां हर दिन दर्जनों अफसरों के निलंबन और गिरफ्तारियों के आदेश जारी कर रहे हैं, वहीं मुख्यमंत्री के इस्तीफे की मांग करते हुए शिरोमणि अकाली दल के प्रधान सुखबीर सिंह बादल कभी चंडीगढ़ स्थित राजभवन तो कभी दिल्ली में सोनिया गांधी के आवास के बाहर धरने दे रहे हैं। राज्यभर में जहर के जामों की सरेआम बिक्री को लेकर यूं तो विपक्षी दलों की एकदम बढ़ी सरगíमयों से प्रदेश की सियासत में उफान आना स्वाभाविक ही था, लेकिन बाजवा और दूलो जैसे कांग्रेसी नेताओं ने इस पूरी पटकथा को ऐसा नाटकीय मोड़ दिया कि अब इस पूरे मसले का केंद्र बिंदु ही बदल गया है। अवैध शराब की सप्लाई और ऐसी भयानक त्रसदियों के पीछे के कारण एवं समाधान तलाशने के बजाय अब यह मसला मात्र अमरिंदर बनाम बाजवा, बाजवा बनाम जाखड़, जाखड़ बनाम अफसरशाही और अकाली दल बनाम कांग्रेस एवं कांग्रेस बनाम आम आदमी पार्टी बनकर रह गया है।

दरअसल इसकी शुरुआत हुई बीते मंगलवार को जब राज्यसभा सदस्यों बाजवा और दूलो ने पंजाब के राज्यपाल वीपी सिंह बदनौर को एक ज्ञापन सौंप अमरिंदर सिंह को माफिया राज का सरगना बताते हुए पूरे प्रकरण में सीबीआइ जांच की मांग की। कांग्रेसी सांसदों के इस कदम से विपक्ष तो विपक्ष, सत्तासीन कांग्रेस पार्टी के अंदर भी घमासान मच गया। पार्टी प्रधान सुनील जाखड़ और अमरिंदर सिंह को यह सब नागवार गुजरा और फिर शुरू हुई ‘टॉम एंड जेरी’ वाली दौड़। जहां मुख्यमंत्री ने बाजवा की सुरक्षा सेवा में कार्यरत पंजाब पुलिस के जवान और एस्कॉर्ट गाड़ियां वापस लेने के आदेश जारी कर दिए, वहीं जाखड़ ने पार्टी सुप्रीमो सोनिया गांधी से दोनों सांसदों को पार्टी से निकालने की लिखित सिफारिश कर दी।

आग को हवा तब और मिली, जब बाजवा ने पार्टी प्रधान को ललकारा कि आओ इकट्ठे सोनिया दरबार में पहुंच कर यह आजमाइश करते हैं कि मैडम किसे अंदर बुलाती हैं और किसे बाहर का रास्ता दिखाती हैं। इस खेल में मैडम का जिक्र क्या आया शिरोमणि अकाली दल भी दौड़ में कूद पड़ा और दिल्ली में मैडम के घर की ओर कूच कर दिया। इनकी देखादेखी अब आम आदमी पार्टी सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल ने भी पंजाब से आप नेताओं को दिल्ली बुलाया है। उन्हें सलाह दी जा रही है कि दिल्ली में इस मसले को प्रेस कांफ्रेंस के जरिये वे उसी तरह उठाएं जिस तरह पांच साल पहले कांग्रेस ने पंजाब में फैली नशे की समस्या को राष्ट्रीय फलक पर उठा राज्य को ‘उड़ता पंजाब’ से विश्लेषित कर दिया था।

मसला बढ़ता दिखा तो जैसा कि चलन रहा ही है मुख्यमंत्री दफ्तर समेत पूरे राज्य में शासन प्रशासन हरकत में आया। लगभग हर जिले में जहरीली शराब का धंधा करने वालों पर ताबड़तोड़ छापेमारी की गई। 48 घंटे के अंतराल में गठित अलग-अलग जांच टीमों ने 150 से अधिक केस दर्ज कर 148 गिरफ्तारियां कीं। सरकारी स्तर पर किसी को भी नहीं बक्शा जाएगा जैसे बयानों का हर दिन दोहराव होने लगा, लेकिन ऐसे दावे तो शायद हर घटना के बाद होते आए हैं, सो अबकी बार ऐसी भयानक त्रसदी के बाद से जारी इस अभियान की निरंतरता एवं निष्पक्षता और कितने दिनों तक यूं ही बरकरार रहेगी, किसी को जानकारी नहीं।

किसी को यह भी नहीं पता कि क्या जांच अधिकारी रिकॉर्ड पर यह दर्ज कर सकेंगे कि जिन गांवों में सरेआम शराब बेची जा रही थी, उन जिलों की पुलिस और प्रशासन ने कार्रवाई क्यों नहीं की? क्या यह सब आधिकारिक तौर पर रिकॉर्ड होगा कि कैसे एक जिले में तीन दिन पहले हुई पांच मौतों के बाद भी उसी जहरीली शराब की सप्लाई तीन अन्य जिलों में बेरोकटोक जारी रही और अंतत: सौ से ज्यादा जानें चली गईं? शायद नहीं, क्योंकि ऐसे मामले, ऐसी घटनाएं तो पहले भी होती रही हैं और जांच के नाम पर ऐसी रस्मी कवायदें भी। आज तक न तो कोई समाधान मिला, न ही कभी बेनकाब हुआ रसूखदार गुनहगारों का अलसी चेहरा। हर कोई जानता है कि ऐसी दौड़ों से सूबे की सियासी पटकथा तो बदल सकती है, लेकिन सूबे के हालात नहीं।

[स्थानीय संपादक, पंजाब]