रमेश कुमार दुबे : दुनिया भर में खाद्य वस्तुओं की आसमान छूती महंगाई (Inflation) के बीच प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश के 80 करोड़ गरीबों को राहत देने के लिए पीएम गरीब कल्याण अन्न योजना (PM Garib Kalyan Ann Yojna) को तीन महीने के लिए बढ़ा दिया है। इसके तहत प्रत्येक पात्र कार्ड धारक को हर महीने पांच किलो अनाज नि:शुल्क मिलेगा। सरकार यह सुनिश्चित कर रही है कि कोरोना महामारी और रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण दुनिया में फैली खाद्य महंगाई का गरीबों पर कम से कम प्रभाव पड़े। उल्लेखनीय है कि श्रीलंका, पाकिस्तान, सेनेगल जैसे देश ही नहीं जापान, जर्मनी, सिंगापुर, ब्रिटेन, अमेरिका जैसे विकसित देश भी खाद्य वस्तुओं की महंगाई से परेशान हैं। महंगाई पर काबू पाने और घरेलू आपूर्ति बढ़ाने के लिए सरकारें मौद्रिक नीतियों में बदलाव, निर्यात पर प्रतिबंध जैसे तात्कालिक उपाय कर रही हैं, लेकिन ये उपाय अपर्याप्त सिद्ध हो रहे हैं।

विश्व खाद्य कार्यक्रम और संयुक्त राष्ट्र की अन्य चार एजेंसियों की रिपोर्ट के अनुसार 2021 में 2.3 अरब लोगों को गंभीर या मध्यम स्तर तक की भुखमरी का सामना करना पड़ा। आपूर्ति शृंखला में रुकावट, पेट्रोल, डीजल, उर्वरक और रसायन आदि के ऊंचे दाम के कारण दुनिया भर में खाद्य वस्तुओं की कीमतें आसमान छू रही हैं। इसकी सबसे ज्यादा मार विकासशील देशों के गरीब लोगों पर पड़ रही है। विश्वव्यापी महंगाई के लिए भले ही रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण अनाज, उर्वरक और रसायन आदि की आपूर्ति प्रभावित होने को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है, लेकिन केवल रूस-यूक्रेन युद्ध को दोष देना ठीक नहीं।

अन्न की कीमतें 2020 से ही तेजी से बढ़ रही हैं। मई 2020 से फरवरी 2022 के बीच विश्व खाद्य संगठन फूड प्राइस इंडेक्स 55.2 प्रतिशत बढ़ चुका है। कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों से जहां एक ओर उत्पादन, परिवहन लागत बढ़ी, वहीं कोविड के कारण श्रमिकों की उपलब्धता प्रभावित हुई। 1960 के बाद खाद्यान्न उत्पादन में तेजी आई और अधिक उत्पादन एवं स्थिर मांग के कारण कीमतें लगातार नीचे आ रही थीं। इसके अतिरिक्त बफर स्टाक के कारण अकाल, युद्ध जैसी स्थितियों से आपूर्ति पर दबाव नहीं पड़ता था, लेकिन पैदावार में गिरावट और अन्न के बढ़ते गैर खाद्य उपभोग के कारण वैश्विक बफर स्टाक 2017 से ही कम हो रहा है। 2019 तक बफर स्टाक कीमतों को थामने में सफल रहा, लेकिन उसके बाद मांग और पूर्ति का संतुलन बिगड़ गया। इससे अनाज महंगे होने लगे।

चूंकि गरीब देशों के पोषण में 80 प्रतिशत योगदान अन्न का होता है इसीलिए महंगा अनाज गरीबों की समस्या बढ़ा रहा है। दुर्भाग्यवश हम पैदावार में आ रही गिरावट को रोकने और मौसम में आ रहे बदलाव के प्रबंधन में नाकाम हैं। लगातार बढ़ते तापमान के कारण बारिश का सदियों पुराना पैटर्न बदल रहा है। आज न तो समय से बारिश होती है और न ही उसकी मात्रा समान रहती है। इस साल यूरोप में भीषण सूखा पड़ा। नदियों, झीलों और जल भंडारों में पानी घट गया और कई जगह तो सूख भी गया। नदियों में जलस्तर के नीचे जाने से जहाजों की आवाजाही प्रभावित हुई। इससे जल परिवहन के बजाय सड़क-रेल परिवहन बढ़ा, जिससे लागत बढ़ रही है।

चीन की जीवन रेखा मानी जाने वाले यांगटिसीक्यांग नदी का जलस्तर सबसे निचले स्तर पर आ चुका है। इससे पेयजल, बिजली उत्पादन, सिंचाई और परिवहन गतिविधियां प्रभावित हुई हैं। भारत में भी कई राज्यों में सूखे जैसी स्थिति है तो मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में बारिश आपदा बन गई। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार भूमि क्षरण और जलवायु परिवर्तन के कारण वर्ष 2000 से अब तक सूखे के मामले 29 प्रतिशत बढ़े हैं। सूखे से औद्योगिक गतिविधियों, बिजली उत्पादन, कृषि, विनिर्माण एवं पर्यटन प्रभावित हो रहे हैं। वनों के उन्मूलन, रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों के असंतुलित इस्तेमाल से मिट्टी में कार्बन तत्व कम हो रहे हैं, जिससे पैदावार में लगातार गिरावट आ रही है।

कृषि कार्य में मशीनरी, उर्वरक, कीटनाशक, परिवहन आदि प्रतिवर्ष 17.3 अरब टन ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जित करते हैं। विश्वव्यापी प्रदूषण के एक-तिहाई के लिए आधुनिक खाद्य उत्पादन जिम्मेदार है। अब हमें नई खाद्य आपूर्ति के बारे में सोचना होगा। जलवायु परिवर्तन के कारण बदलती स्थितियों में यदि क्रांतिकारी सुधार नहीं किए गए तो आयातित खाद्य पदार्थों तक पहुंच प्रभावित होगी। यदि सरकारें खाद्य सुरक्षा देने में नाकाम रहती हैं तो उन्हें लोगों के आक्रोश का सामना करना पड़ सकता है, जैसा हाल में पाकिस्तान, श्रीलंका और इराक में देखने को मिला। विशेषज्ञ यह सुझाव दे रहे हैं कि खाद्य महंगाई पर काबू पाने के लिए हमें केंद्रीकृत-औद्योगिक उत्पादन तंत्र की जगह पर्यावरण अनुकूल विकेंद्रित खाद्य उत्पादन तंत्र स्थापित करना होगा।

खेत में पैदा होने से लेकर थाली तक पहुंचने में खाद्य पदार्थ औसतन 1500 मील की दूरी तय करते हैं। इस क्रम में वह महंगा होता जाता है। केंद्रीकृत औद्योगिक खाद्य तंत्र में रासायनिक उर्वरक, भारी मशीनरी, प्रोसेसिंग, पैकेजिंग और रेफ्रिजरेशन आदि का इस्तेमाल होता है। इस तंत्र में भी खेत से लेकर थाली तक पहुंचने के क्रम में आधे खाद्य पदार्थ नष्ट हो जाते है। उनके सड़ने से ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जित होती है। विकेंद्रित खाद्य तंत्र में स्थानीय स्तर पर पैदा होने वाले अन्न के उत्पादन को बढ़ावा दिया जाता है, जिसमें रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों, सिंचाई की कम जरूरत पड़ती है। मोदी सरकार वर्षाधीन इलाकों में विविध फसलों वाली दूसरी हरित क्रांति लाने और स्थानीय भंडारण सुविधा सृजित करने पर काम कर रही है। इससे वैश्विक ताप वृद्धि और जलवायु परिवर्तन से पैदा होने वाली चुनौतियों से निपटने में सहायता मिलेगी।

(लेखक केंद्रीय सचिवालय सेवा के अधिकारी और नीति विश्लेषक हैं)