डॉ. सुशील कुमार सिंह। देश के पूवरेत्तर राज्यों में आजकल मानसून का कहर जारी है। भारी बारिश और लचर सरकारी नीतियों मसलन बांध और तंटबंधों के निर्माण में कमी या उनकी कमजोरी के चलते उनके टूटने से हर साल विस्तृत क्षेत्र में जलमग्नता देखने को मिलती है, और कमोबेश इस वर्ष भी वही हो रहा है। बाढ़ भारतीय संविधान में निहित राज्य सूची का विषय है। कटाव नियंत्रण सहित बाढ़ प्रबंधन का विषय राज्यों के क्षेत्रधिकार में आता है, मगर केंद्र सरकार राज्यों को तकनीकी मार्गदर्शन और वित्तीय सहायता प्रदान करती है।

वैसे तो देश के भूभाग का एक बड़ा हिस्सा कमोबेश बाढ़ की चपेट में हर साल आता है, लेकिन बिहार और असम के कुछ निश्चित इलाकों में इस आपदा की सर्वाधिक आशंका बनी रहती है। यहां इसका रूप सर्वाधिक भयावह होता है और अलग अलग इलाकों में यह हर साल लोगों को प्रभावित करता है। केंद्रीय जल आयोग का भी मानना है कि बिहार में बाढ़ की हालत चिंताजनक है। बाढ़ के बीच बिहार में इस बार सियासत भी गरम है, क्योंकि इसी साल यहां विधानसभा का चुनाव होना है। यहां अधिकांश नदियां खतरे के निशान से ऊपर बह रही हैं और करीब दस जिले बाढ़ से बुरी तरह से प्रभावित हैं।

बिहार में बारिश इस साल औसत से डेढ़ गुना ज्यादा बताई जा रही है। हालांकि बिहार के बाढ़ के कारणों में गंडक और कोसी जैसी नदियां कहीं अधिक प्रभाव डालती हैं। कोसी ऐसी नदी है जिसे बिहार का शोक कहा जाता है और यह ऐसे अभिशाप से युक्त नदी है जो लगातार अपना रास्ता बदलती रहती है। ऐसे में यह सुनिश्चित करना मुश्किल होता है कि अगले साल यह नदी किधर रुख करेगी।

मौजूदा समय में बिहार में छह लाख से अधिक आबादी बाढ़ से प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित है और इनमें से कुछ को ही सुरक्षित निकालकर राहत शिविरों में पहुंचाया गया है। चिंता असम में बाढ़ की स्थिति को लेकर भी है। असम में भी लगभग 17 जिले इसकी चपेट में है। केंद्रीय जल आयोग असम में भी बाढ़ की स्थिति को काफी गंभीर बता रहा है। यहां इस बार औसत से 19 फीसद अधिक बारिश की बात कही जा रही है। असम में बाढ़ की स्थिति से निपटने के लिए केंद्र सरकार ने 346 करोड़ रुपये प्रारंभिक राशि के तौर पर जारी करने की बात कही है। पूवरेत्तर के इस राज्य में बाढ़ से 56 लाख से अधिक लोग प्रभावित हैं। यहां के काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान के लगभग 90 प्रतिशत भूभाग में बाढ़ का पानी प्रवेश कर जाने के कारण बड़ी संख्या में जंगली जानवरों की मौत हो चुकी है। यानी असम में इस आपदा का संकट कहीं अधिक है।

वर्ष 1980 में राष्ट्रीय बाढ़ आयोग ने यह अनुमान व्यक्त किया था कि 21वीं सदी के शुरुआती दशक तक देश भर में लगभग चार करोड़ हेक्टेयर भूमि बाढ़ की चपेट में होगी। इसे देखते हुए बड़ी संख्या में बहुउद्देशीय बांध और अनेक नदियों पर 35 हजार किमी की लंबाई में तटबंध बनाए गए। मगर बाढ़ से मुक्ति तो छोड़िए, अनुमान से भी अधिक भूमि बाढ़ से प्रभावित होने लगी। वैसे देखा जाए तो बाढ़ की फसलें भी सरकारें ही बोती हैं और वही काटती हैं। सरकारी तंत्र के लिए इसमें बंदरबांट के बड़े मौके सामने आते हैं, जिन्हें वे कतई छोड़ना नहीं चाहते हैं।

केंद्रीय जल आयोग ने हाल ही में डाटा जारी करते हुए बताया था कि देश के 123 बांधों या जल संग्रहण क्षेत्रों में पिछले एक दशक के औसत का 165 फीसद पानी संग्रहित है। तात्पर्य यह कि बांधों में पर्याप्त रूप से पानी का भंडारण था। इन 123 बांधों का प्रबंधन और संरक्षण केंद्रीय जल आयोग करता है, जबकि इन बांधों में देश की कुल भंडारण क्षमता का 66 फीसद पानी जमा होता है। जाहिर है कि आवश्यकता से अधिक पानी उपलब्ध होने पर भी इन बांधों से पानी नहीं छोड़ा, जिस कारण बरसात होते ही बांध कहीं अधिक उफान पर आ गए। ऐसे में गेट खोल देने का नतीजा पहले से उफान ले रही नदी में बहाव को तेज कर देना और पानी को गांव और शहर में घुसाना व जान-माल को हाशिये पर धकेलना है।

कोसी नदी नेपाल में हिमालय से निकलती है। यह बिहार में भीम नगर के रास्ते भारत में आती है जो बाकायदा यहां तबाही मचाती है। वर्ष 1954 में भारत ने नेपाल के साथ समझौता करके इस नदी पर बांध बनाया था। हालांकि बांध नेपाल की सीमा में है, परंतु इसके रख-रखाव में बड़ी जिम्मेदारी भारत की भी है। नदी के तेज बहाव के चलते यह बांध कई बार टूट चुका है। पहली बार यह 1963 में टूटा था। इसके बाद 1968 में पांच जगह से टूट गया। 1991 और 2008 में भी यह टूटा। फिलहाल बांध पर जगह-जगह दरारें हैं। समझा जा सकता है कि बाढ़ में इसका क्या योगदान है। गंडक नदी भी नेपाल के रास्ते बिहार में दाखिल होती है और पटना के पास गंगा में मिलती है। बरसात में यह उफान पर होती है और इसके आसपास के इलाके बाढ़ की चपेट में होते हैं। इसी नदी के बढ़े जल स्तर के दबाव के कारण चंपारण तटबंध टूट गया। इस तटबंध के टूटने से आसपास के दर्जनों गांवों में तबाही मची हुई है।

सवाल यह है कि बाढ़ से पुख्ता तौर पर निपटने के लिए क्या किया जाए। तकनीकी विकास के साथ मौसम विभाग के विशेषज्ञों को मानसून की सटीक भविष्यवाणी करनी चाहिए। वैसे उत्तर बिहार में बाढ़ का प्रमुख कारण नेपाल से बड़ी मात्र में आने वाला पानी है, जिसे रोकने के लिए व्यापक व सर्वांगीण नीति बनानी होगी। बाढ़ को पुख्ता तौर पर नियंत्रित करने के लिए प्रभावित राज्य सरकारों को केंद्र के साथ मिलकर प्रभावी नीति बनानी होगी। बिहार में बाढ़ की समस्या के मामले में एक पक्ष नेपाल भी है, जिससे व्यापक तालमेल के बिना यहां की इस समस्या का समाधान संभव नहीं है और इसके लिए केंद्र सरकार को ही अपने स्तर से कुछ करना होगा, अन्यथा इस राज्य में बाढ़ आने की आशंका कायम रहेगी।

[निदेशक, वाईएस रिसर्च फाउंडेशन ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन]