तरुण श्रीधर। Fish Farming in India लॉकडाउन के दौर में काम-काज थम जाने के कारण व्यापक संख्या में मजदूर गांव की ओर जा चुके हैं। ऐसे में उन सब को गांवों में ही रोजगार मुहैया करा पाना संबंधित राज्य सरकारों के लिए बहुत बड़ी चुनौती है। वैसे कम लागत में अधिक लोगों को रोजगार दिलाने का एक जरिया पशुपालन, डेयरी और मात्स्यिकी व्यवसाय को बनाया जा सकता है। भारत में पशुपालन व मात्स्यिकी क्षेत्र में एक रुपये के निवेश से चार रुपये प्रतिफल की संभावना है। हमारी आर्थिक में ऐसे विरले ही उद्यम होंगे जहां निवेश पर इस प्रकार का लाभ संभावित हो। इसके बावजूद ये क्षेत्र या तो उदासीनता के शिकार रहे हैं या फिर प्राथमिकताओं की अंतिम सीढ़ी पर। कारण शायद यह भी रहा कि प्रारंभ से ही पशुपालन, डेयरी व मात्स्यिकी विभाग कृषि मंत्रलय के अधीन रहा। और इसे अधीनों की तरह ही रखा गया।

पशुपालन का कार्य भी आकर्षक व मोहक नहीं है। मंत्री व उच्च अधिकारी भी अक्सर इस विभाग को दूर से ही सलाम कर खुश हैं। परंतु अब एक आशा की किरण दिखाई दे रही है। इसकी नींव रखी गई थी फरवरी 2019 में जब केंद्र सरकार ने मात्स्यिकी को पशुपालन एवं डेयरी से अलग कर एक विभाग बनाया। इस क्षेत्र की महत्ता को इससे पूर्व 2014 में सरकार द्वारा महत्वाकांक्षी योजना नीली क्रांति के लोकार्पण के साथ रेखांकित किया जा चुका था। किंतु पशुपालन व डेयरी विभाग का हिस्सा और कृषि मंत्रलय के अधीन होने के कारण नीली क्रांति पर पूरी तरह ध्यान देना संभव नहीं होने से योजना का पूरा फल पाना कठिन हो रहा था।

मत्स्य पालन खाद्य और पोषण का प्रमुख स्त्रोत ही नहीं, बल्कि आय व आजीविका का भी अहम साधन है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार लगभग ढाई करोड़ लोग प्रत्यक्ष रूप से या तो मछुआरे का काम करते हैं या मत्स्य पालक हैं। और लगभग इससे दोगुनी संख्या यानी पांच करोड़ के आसपास व्यक्तियों का रोजगार और आमदनी मछली उत्पादन व आपूíत की लंबी कड़ी पर निर्भर है। चीन के बाद भार विश्व का दूसरा बड़ा मछली उत्पादक देश है। गत वर्ष देश से लगभग 48,000 करोड़ रुपये की मछली का निर्यात किया गया। निरंतर सात फीसद से अधिक वार्षकि वृद्धि दर भी कृषि के अन्य उपक्षेत्रों से कहीं अधिक है। इस पृष्ठभूमि में केंद्र में मात्स्यिकी का पृथक विभाग बनाना एक सही व आवश्यक कदम था जो पहले कर लिया जाना चाहिए था। मात्स्यिकी विभाग बनने के बाद घटनाक्रम तीव्रता से बढ़े।

वर्ष 2019 के मई माह में लोकसभा चुनाव के बाद सरकार बनी। साथ ही बना एक नया मंत्रलय मात्स्यिकी, पशुपालन एवं डेयरी मंत्रलय। कृषि मंत्रलय के अधीनस्थ विभाग अब बना स्वतंत्र मंत्रलय और इसके नामकरण में मात्स्यिकी को मिला प्रमुख स्थान। इसके बाद दस जून को भारत सरकार के सचिवों को अपने संबोधन में ही प्रधानमंत्री ने सरकार की मंशा को यह कह कर स्पष्ट कर दिया कि मात्स्यिकी, मछली पालन, डेयरी व पशुपालन सरकार की प्राथमिकताएं होंगे। 20,050 करोड़ रुपये के प्रस्तावित परिव्यय और पांच वर्ष के सीमा काल में क्रियान्वयन के साथ मात्स्यिकी की यह अब तक की सबसे महत्वाकांक्षी योजना है।

इसकी विशेषता यह है कि योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए वित्तीय संसाधन का प्रबंध केंद्र ही करता है। प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना का खर्च पूर्व की स्कीम नीली क्रांति के व्यय से लगभग दस गुना अधिक है। किसी भी क्षेत्र में वित्तीय परिव्यय में इतनी अधिक वृद्धि अप्रत्याशित है। इससे पूर्व और इसके अतिरिक्त सरकार ने 7,522 करोड़ के मात्स्यिकी अवसंरचना विकास निधि की भी स्थापना की है। इस निधि से तीन से चार प्रतिशत सस्ती ब्याज दरों पर मात्स्यिकी व मत्स्य पालन में आधारभूत संरचना के लिए धन प्राप्त किया जा सकता है। कुल मिला कर अब इस क्षेत्र में वित्तीय संसाधन हितधारकों की उम्मीदों से कहीं अधिक हैं, इनके सार्थक और फलप्रद उपयोग के लिए व्यवस्था को अपनी क्षमता भी सुधारनी होगी।

जहां हम इस बात पर गर्व करते हैं कि मछली उत्पादन व व्यापार में हम अग्रणी देशों में हैं, वहीं चिंता का विषय है उत्पादकता और गुणवत्ता। हमारी क्षमता व उपलब्धि के बीच अंतर बहुत बड़ा है। इसकी पूíत करना इस योजना का एक मुख्य उद्देश्य है। इसमें आधुनिक प्रौद्योगिकी का उपयोग, आधारभूत सुविधाओं का निर्माण, सतत एवं स्थायी विकास हेतु प्रबंधन आदि पर बल दिया गया है। सराहनीय बात यह है कि योजना में मछुआरों की कमजोर सामाजिक स्थिति को पहचानते हुए इन समुदायों की सामाजिक सुरक्षा का भी उपयुक्त प्रावधान है। उत्पादकता और आर्थिक लाभ के फेर में अक्सर सामाजिक पहलू की अनदेखी हो जाती है।

परिकल्पना यह है कि 2024-25 में योजना की समाप्ति पर वर्तमान सात की बजाय नौ फीसद वार्षिक विकास की दर से देश का मछली उत्पादन 22 मिलियन टन तक पहुंचने की संभावना है। गेंद अब मात्स्यिकी विभाग के पाले में है। कोरोना के दुष्प्रभाव ने यह कार्य अधिक चुनौतीपूर्ण बना दिया है। आपूर्ति तो बाकी अर्थव्यवस्था की भांति बाधित हुई ही है, मात्स्यिकी की विशेष परिस्थिति है मछली का जैविक चक्र। इस पर मनुष्य की व्यवस्था नहीं चलती। मछली को कब तालाब से निकालना है, इस पर समझौते की गुंजाइश नहीं रहती। आíथक व व्यावसायिक परिवेश में विघ्न के कारण आने वाले समय में इसकी पूर्ति के लिए विशेष प्रबंध करने होंगे।

[पूर्व सचिव, भारत सरकार]