सुधीर कुमार। मनरेगा केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी परियोजनाओं में से एक रही है। ग्रामीण आबादी को आजीविका से जोड़ने और अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाने में मनरेगा की भूमिका महत्वपूर्ण रही है। कृषि संकट और आर्थिक सुस्ती के दौर में मनरेगा ने रोजगार गारंटी देकर किसानों और भूमिहीन मजदूरों के लिए एक ‘सुरक्षा कवच’ के रूप में कार्य किया है। मनरेगा की महत्ता को देखकर ही मोदी सरकार उसे फलने-फूलने का मौका दे रही है। कुछ वर्ष पहले जिस मनरेगा योजना के वजूद को खत्म किए जाने की आधारहीन बातें हो रही थीं, उसे आज सरकार नई गति से संवारने पर बल दे रही है।

वित्तीय वर्ष 2020-2021 के लिए बजट में वित्त मंत्री ने मनरेगा के लिए साढ़े 61 हजार करोड़ रुपये जारी किए जाने की घोषणा की। वित्तीय वर्ष 2016-17 में मनरेगा के लिए आवंटित 38,500 करोड़ रुपये और उससे पहले वर्ष 2015-16 में आवंटित 34,699 करोड़ रुपये से तुलना करें तो, यह राशि बहुत है।

मनरेगा ग्रामीण समाज व अर्थव्यवस्था के साथ कई पहलुओं से जुड़ा है। ग्रामीण भारत के सशक्तीकरण की दिशा में इसकी भूमिका महत्वपूर्ण है। भारत में गरीबी उन्मूलन तथा रोजगार-सृजन की दिशा में मनरेगा को सार्थक कदम माना जा सकता है। दैनिक जीवन में मेहनत-मजदूरी कर जीवन-यापन करने वाले परिवारों के लिए केंद्र सरकार की यह योजना उम्मीद की किरण साबित हुई है। ग्रामीण भारतीय समाज में परंपरागत रूप से व्याप्त कुपोषण, गरीबी तथा बेकारी की समस्या में कमी लाने की दिशा में यह योजना महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। इस एकमात्र योजना ने लाखों वंचित परिवारों के घरों में चूल्हा जलाने का जिम्मा उठाया है।

मनरेगा बड़े पैमाने पर रोजगार का सृजन करता है। यह मजदूरों को सौ दिनों के रोजगार की गारंटी तो देता ही है। साथ ही इस दौरान रोजगार न दिए जाने के एवज में बेरोजगारी भत्ते का भरोसा भी देता है। पहले की तुलना में रोजगार की खोज में विभिन्न प्रदेशों को प्रवास करने वाले लोगों की संख्या में बड़ी कमी आई है। अब काम करने को इच्छुक व्यक्ति अपने गांव या उसके पास ही मनरेगा के तहत आयोजित ठेका कार्य में अपनी उपस्थिति दर्ज करा कर रोजगार प्राप्त कर लेता है। हालांकि बड़े शहरों की तुलना में मनरेगा के तहत कम राशि दी जाती है। बावजूद इसके वे खुश हैं, क्योंकि वे अपना अधिकांश समय अपने परिवार के सदस्यों के बीच गुजार पा रहे हैं।

नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च की रिपोर्ट के मुताबिक, गरीब व सामाजिक रूप से कमजोर वर्गो जैसे- मजदूर, आदिवासी, दलित एवं छोटे सीमांत कृषकों के बीच गरीबी कम करने में मनरेगा की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। विश्व बैंक ने कुछ समय पहले भारत के ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना कार्यक्रम यानी मनरेगा को दुनिया का सबसे बड़ा लोक निर्माण कार्यक्रम बताया था। विश्व बैंक का इस संबंध में कहना था कि यह योजना देश की लगभग 15 फीसद आबादी को सामाजिक सुरक्षा के दायरे में लाती है और इतने व्यापक दायरे वाले सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम को दुनिया के किसी देश में अब तक नहीं चलाया गया है।

महिलाओं पर असर 

भारतीय समाज आदिकाल से ही पुरुष प्रधान रहा है। सामान्यत: पुरुषों को घर के बाहर काम करने की जिम्मेदारी रहती है, जबकि महिलाएं घर के अंदर का सारा काम करती हैं। समाज में महिलाओं के पिछड़ेपन का एक अहम कारण महिलाओं के आर्थिक भागीदारी का ना होना भी रहा है। कई ऐसे कार्य हैं, जो महिलाएं आराम से कर सकती हैं, लेकिन घर के पुरुषों ने कभी इसकी उन्हें अनुमति नहीं दी। हालांकि यह परिदृश्य हाल के दिनों में बड़ी तेजी से बदल रही है, जो अच्छा संकेत है।

(लेखक हिंदू विश्वविद्यालय बनारस में अध्येता) 

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