योगेश कुमार गोयल। एक समय था जब दुनिया भारत की स्वदेशी और स्वावलंबी बनने की आकांक्षा का मजाक उड़ाया करती थी। दिसंबर 2000 में तो एक अमेरिकी पत्रिका ने यहां तक लिख डाला था कि प्रौद्योगिकी जटिलता और अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण भारत कभी भी अपने स्वयं के हल्के लड़ाकू विमान को उड़ाने में सक्षम नहीं होगा, लेकिन आज समय बदल चुका है और पूरी दुनिया भारत के अंतरिक्ष अभियानों सहित स्वदेशी रक्षा उत्पादों का भी लोहा मान रही है। भारत दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा रक्षा बजट वाला देश है और अभी तक अपनी ज्यादातर रक्षा सामग्री का विदेशों से आयात करता है, लेकिन अब तेजस सौदे के साथ ही भारत ने रक्षा उत्पादों में आत्मनिर्भरता की ओर बड़ा कदम आगे बढ़ा दिया है।

अब जरूरत है कि भारत इसी राह पर तेज गति से आगे बढ़ते हुए न केवल अपनी रक्षा जरूरतों को पूरा करने में सक्षम बने, बल्कि रक्षा सामग्री के आयातक से निर्यातक बनने की राह पर अग्रसर हो।वास्तव में तेजस का विकास रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) और एचएएल ने संयुक्त रूप से किया है। भारतीय रक्षा एवं वैमानिक इतिहास में इस परियोजना का इतिहास काफी पुराना है।

विदित हो कि आज से लगभग 38 साल पहले 1983 में तत्कालीन भारत सरकार ने डीआरडीओ और एचएएल को हल्का लड़ाकू विमान विकसित करने की स्वीकृति प्रदान की थी। इसके बाद इस विमान का डिजाइन तैयार करने के लिए एयरोनॉटिकल डेवलपमेंट एजेंसी (एडीए) नामक नोडल एजेंसी का गठन किया गया। स्वीकृति मिलने के तीन साल बाद 1986 में एलसीए परियोजना के लिए सरकार ने 575 करोड़ रुपये का बजट स्वीकृत किया। तदुपरांत इसके विकास की प्रक्रिया में तेजी आई, लेकिन विभिन्न कारणों से इसके तैयार होने की कई समय सीमाएं निकल गईं और तकरीबन 15 वर्षो बाद चार जनवरी, 2001 को इस हल्के लड़ाकू विमान ने पहली उड़ान भरी। इस बीच विमान का डिजाइन तैयार करने और विकास करने के दौरान एचएएल ने विभिन्न परिस्थितियों में विमान को परखने के लिए 2800 से अधिक बार इसका परीक्षण भी किया।

2003 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इसका नाम एलसीए से बदलकर तेजस रखा। 2006 में तेजस ने पहली बार सुपरसोनिक उड़ान भरी। इसके बाद इसकी परीक्षणात्मक उड़ानें चलती रहीं। 22 जनवरी, 2009 तक तेजस की 1000 उड़ानें पूरी हो गई थीं। तेजस विमान को प्रारंभिक परिचालन मंजूरी जनवरी 2011 में मिली थी। इसके बाद 30 सितंबर, 2014 की सफल उड़ान के बाद दूसरी परिचालन मंजूरी प्रदान की गई। अब तक तेजस के 15 विमान बने हैं जिनमें सात लिमिटेड सीरीज के, दो टेक्नोलॉजी डेमोन्स्टेटर्स, तीन फाइटर प्रोटोटाइप, दो प्रशिक्षणात्कम प्रोटोटाइप और एक नौसेना संबंधी प्रोटोटाइप हैं। तेजस मल्टीमोड रडार, रडार वाìनग रिसीवर और मिसाइल फायरिंग फ्लाइट परीक्षण के साथ ही अलग-अलग तापमान में उड़ान भरने में सफल रहा है। तेजस की उड़ानों का परीक्षण लेह, जामनगर, जैसलमेर, उत्तरलाई, ग्वालियर, पठानकोट और गोवा जैसी जगहों पर किया जा चुका है। इन परीक्षणों में इसने हथियार पहुंचाने एवं दागने का भी कार्य किया है।

उल्लेखनीय है कि भारतीय वायु सेना इन दिनों लड़ाकू विमानों की कमी का सामना कर रही है और किसी तरह मिग-21 विमानों से काम चला रही है। तेजस लड़ाकू विमान भारतीय वायु सेना के पुराने पड़ चुके इन मिग-21 लड़ाकू विमानों की जगह लेंगे। यह दुनिया का अत्यंत छोटा और पूर्णतया स्वदेशी लड़ाकू विमान है। एक और खास बात यह है कि तेजस की स्वदेशी निर्माण सफलता ठीक उस समय हासिल हुई है, जब रक्षा क्षेत्र में पुराने दोस्त रूस से पहले जैसे संबंध नहीं रह गए हैं। कुल मिलाकर तेजस भारतीय वायु सेना की ही तस्वीर नहीं बदलेगा, बल्कि रक्षा क्षेत्र में स्वदेशीकरण को गति भी प्रदान करेगा।