[ डॉ. जयंतीलाल भंडारी ]: वैश्विक प्रबंधन सलाहकार फर्म मैकेंजी, एक्सेंचर कंज्यूमर पल्स, डेलॉइट और फिच सॉल्यूशंस ने हाल में कोरोना काल के दौरान विभिन्न देशों के उपभोक्ताओं के मन की थाह लेने का प्रयास किया। उपभोक्ताओं के आशावाद संबंधी उनके इन सर्वेक्षणों को गंभीरतापूर्वक पढ़ा जा रहा है। इनमें कहा गया है कि कोरोना वायरस की चिंताओं के बीच इस समय भारतीय उपभोक्ताओं का आशावाद दुनिया में सबसे ऊंचा है। इनमें भारतीय उपभोक्ताओं के बारे में तीन बातें उभरकर सामने आई हैं। एक, करीब 58 प्रतिशत भारतीय उपभोक्ताओं के मुताबिक भारतीय अर्थव्यवस्था में आगामी दो-तीन महीनों में वापस तेजी आएगी। दो, करीब 32 प्रतिशत भारतीय उपभोक्ताओं के मुताबिक अभी अर्थव्यवस्था को सामान्य होने में करीब छह से 12 महीने लग सकते हैं। तीन, करीब 10 प्रतिशत उपभोक्ताओं का रुख ही अर्थव्यवस्था में सुधार को लेकर निराशावादी रहा। सर्वेक्षण में यह बात भी उभरकर सामने आई कि इस समय भारतीय उपभोक्ताओं का आशावाद कोरोना महामारी से पहले के स्तर पर पहुंच गया है। साथ ही भारतीय उपभोक्ताओं के खर्च करने की प्रवृत्ति भी अब मार्च, 2020 से बेहतर दिखाई दे रही है। इससे मालूम होता है कि भारतीय उपभोक्ताओं के मन से कोविड-19 के कारण आर्थिक संकट का डर तेजी से खत्म होता जा रहा है और वे अधिक खर्च कर रहे हैं।

कोविड-19 की कठोर आर्थिक चुनौतियों के बाद अब अर्थव्यवस्था में तेजी से हो रहा सुधार

नि:संदेह दुनिया में भारतीय उपभोक्ताओं के सर्वाधिक आशावादी होने के पीछे सबसे बड़ा कारण कोविड-19 की कठोर आर्थिक चुनौतियों के बाद अब भारतीय अर्थव्यवस्था में तेजी से होता सुधार है। यदि हम अर्थव्यवस्था की वर्तमान तस्वीर को देखें तो पाते हैं कि चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में जीडीपी में 23.9 फीसद की गिरावट आई थी, वहीं दूसरी तिमाही में 7.5 फीसद की गिरावट के बाद अब तीसरी तिमाही (अक्टूबर से दिसंबर) में जीडीपी में सुधार की तस्वीर दिखाई दे रही है।

आत्मनिर्भर भारत अभियान ने तेजी से गिरती हुई अर्थव्यवस्था को दिया बड़ा सहारा

इसमें कोई दो मत नहीं है कि सरकार द्वारा आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत दी गई विभिन्न राहतों ने तेजी से गिरती हुई अर्थव्यवस्था को बड़ा सहारा दिया है। साथ ही सरकार की ओर से जून, 2020 के बाद अर्थव्यवस्था को धीरे-धीरे खोलने की रणनीति के साथ राजकोषीय और नीतिगत कदमों का भी अर्थव्यवस्था पर अनुकूल असर पड़ा है। यह भी स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि दैनिक उपयोग की उपभोक्ता वस्तुओं, सूचना प्रौद्योगिकी, इस्पात, सीमेंट, ऑटोमोबाइल, बिजली, फार्मा, रेलवे माल ढुलाई आदि क्षेत्रों का प्रदर्शन उम्मीद से भी बेहतर है। हम अप्रैल, 2020 से अक्टूबर, 2020 तक के विभिन्न औद्योगिक एवं सेवा क्षेत्र के आंकड़ों का मूल्यांकन करें तो यह पूरा परिदृश्य आशा की नई किरण दिखाता है। देश में पेट्रोल और डीजल की खपत अक्टूबर 2020 में पिछले साल की समान अवधि की तुलना में 6.6 प्रतिशत बढ़ी है। इतना ही नहीं अब वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) संग्रह मार्च, 2020 से अब तक के नौ माह में दूसरी बार नवंबर, 2020 में एक लाख करोड़ रुपये के पार पहुंचा है। नवंबर में जीएसटी संग्रह 1,04,963 करोड़ रुपये रहा, जो पिछले साल नवंबर के मुकाबले 1.4 फीसद अधिक है। पिछले साल नवंबर में जीएसटी संग्र्रह 1,03,491 करोड़ रुपये हुआ था। इससे पहले अक्टूबर में 1,05,155 करोड़ का जीएसटी संग्र्रह किया गया था। इतना ही नहीं यह आकार कोविड से पहले फरवरी, 2020 में प्राप्त जीएसटी के लगभग बराबर है।

अर्थव्यवस्था में उछाल के लिए भारत में बढ़ते एफडीआइ का योगदान

देश की अर्थव्यवस्था में उछाल के लिए भारत में बढ़ते हुए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआइ) का भी योगदान है। यह कोई छोटी बात नहीं है कि कोविड-19 की चुनौतियों के बीच भी भारतीय बाजारों में विदेशी निवेशकों की रुचि लगातार बढ़ी है। जब अप्रैल से अगस्त के बीच देश और दुनिया में सबसे अधिक आर्थिक मुश्किलें दिखाई दे रही थीं, उस दौरान भारत में विदेशी निवेश तेजी से बढ़ा। अप्रैल से अगस्त की अवधि में देश में 35.73 अरब डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आया। पिछले वर्ष अप्रैल से अगस्त की अवधि की तुलना में यह करीब 13 फीसद ज्यादा है।

यह बात भी महत्वपूर्ण है कि कोविड-19 की चुनौतियों के बीच भी भारत का शेयर बाजार तेजी से बढ़ा है। बाजार पूंजीकरण भी रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गया है। इस समय भारत एशिया के सबसे पसंदीदा शेयर बाजारों में तेजी से उभरता दिखाई दे रहा है। इसके अलावा देश का विदेशी मुद्रा भंडार भी 575 अरब डॉलर की ऐतिहासिक ऊंचाई पर पहुंच गया है। इसका तेजी से बढ़ना भारतीय अर्थव्यवस्था की नई मजबूती का प्रतीक है। साथ ही यह विदेशी निवेशकों के भारत में बढ़ते विश्वास को भी दर्शाता है।

अर्थव्यवस्था में तेजी से सुधार को लेकर रेटिंग एजेंसियों ने भी अनुमानों को सुधारना शुरू कर दिया 

यह कोई छोटी बात नहीं है कि जिस तेजी से भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधार हो रहा है, उससे दुनिया की रेटिंग एजेंसियों ने भी भारत को लेकर अपने पूर्व में घोषित तेज गिरावट के अनुमानों को सुधारना शुरू कर दिया है। रेटिंग एजेंसी मूडीज ने इस दौरान अब भारतीय अर्थव्यवस्था में 10.6 फीसद गिरावट आने का अनुमान जताया है, जबकि पहले उसने 11.5 फीसद गिरावट आने का अनुमान लगाया था। इसी तरह ग्लोबल रिसर्च फर्म और रेटिंग एजेंसी गोल्डमैन सैक्श ने कहा है कि इस वर्ष भारतीय अर्थव्यवस्था में 10.3 प्रतिशत की गिरावट आ सकती है। पहले यह अनुमान 14.8 प्रतिशत की गिरावट का था। भारतीय रिजर्व बैंक के नए अध्ययन के अनुसार यदि अर्थव्यवस्था में सुधार की मौजूदा गति कायम रही तो भारतीय अर्थव्यवस्था वित्तीय वर्ष 2020-21 की तीसरी तिमाही में ही गिरावट के दौर से बाहर आ जाएगी और फिर विकास दर बढ़ने लगेगी।

लोगों में खर्च की प्रवृत्ति बढ़ने से अर्थव्यवस्था में नई जान फूंकने की मुहिम को मिलेगी ताकत

उम्मीद की जानी चाहिए कि कोविड-19 महामारी के बीच भी भारतीय उपभोक्ताओं में जिस तरह से आशावाद का स्तर बढ़ा है और लोगों में खर्च की प्रवृत्ति बढ़ी है, इससे देश की अर्थव्यवस्था में नई जान फूंकने की मुहिम को ताकत मिलेगी।

( लेखक अर्थशास्त्री हैं)