[पुष्पेंद्र सिंह]। बीते दिनों केंद्र सरकार ने कृषि क्षेत्र में सुधार हेतु लाए गए अपने दो अध्यादेशों को अधिसूचित कर दिया, परंतु उनके प्रति किसानों के मन में कुछ शंकाएं दिख रही हैं। 20 जुलाई को पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के कुछ किसान संगठन इनके विरोध में सड़कों पर भी उतरे। दरअसल किसानों को यह शंका है कि इन सुधारों के बहाने सरकार एमएसपी व्यवस्था समाप्त करने की ओर बढ़ रही है। सच्चाई यह है कि ये सुधार कृषि उपज की बिक्री हेतु पहले की व्यवस्था के साथ-साथ एक अन्य समानांतर व्यवस्था बना रहे हैं। यह किसानों के विवेक और पसंद पर निर्भर होगा कि वे किस व्यवस्था के अंतर्गत अपनी फसल बेचना चाहते हैं।

कृषि क्षेत्र आधी आबादी को देता है रोजगार

किसानों को यह भी समझना होगा कि नई व्यवस्था एक नया विकल्प है, जो वर्तमान मंडी व्यवस्था के साथ-साथ चलता रहेगा। हमारा कृषि क्षेत्र लगभग आधी आबादी को रोजगार देता है। देश की कृषि जीडीपी लगभग 30 लाख करोड़ रुपये की है, पर देश की जीडीपी में कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी मात्र 15 प्रतिशत है। साफ है कि कृषि क्षेत्र में सुधारों का असर आधी आबादी की आय पर पड़ेगा।

उपज को कहीं भी बेचने की छूट

एक अध्यादेश के जरिये कृषि उत्पाद विपणन समिति अधिनियम में सुधार करते हुए किसानों को अधिसूचित मंडियों के अलावा भी अपनी उपज को कहीं भी बेचने की छूट प्रदान की गई है। इससे किसान अपनी उपज को जहां उसे उचित और लाभकारी मूल्य मिले वहां बेच सकते हैं। इस विषय में चार बड़े सुधार किए गए हैं। पहला, अब तक कृषि उत्पादों को केवल स्थानीय अधिसूचित मंडी के माध्यम से ही बेचने की अनुमति थी। अब किसी भी मंडी, बाजार, संग्रह केंद्र, गोदाम, कोल्ड स्टोरेज, कारखाने आदि में फसलों को बेचने के लिए किसान स्वतंत्र हैं। इससे किसानों का स्थानीय मंडियों में होने वाला शोषण कम होगा और फसलों की अच्छी कीमत मिलने की संभावना बढ़ेगी। अब किसानों के लिए पूरा देश एक बाजार होगा। 

किसानों का शोषण करने की प्रवृत्ति पर लगेगा अंकुश

दूसरा, मंडियों में केवल लाइसेंस धारक व्यापारियों के माध्यम से ही किसान अपनी फसल बेच सकते थे। अब मंडी व्यवस्था के बाहर के व्यापारियों को भी फसलों को खरीदने की अनुमति होगी। इससे मंडी के आढ़तियों या व्यापारियों द्वारा समूह बनाकर किसानों का शोषण करने की प्रवृत्ति पर अंकुश लगेगा। अधिक संख्या में व्यापारी किसानों की फसल खरीद सकेंगे जिससे उनमें आपस में किसान को अच्छा मूल्य देने के लिए प्रतिस्पर्धा होगी।

तीसरा, मंडी के बाहर फसलों का व्यापार वैध होने के कारण मंडी व्यवस्था के बाहर भी फसलों के व्यापार और भंडारण संबंधित आधारभूत संरचना में निवेश बढ़ेगा। चौथा, अब अन्य राज्यों में उपज की मांग, आर्पूित और कीमतों का र्आिथक लाभ किसान स्वयं या किसान उत्पादक संगठन बनाकर उठा सकते हैं। किसानों को स्थानीय स्तर पर अपने खेत या घर से ही सीधे किसी भी व्यापारी को फसल बेचने का अधिकार होगा। इससे किसान का मंडी तक फसल ढोने का भाड़ा भी बचेगा।

किसान उचित मूल्य मिलने पर ही फसल बेचेगा 

अभी तक मंडी में पहुंचने के बाद सही मूल्य न मिलने पर भी किसान फसल बेचने को मजबूर होता था, क्योंकि वापसी का भाड़ा देना और नुकसानदायक होता। यदि फसल जल्द खराब होने वाली उपज हो तो मंडी पहुंचने के बाद उसे किसी भी मूल्य पर बेचने की मजबूरी होती है। किसान की इसी मजबूरी का लाभ बेचौलिये उठाते रहे हैं। अब किसान अपने घर या खेत से उचित मूल्य मिलने पर ही फसल बेचेगा। किसानों को मंडियों की अव्यवस्था, भ्रष्टाचार, लंबी कतारों, लंबे इंतजार से भी मुक्ति मिलेगी। प्रतिस्पर्धा के कारण इन मंडियों को भी अपनी व्यवस्था में सुधार करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा।

सुनिश्चित दामों पर फसल का खरीददार मिलेगा तैयार 

दूसरा अध्यादेश अनुबंध कृषि से संबंधित है जो फसल की बुआई से पहले किसान को अपनी फसल को तय मानकों और तय कीमत के अनुसार बेचने का अनुबंध करने की सुविधा प्रदान करता है। इससे किसान एक तो फसल तैयार होने पर सही मूल्य न मिलने के जोखिम से बच जाएंगे, दूसरे उन्हें खरीदार ढूंढने के लिए कहीं जाना नहीं होगा। किसान सीधे थोक और खुदरा विक्रेताओं, निर्यातकों, प्रसंस्करण उद्योगों आदि के साथ उनकी आवश्यकताओं और गुणवत्ता के अनुसार फसल उगाने के अनुबंध कर सकते हैं। इससे किसानों को फसल उगाने से पहले ही सुनिश्चित दामों पर फसल का खरीददार तैयार मिलेगा। इसमें किसानों की जमीन के मालिकाना अधिकार सुरक्षित रहेंगे और उसकी मर्जी के खिलाफ फसल उगाने की कोई बाध्यता भी नहीं होगी। इसमें फसल खराब होने के जोखिम से भी किसान का बचाव होगा।

ई-ट्रेडिंग की सुविधा को बनाया जा रहा है बेहतर

किसान खरीददार के जोखिम पर अधिक जोखिम वाली फसलों की खेती भी कर सकता है। कृषि जिंसों के अंतरराष्ट्रीय व्यापार को भी सुगम बनाया जा रहा है। इसी तरह कृषि उत्पादों को ई-ट्रेडिंग के माध्यम से बेचने की सुविधा को बेहतर बनाया जा रहा है। किसानों को अपनी उपज के लाभकारी मूल्य प्राप्ति हेतु आवश्यक वस्तु अधिनियम में भी संशोधन किए गए हैं। अनाज, खाद्य तेल, तिलहन, दलहन, आलू और प्याज सहित सभी कृषि खाद्य पदार्थ अब नियंत्रण से मुक्त होंगे। इन वस्तुओं पर राष्ट्रीय आपदा या अकाल जैसी विशेष परिस्थितियों के अलावा स्टॉक की सीमा नहीं लगेगी।

चूंकि एमएसपी व्यवस्था केवल गेंहू, धान जैसी कुछ फसलों और कुछ राज्यों तक ही वास्तविक रूप से सीमित रही है अत: एमएसपी की वर्तमान व्यवस्था को और सुदृढ़ बनाया जाना चाहिए। किसानों से एमएसपी से नीचे फसलों की खरीद र्विजत हो और इसके उल्लघंन पर दंडात्मक कार्यवाही का प्रावधान किया जाए। दोनों व्यवस्थाओं में टैक्स के प्रावधानों में भी एकरूपता होनी चाहिए। दोनों व्यवस्थाओं का समानांतर चलना किसान हित में आवश्यक है।

(लेखक किसान शक्ति संघ के अध्यक्ष हैं)