[ केसी त्यागी ]: कोविड-19 महामारी के प्रकोप के बीच देश में गेहूं फसल की कटाई का दौर अपने अंतिम चरण में है। सरकार के अनुसार हमारी नौ करोड़ टन की आवश्यकता से अधिक इस बार 10.62 करोड़ टन गेहूं की पैदावार होने की उम्मीद है। देश में पैदा होने वाले गेहूं का अधिकांश हिस्सा पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान से आता है जो लगभग 83 फीसद है।

किसानों को ट्रांसपोर्ट की कमी और मजदूरों की कमी का सामना करना पड़ रहा है

किसानों को इस समय तमाम अव्यवस्था, ट्रांसपोर्ट की कमी और लॉकडाउन के चलते मजदूरों की कमी का सामना करना पड़ रहा है। पंजाब की खन्ना मंडी एशिया की सबसे बड़ी आवक मंडी मानी जाती है। वहां दिहाड़ी मजदूरों की अनुपलब्धता के कारण मजदूरी दोगुनी हो गई है। दिल्ली की आजादपुर मंडी भी कई समस्याओं से दो-चार है, जो उत्तर भारत का फल, फूल और सब्जी का सबसे बड़ा व्यापार केंद्र है। यहां कुछ लोग कोरोना संक्रमण से ग्रस्त पाए गए हैं।

उद्योग बंद होने से खली, चोकर की उपलब्धता बाधित होने से जानवरों का चारा हुआ महंगा

उधर उद्योगों के बंद होने से खली, चोकर आदि की उपलब्धता बाधित हुई है जिससे जानवरों का चारा महंगा हो गया है। चिकन, अंडे के व्यापार में शामिल किसानों की दुर्गति भी कम नहीं है। र्धािमक केंद्रों के बंद होने के कारण फूलों की फसल भी खेतों में सड़ रही है। सेब, स्ट्रॉबेरी, आम आदि फल आवाजाही की कमी के कारण बाजार में नहीं आ रहे हैं।

 गेहूं में नमी बताकर एमएसपी में 100-200 रुपये प्रति क्विंटल की कटौती की जा रही 

इन सबके अलावा गेहूं में नमी बताकर एमएसपी में लगभग 100-200 रुपये प्रति क्विंटल की कटौती की जा रही है। ऐसी ही खबरें सरसों किसानों की भी हैं जहां एमएसपी में लगभग 400 रुपये प्रति क्विंटल की कमी एवं घटतौली की खबरें सामने आई हैं। जाहिर है सरकार द्वारा एमएसपी के अतिरिक्त 50 फीसद का लाभकारी मूल्य का वायदा भी घोषणा पत्र का हिस्सा मात्र बन कर रह गया है। 

कोरोना संकट और लॉकडाउन ने ग्रामीणों की सारी आशाओं पर पानी फेर दिया

अच्छी शिक्षा, अस्पताल, सड़क और जीवन-यापन के अन्य साधनों के अभाव में ग्रामीण आबादी का बड़ा हिस्सा जिस आशा के साथ गांव से शहर की ओर चला आया था, कोरोना संकट और लॉकडाउन ने उसकी सारी आशाओं पर पानी फेर दिया। शहर और प्रशासन की अव्यवस्थाओं के कारण शहरों में न तो उनके लिए समुचित भोजन की व्यवस्था हो पाई, न ही सिर ढकने का सही इंतजाम।

तमाम मजदूरों को सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलकर अपने घर पहुंचना पड़ा 

तमाम मजदूरों को सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलकर अपने घर पहुंचना पड़ा। यह अच्छा है कि उन्हें वापस लाने की तैयारी हो रही है, लेकिन विभिन्न राज्यों में लाखों मजदूरों की सुरक्षित वापसी आसान काम नहीं। यह संतोषजनक है कि उन्हें ट्रेनों से वापस लेने की व्यवस्था की जा रही है, लेकिन समस्या केवल यह नहीं है कि उन्हेंं सुरक्षित तरीके से उनके घर-गांव पहुंचाना है, बल्कि उनकी रोजी-रोटी की भी व्यवस्था करनी है। साथ ही उनकी सेहत की भी चिंता करनी है। लाखों मजदूरों की वापसी के बाद ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर लोगों की निर्भरता और बढ़ेगी। यह किसी से छिपा नहीं कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था पहले से समस्याओं से घिरी है।

गांधी जी गांवों को स्वावलंबी बनाने के पक्षधर थे, हम गांधी जी के बताए रास्ते पर चल सकते हैं

मौजूदा हालात को देखते हुए यह आवश्यक है कि संपूर्ण व्यवस्था पर पुर्निवचार किया जाए। गांधी जी स्वतंत्रता आंदोलनों के दौरान ग्राम स्वराज की आवश्यकता पर जोर देते थे। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से उनका नीतिगत मतभेद भी था जो रूसी क्रांति से प्रभावित होकर ऐसे बड़े उद्योगों के निर्माण एवं विस्तार की व्यवस्था में लगे हुए थे, जिनमें रोजगार की संभावनाएं कम थीं और आर्थिक निवेश की गुंजाइश अधिक। वहीं गांधी जी गांवों को स्वावलंबी बनाने के पक्षधर थे और कम धन लगाकर छोटे उद्योग में अधिक रोजगार के पक्षधर थे। अभी भी समय है। हम गांधी जी के बताए रास्ते पर चल सकते हैं।

आज भी हमारी अर्थव्यवस्था का मूल आधार कृषि है

आज भी हमारी अर्थव्यवस्था का मूल आधार कृषि है जो छोटे उद्योगों के लिए कच्चे माल की जरूरतों का लगभग 70 फीसद आर्पूित करती है। कृषि क्षेत्र अब भी लगभग 50 फीसद आबादी को रोजगार देता है। आमतौर पर पाया गया है कि जब भी ग्रामीण व्यवस्था में किसी तरह का संकट पैदा होता है तो उद्योग-धंधे भी प्रभावित हो जाते हैं।

खेती और उससे जुड़े कार्यों में निवेश बढ़ाने की महती आवश्यकता है

इसी तरह जब कृषि की हालत सुधरती है तो औद्योगिक उत्पादन भी बढ़ना शुरू हो जाता है। इसीलिए गांव-कृषि के विकास को प्राथमिकता देने पर विचार किया जाना चाहिए। एक तरह से संकट का यह समय एक अवसर भी है। हमारी प्राथमिकताओं में पहले खेतीबाड़ी, फिर लघु उद्योग और फिर भारी उद्योग होने चाहिए। साफ है कि खेती और उससे जुड़े कार्यों में निवेश बढ़ाने की महती आवश्यकता है।

भारत में कृषि संकट का एक बड़ा कारण मानसून पर निर्भरता है

विभिन्न वाणिज्यिक संगठन जैसे फिक्की, सीआइआइ, एसोचैम आदि संस्थानों ने औद्योगिक प्रतिष्ठानों के लिए राहत पाने की लंबी फेहरिस्त सरकार के समक्ष रखी है। सरकार की तरफ से राहत का आश्वासन भी मिला है। यह भी प्रतीत होता है कि सार्वजनिक शिक्षा एवं स्वास्थ्य पर भी सरकार विशेष ध्यान देना शुरू करेगी। मौजूदा संकट के दौर में जब कृषि अर्थव्यवस्था गरीबी और भुखमरी को पराजित कर विदेशी मुद्रा का उपार्जन भी कर रही है तब इस क्षेत्र में व्यापक बदलाव और निवेश की आवश्यकता है। पूरे ग्रामीण भारत में कृषि संकट का एक बड़ा कारण मानसून पर निर्भरता है। कभी सूखा तो कभी बाढ़ का संकट पैदा होता है।

एमएसपी मूल्यांकन की प्रक्रिया लंबे समय से दोषपूर्ण बनी हुई है

लिहाजा अब फिजूल के मदों में कटौती कर सिंचाई क्षेत्र का दायरा बढ़ाने की आवश्यकता है जो फिलहाल 35 से 40 फीसद ही है। एमएसपी मूल्यांकन की प्रक्रिया लंबे समय से दोषपूर्ण बनी हुई है। पिछले चार वर्षों से गन्ना के दामों में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है। क्या यह नीति निर्माताओं के चिंतन का विषय नहीं होना चाहिए? हीरे व्यापारियों के लिए कई हजार करोड़ रुपये की कस्टम एवं अन्य ड्यूटी में ढील दी जाती है तो क्या हम एमएसपी का सही मूल्यांकन कर उसे प्रभावी ढंग से लागू नहीं करा सकते?

महामारी के बावजूद अपना देश खाद्यान्न संपन्न है तो सिर्फ किसानों के कारण

आज महामारी के बावजूद अपना देश खाद्यान्न संपन्न है तो सिर्फ किसानों के कारण। इसलिए समय आ गया है कि अपनी खाद्य सुरक्षा को और सुदृढ़ करने के लिए किसानों के खेतों से ही अनाज की खरीदारी की जाए और पर्याप्त संख्या में वेयर हाउस एवं कोल्ड स्टोरेज की व्यवस्था बनाई जाए, ताकि प्रत्येक वर्ष हजारों टन अनाज की बर्बादी पर रोक लगाई जा सके। इससे किसानों को उनके उत्पादों के सही दाम भी मिल सकेंगे। इन प्रयासों से भारत अपनी अर्थशक्ति को दोगुनी ताकत देने में कामयाब हो सकता है, जिसका उल्लेख प्रधानमंत्री ने कई अवसरों पर किया है।

( लेखक जदयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं )