[अभिषेक कुमार सिंह]। कोविड-19 नामक महामारी ने न सिर्फ ताकतवर मुल्कों तक का आत्मविश्वास डिगा दिया है, बल्कि महामारी के दुष्चक्र में फंसी आम जनता भी बेरोजगारी और भुखमरी जैसी समस्याओं के सिर उठाने से भविष्य को लेकर बुरी तरह आशंकित हो गई है। मौजूदा माहौल को देखकर इस दावे में रत्ती भर भी झूठ नजर नहीं आता है कि आज से सौ साल पहले दूसरे विश्वयुद्ध के समय दुनिया जिस तरह घोर अवसाद में घिर गई थी, कुछ वैसी ही निराशाएं अब हमारे सामने उपस्थित होती हुई प्रतीत हो रही हैं।

इस प्रसंग में उल्लेखनीय है कि दुनिया में उड़न तश्तरियों और परग्रही सभ्यताओं (एलियंस) की मौजूदगी के किस्से कहानियों का दौर दूसरे विश्वयुद्ध के बाद से जोर पकड़ा था, जो शीतयुद्ध काल के खात्मे तक जारी रहा था। कहा गया कि ये किस्से कुछ समय के लिए लोगों के दुख-तकलीफ भुला देते थे, जिससे वे फौरी तौर पर कुछ राहत महसूस करते थे।

दुनिया को फंतासियों की खुराक : दिलचस्प बात यह है कि दुनिया एक बार फिर यूएफओ (अनआइडेंटीफाइड फ्लाइंग ऑब्जेक्ट) और एलियंस के वजूद से जुड़े दावों की ओर मुड़ती दिखाई दे रही है। मुमकिन है कि ये सारे दावे कपोल कल्पनाएं ही साबित हों, लेकिन इधर जिस तरह से पेंटागन यानी अमेरिकी रक्षा मंत्रालय ने आसमान में दिखीं कुछ अस्पष्ट चीजों (यूएफओ) के तीन वीडियो जारी किए हैं, उससे लगता है कि अमेरिका जैसी महाशक्ति भी कोरोना के कारण अवसाद में घिरी अपनी जनता और दुनिया को फंतासियों की एक खुराक देकर कुछ राहत दिलाना चाहती है। जहां तक पेंटागन द्वारा जारी वीडियो की बात है तो अमेरिकी रक्षा मंत्रालय ने अपने आधिकारिक बयान में यह कहा है कि इन्हें सार्वजनिक करने के पीछे उसका मकसद यूएफओ को लेकर गलत धारणाओं और संदेहों को खत्म करना है।

पेंटागन और अमेरिका की नीयत पर संदेह : इस मामले में उल्लेखनीय बात यह है कि ये तीनों वीडियो काफी पहले 2007 और 2017 में लीक होकर जनता तक पहुंच चुके हैं, लेकिन इनकी कोई पुष्टि पेंटागन या नासा (अमेरिकी स्पेस एजेंसी) ने नहीं की थी, इसलिए इन्हें प्रमाणिक या वास्तविक नहीं माना गया था, लेकिन अब पेंटागन ने इन्हें वास्तविक वीडियो ठहरा दिया है। पेंटागन ने संवेदनशील जानकारियों के बाहर चले जाने और गलत हाथों में पड़ जाने के खतरे का हवाला देकर इनकी पुष्टि नहीं की थी, पर अब पेंटागन को ये खतरे नजर नहीं आ रहे हैं। अब पेंटागन की दलील है कि उसका उद्देश्य लोगों को इन वीडियो की सच्चाई बताना है। इन वीडियो को कोरोना के इस मुश्किल वक्त में जारी करने से पेंटागन और अमेरिका की नीयत पर संदेह अवश्य होता है। यह सवाल उठ सकता है कि कहीं इनके जरिये अमेरिकी प्रशासन का मकसद लोगों का ध्यान कोरोना से हुई हजारों मौतों और इस मामले में अमेरिका की नाकामी से हटाना तो नहीं है। पेंटागन द्वारा पुष्टि के साथ अमेरिकी नौसेना के पायलटों ने वीडियो में जो दावे किए हैं, उनमें कितनी सच्चाई है-यह भी तो पता नहीं। मुमकिन है कि इनकी सच्चाई कभी साबित न हो, क्योंकि इससे पहले कई बार एलियंस और यूएफओ यानी उड़न तश्तरियों के अस्तित्व को नकारा जा चुका है।

हताशा में कल्पना का सहारा : उड़न तश्तरियों को देखे जाने के अकाट्य प्रमाण नहीं हैं और बहुत सी घटनाओं को शीतयुद्ध काल के कारण दुनिया में फैले अवसाद की मानसिकता या हताशा की उपज मान लिया गया। इसलिए धीरे-धीरे दुनिया यह मानने लगी कि वास्तव में ब्रह्मांड में ऐसा कोई प्राणी नहीं है जो पृथ्वी तक कोई अंतरिक्षीय वाहन भेज सके। इसके अलावा यूएफओ यानी अनजान उड़न पिंड या संक्षेप में कहें तो उड़न तश्तरियां देखे जाने के 18,200 मामलों में 90 फीसद मामले जांच के बाद ऐसे पाए गए, जिनमें किसी आकाशीय चमक, धूल के पिंडों, उपग्रहों या रॉकेट अथवा विमान को उड़न तश्तरी मान लिया गया था। शायद यही कारण है कि कुछ दशक तक उड़न तश्तरियों की टोह लेने के बाद अमेरिका ने अपना यूएफओ प्रोजेक्ट कई साल पहले बंद कर दिया और यह मान लिया गया कि उड़न तश्तरियों जैसी कोई चीज कल्पना की उपज से ज्यादा कुछ नहीं है। हालांकि इससे ब्रह्मांड के किसी कोने में अवस्थित उस मानव सदृश्य जीव और सभ्यता की तलाश पर कोई रोक नहीं लगती है, जिसे बुद्धिमान एलियन की संज्ञा दी जाती है।

ब्रह्मांडीय दूरियों ने दावों को झुठलाया : तमाम दावों के बावजूद यूएफओ और एलियंस के वजूद को नकारने के कुछ स्पष्ट कारण हैं। असल में इस सिलसिले में अब तक जो शोध हुए हैं और जो जानकारियां सामने आई हैं, उनसे साबित होता है कि किसी यूएफओ या एलियन (परग्रही प्राणी) का हमारी पृथ्वी तक आना झूठ है। वे किसी इंसान का अपहरण कर ले गए होंगे-यह बात भी साबित नहीं हो सकी है। ब्रह्मांडीय दूरी एलियंस (यदि वे हैं तो) के पृथ्वी पर आने की संभावनाओं को धूमिल करती है। अपनी आकाशगंगा में ही हमारे सूर्य के बाद जो निकटतम तारा-अल्फा सेंटॉरी है, वह हमसे चार प्रकाशवर्ष दूर है। यानी वहां तक प्रकाश की गति से जाने में भी चार साल लग सकते हैं। अल्फा सेंटॉरी हमसे करीब 24 ट्रिलियन मील दूर है। इसलिए अगर दस लाख मील प्रति घंटे की चाल से भी चला जाए तो अल्फा सेंटॉरी तक पहुंचने में 2500 साल से ज्यादा का वक्त लगेगा। अभी तक मानव सभ्यता के पास जो सबसे तेज चलने वाला स्पेसक्राफ्ट- वॉयजर है, अंतरिक्ष में उसकी गति 40 हजार मील प्रति घंटा है, उसे भी अल्फा सेंटॉरी तक पहुंचने में 70 हजार साल लगेंगे। ऐसे में सवाल यह है कि आखिर कैसे कोई यूएफओ पलक झपकते प्रकट हो जाता है, किसी पृथ्वीवासी को एक ही रात में दूसरे ग्रहों की सैर भी करा देता है और उसके बाद लापता भी हो जाता है।

सभ्यता पृथ्वी से इतर ब्रह्मांड में मौजूद : इसी तरह अगर यह माना जाए कि कोई सभ्यता पृथ्वी से इतर ब्रह्मांड में मौजूद है और इतनी बुद्धिमान है कि वह लाखों या करोड़ों मील प्रति घंटे की चाल वाला यान बना सकती है तो वह पृथ्वीवासियों से ठीक-ठाक ढंग से संपर्क क्यों नहीं करती? अपनी तरफ से उसने रहस्य क्यों बना रखा है। इस संबंध में दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि दुनिया में जितने भी लोगों ने एलियंस और यूएफओ को देखने और एलियंस द्वारा अपहरण के दावे किए हैं, जांच-परीक्षणों में वे लोग किसी न किसी मनोरोग के शिकार पाए गए हैं या फिर उनकी बताई घटना कल्पना की उड़ान ही साबित हुई है। शेष बचे जो लोग न तो मानसिक रोगी हैं और न ही उनकी बात झूठी लगती है, वे भी ऐसे प्रमाण नहीं दे सके हैं, जिससे यूएफओ या एलियंस के बारे में आश्वस्त हुआ जा सके। ये वे कारण हैं, जिन्होंने प्रसिद्ध खगोलविज्ञानी कार्ल सगॉन को भी यह कहने के लिए बाध्य कर दिया था कि आश्चर्य की बात यह है कि जब इन लोगों का अपहरण हो रहा था तो इनके पड़ोसियों ने ऐसा होते क्यों नहीं देखा?

बहरहाल पूरी दुनिया में यूएफओ देखने और एलियंस के शिकंजे में आने का दावा करने वालों की बड़ी तादाद है और बताते हैं कि अब तक करीब 40 लाख अमेरिकियों और कुल मिलाकर पूरी दुनिया से 10 करोड़ लोगों के ऐसे दावे हैं कि उन्हें परग्रहियों यानी एलियंस ने अपहृत किया था। चीन में भी हाल के दशकों में सैकड़ों लोगों ने ऐसे ही दावे किए हैं। वहां ऐसे लोगों ने बाकायदा एसोसिएशन बना ली है, जिसकी सदस्य संख्या 50 हजार का आंकड़ा पार कर चुकी है, पर ये अपने दावों के संबंध में कोई प्रमाण क्यों नहीं दे पाते हैं, इसकी साफ वजहें दिखती हैं।

मनोवैज्ञानिक समस्या का संकेत : वर्ष 2004 में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के मनोविज्ञानी रिचर्ड जे मैक्नैली और सूसन ए क्लेंसी ने जर्नल- साइकोलॉजिकल साइंस में प्रकाशित अपने शोध लेख में यह स्पष्ट करने की कोशिश की थी कि एलियन द्वारा अपहृत लोग पोस्ट-ट्राउमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर नामक मनोविकृति के शिकार होते हैं। ऐसे लोग घटित हुई घटनाओं के बारे में कुछ विवरण तो देते हैं, पर ऐसे साक्ष्य देने में असमर्थ रहते हैं, जिनसे उनकी बातें प्रमाणित हो सकें। और जो लोग स्वस्थ हैं, फिर भी ऐसे दावे करते हैं तो उनका मकसद टीवी या फिल्मों के जरिये लोकप्रियता पाना तथा ऐसी हरकतों के जरिये कुछ धन कमाना होता है। सवाल तो यह है कि जब एलियन ऐसे लोगों को पकड़ने आते हैं तो कभी वे (एलियन) खुद क्यों नहीं पकड़ लिए जाते? आखिर दुनिया में ऐसे बहादुर लोगों की कोई कमी तो नहीं है, जो चोर-डकैतों को अपनी जान पर खेलकर पकड़ लेते हैं तो फिर एलियंस को यह छूट क्यों?

कैसे खुली कुछ दावों की पोल : एलियंस की खोज से जुड़े मामलों का एक सच जनवरी 2015 में अमेरिका की खुफिया एजेंसी-सीआइए ने बताया था। सीआइए ने यह स्वीकार किया था कि 1950 से 1960 के दौरान पूरी दुनिया में यूएफओ दिखने और उनके जरिये एलियंस के पृथ्वी पर आने की जो घटनाएं कथित तौर पर हुई थीं, उनमें से आधे में तो खुद सीआइए का हाथ था। सीआइए के अनुसार ये यूएफओ नहीं, बल्कि अमेरिका के यू-2 खुफिया विमान होते थे जिन्हें 1954 से 1974 के बीच सीआइए और यू-2 कार्यक्रम के तहत उड़ाया गया था। ये खुफिया विमान 60 हजार फीट की ऊंचाई पर उड़ान भरते थे और इनकी गोपनीय तरीके से उड़ान एवं जांच होती थी, इसलिए इनसे संबंधित सूचनाएं किसी को नहीं दी जाती थीं।

यहां तक कि अन्य विमान उड़ाने वाले पायलटों तक को इन खुफिया विमानों की कोई जानकारी नहीं जाती थी, जिससे वे इन्हें यूएफओ समझ लेते थे। इन्हीं विमानों को आम जनता ने भी अनजान पिंड या यान समझा था और दुनिया में उड़न तश्तरियों एवं एलियंस का शोर मच गया था। बहरहाल जिस तरह से हर मौके पर एलियंस को धरती पर ले आया जाता रहा है, उससे पता चलता है कि इंसान परग्रही जीवों द्वारा पृथ्वी पर हमला करने और लोगों का अपहरण कर लिए जाने को लेकर कितना उत्सुक रहता है। शायद इसकी एक वजह यह है कि अब तक के ज्ञात ब्रह्मांड में किसी और जीवन या सभ्यता का पता नहीं चला है जिस कारण वह खुद को यूनिवर्स में अकेला महसूस करता है। ऐसे में कल्पनाओं में ही सही, एलियंस की कहानियां गढ़ते हुए वह अपने अकेलेपन का इलाज करता रहता है।

[विज्ञान विषय के जानकार]