[ अवधेश कुमार ]: भोपाल से भाजपा सांसद प्रज्ञा ठाकुर एक बार फिर विवादों में हैं। उन पर संसद में नाथूराम गोडसे को देशभक्त बताने का आरोप है। नि:संदेह देश का एक सांसद यदि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के हत्यारे को देशभक्त कहता है तो इससे शर्मनाक और निंदनीय कुछ नहीं हो सकता। इसके लिए भाजपा ने कार्रवाई करते हुए साध्वी प्रज्ञा के भाजपा संसदीय दल की बैठक में भाग लेने पर प्रतिबंध लगा दिया है। साथ ही रक्षा मामलों की संसदीय समिति से उन्हें हटाने की घोषणा कर दी है। इसके अलावा उन्हें लोकसभा में दो बार क्षमा याचना भी करनी पड़ी है। हालांकि साध्वी का कहना है कि उनके बयान को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया है।

तब पीएम मोदी ने कहा था- मैं साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को दिल से माफ नहीं कर पाऊंगा

दरअसल द्रमुक सांसद ए राजा द्वारा शहीद उधम सिंह का नाम लेने पर उन्होंने कहा था कि किसी देशभक्त को मत घसीटिए। हम उनके स्पष्टीकरण पर नहीं जाना चाहते। चुनाव प्रचार के दौरान भी उन्होंने गोडसे को देशभक्त बताया था। उस बयान ने देश भर में खलबली मचा दी थी। स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उसकी आलोचना करते हुए कहा था कि ‘सभ्य समाज में इस तरह की भाषा नहीं चलती। दूसरा कोई उन्हें माफ कर दे, मैं उन्हें दिल से माफ नहीं कर पाऊंगा।’ अगर साध्वी ने वाकई संसद में गोडसे के बारे में दोबारा यही बात कही तो फिर यह बिल्कुल अक्षम्य है। पार्टी ने इसकी छानबीन करके ही उनके विरुद्ध फैसला किया होगा, लेकिन यहां सवाल केवल साध्वी प्रज्ञा ठाकुर का नहीं है।

कुछ लोगों ने गांधी जी के खिलाफ नकारात्मक बातों को फैला दिया

देश में एक वर्ग है जो गांधी जी के बारे में अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल करता है। वह उनके बारे में निहायत ही झूठी बातें फैलाने का काम रहा है। यह सच है कि गांधी जी के जीवनकाल में ही जम्मू-कश्मीर में सेना भेजने तथा पाकिस्तानी सेना से लड़ने का फैसला हुआ था, जिसे उन्होंने रोका नहीं था। इसका मतलब हुआ कि उस पर उनकी सहमति थी। हैदराबाद में भी उनके समय में ही सेना भेजी गई थी। वास्तव में गांधी जी अखंड भारत की भावना से अंतिम समय तक काम करते रहे। उन्होंने विभाजन को रोकने के लिए भी जितना संभव था किया, लेकिन कुछ लोगों ने उनके खिलाफ कई नकारात्मक बातों को फैला दिया है।

शिवसेना का विचार हमेशा गोडसे के पक्ष में रहा

इस दौरान भाजपा पर हमला करने वाली कांग्रेस यह भूल रही है कि जिस शिवसेना के साथ वह महाराष्ट्र सरकार में भागीदार हो गई है उसका विचार हमेशा से गोडसे के पक्ष में रहा है। शिवसेना के संस्थापक बाला साहब ठाकरे तो डंके की चोट पर नाथूराम गोडसे को देशभक्त बताते थे। बाल ठाकरे के बेटे और हाल ही में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने उद्धव ठाकरे भी सामना के संपादक रहे हैं। गोडसे के महिमामंडन में उनकी कई टिप्पणियां सार्वजनिक रूप से मौजूद हैं। अगर कांग्रेस या दूसरी पार्टियों को गांधी जी के सम्मान की वाकई चिंता है और गोडसे की प्रशंसा करने वालों से उनका विरोध है तो फिर शिवसेना के साथ गठबंधन बनाने का मतलब क्या है?

गोडसे की हिंदुत्व के बारे में जो सोच थी, वह संघ से मेल नहीं खाती थी

इस समय विपक्षी पार्टियां यह भी कह रही हैं कि प्रज्ञा ठाकुर ने जो कहा वही संघ और भाजपा की आत्मा है, लेकिन यह हकीकत नहीं है। वास्तव में नरेंद्र मोदी ने गांधी जी के नाम का जितनी बार उल्लेख किया है उतना किसी दूसरे प्रधानमंत्री ने शायद ही किया हो। जिस संघ परिवार को राजनीतिक पार्टियां और कथित बुद्धिजीवी कटघरे में खड़ा कर रहे हैंं, उन्हें पता होना चाहिए कि संघ के प्रशिक्षण शिविरों में प्रात: गांधी जी का नाम श्रद्धा से लिया जाता है। वहां गांधी जी के जीवन से जुड़े कई प्रसंग बताए जाते हैं। यह सच है कि नाथूराम गोडसे कभी संघ से जुड़ा था, किंतु उससे निराश होकर उसने जल्द ही संघ छोड़ दिया, क्योंकि हिंदू, मुसलमान, हिंदुत्व के बारे में उसकी जो अतिवादी सोच थी, वह संघ से मेल नहीं खाती थी। उसका देशप्रेम विकृत था। उसमें संतुलन का अभाव था। लिहाजा वह संघ की आलोचना करने लगा था।

गोडसे लंबे समय तक गांधी जी का प्रशंसक रहा

उसके अखबार पहले दैनिक अग्रणि तथा बाद में हिंदू राष्ट्र के अंकों में उसके विचारों के बारे में काफी कुछ पता चलता है। यह भी सच है कि वह लंबे समय तक गांधी जी और वीर सावरकर, दोनों का प्रशंसक रहा था, जिसका उसके भाई गोपाल गोडसे ने अपनी पुस्तक ‘गांधी वध क्यों’ में जिक्र किया है। बाद में उसने सावरकर की भी तीखी आलोचना शुरू कर दी थी। साथ ही गांधी जी को भी वह अधिनायकवादी मानने लगा था।

गोडसे मानने लगे थे कि गांधी जी की हत्या से ही हिंदू समाज की रक्षा होगी

दरअसल गोडसे के पास भारत, हिंदू, हिंदुत्व को लेकर सही धारणा नहीं थी, जिसके कारण उसके इर्द-गिर्द विकृत सोच वाले लोग एकत्रित होते गए थे। वे भारत को उस समय की स्थिति से उबारने के लिए गलत रास्ते अपनाने लगे थे। वे मानने लगे थे कि गांधी जी की हत्या से ही हिंदू समाज की रक्षा होगी और भारत सही रास्ते पर आएगा। यह उनकी बड़ी घटिया सोच थी।

निकृष्ट सोच का विस्तार देश में पिछले कुछ वर्षों में हुआ

दुख की बात है कि इसी तरह की निकृष्ट सोच का विस्तार देश में पिछले कुछ वर्षों में हुआ है। हिंदू, हिंदुत्व, भारतीय राष्ट्र-राज्य की इनकी कल्पनाएं अतिवाद से भरी हैं। ऐसे तत्वों को संयमित करना जरूरी है। ऐसे लोग किसी संगठन की विचार सीमा और अनुशासन में नहीं रह सकते। अजमेर शरीफ विस्फोट में जिन लोगों को सजा हुई है वे ऐसी ही सोच की उपज हैं।

गोडसे ने जिन्ना को गोली क्यों नहीं मारी, जो भारत विभाजन के लिए सीधे जिम्मेवार थे

इनसे आज यह पूछने की जरूरत है कि अगर नाथूराम इतना ही वीर था तो उसने मोहम्मद अली जिन्ना को गोली क्यों नहीं मारी, जो कि भारत विभाजन के लिए सीधे जिम्मेवार थे? एक निहत्थे, निरपराध महात्मा, जिन्होंने अपना पूरा जीवन देश और मानवता को समर्पित कर दिया उसका हत्यारा कभी देशभक्त नहीं माना जा सकता।

हिंदू महासभा गोडसे को महापुरुष या देशभक्त नहीं मानता

साध्वी प्रज्ञा ठाकुर के बारे में कहना कठिन है कि इस घटनाक्रम के बाद उनकी सोच बदली है या नहीं? वस्तुत: इस तरह की मानसिकता वालों को शायद यह भी पता नहीं होगा कि हिंदू महासभा के किसी कार्यालय में गोडसे की तस्वीर नहीं है। जिस हिंदू महासभा से वह जुड़ा था, वही संगठन उसे महापुरुष या देशभक्त नहीं मानता।

हिंदू महासभा के साहित्य में गोडसे की कोई पुस्तक भी नहीं मिलेगी

हिंदू महासभा के साहित्य में गोडसे की कोई पुस्तक भी नहीं मिलेगी। यहां मूल हिंदू महासभा की बात हो रही है। यह अलग बात है कि आजकल जगह-जगह हिंदू महासभा के नाम से संगठन खड़े हो गए हैं, जो गोडसेवादी हैं। वास्तव में थोड़ी गहराई से विचार करें तो देश में इन दिनों एक खतरनाक प्रवृत्ति का प्रसार हो रहा है, जो किसी के भी हित में नहीं। इससे हिंदुत्व का विचार ही बदनाम होता है। इस प्रवृत्ति को कैसे रोका जाए, आज इस पर चिंतन-मनन करने की आवश्यकता है?

( लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैैं )