नई सरकार से अपेक्षाएं, उम्मीद है नए कार्यकाल में भी जारी रहेगा सुधारों का सिलसिला
सरकार को कर का दायरा बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए। रियायतों को सीमित किया जाए और अनुपालन आसान बनाएं ताकि कर संग्रह में और उछाल आए। कारपोरेट इनकम टैक्स और निजी आयकर के स्तर पर व्यापक सुधारों की लंबे समय से प्रतीक्षा की जा रही है। सुगम कर ढांचा और रियायतों की सीमा अनुपालन लागत एवं मुकदमेबाजी घटाने में मददगार बनेगी।
विवेक देवराय/आदित्य सिन्हा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन यानी राजग की सरकार ने कमान संभल ली है। संप्रग सरकार के दस वर्षों के कार्यकाल में गठबंधन की राजनीति के दौरान शासन कुप्रबंधन की भेंट चढ़ गया था, लेकिन राजग के राज में आर्थिक सुधारों से लेकर निर्णायक फैसलों ने शासन को नया आयाम प्रदान किया है। उसे मिला बहुमत भी इसकी स्वीकृति है। ऐसे में, राजग के नए कार्यकाल से भी यही अपेक्षाएं हैं कि सुधारों का सिलसिला पूर्व की भांति रफ्तार पकड़ेगा।
श्रम और भूमि अधिग्रहण जैसे क्षेत्र अभी भी सुधारों की प्रतीक्षा में हैं, जो निवेश को लुभाने और अनुकूल कारोबारी परिवेश निर्मित करने के लिए अत्यंत आवश्यक हैं। हालांकि सुधारों के कई मामलों में गेंद राज्यों के पाले में होती है, लेकिन सक्षम केंद्र इस मामले में प्रभावी पहल करके उन्हें सिरे चढ़ाने में सहायक हो सकता है। भारत के दृष्टिकोण से यह बहुत महत्वपूर्ण है कि यदि वह जनसांख्यिकीय लाभांश की संभावनाओं को भुनाना चाहता है तो उसे बड़े पैमाने पर रोजगार सृजन करना होगा। इसके लिए शिक्षा एवं कौशल विकास पर ध्यान केंद्रित करने के साथ ही बुनियादी ढांचे को उन्नत बनाना बहुत आवश्यक होगा। नई सरकार को अविलंब अपनी प्राथमिकताएं तय करके आगे बढ़ना होगा।
सबसे पहले तो पूंजीगत व्यय को अपनी प्राथमिकता में रखना होगा। यह राजस्व व्यय की तुलना में आर्थिक वृद्धि को ज्यादा गति देता है। बीते कुछ बजट इस तथ्य की पुष्टि करने वाले रहे हैं। इसलिए रेलवे, राष्ट्रीय राजमार्ग, बंदरगाह और जलमार्ग जैसे बुनियादी ढांचे में निवेश का दायरा और बढ़ाया जाना चाहिए। ये क्षेत्र संविधान की सातवीं अनुसूची में संघ सूची के विषय हैं। इनसे न केवल आर्थिक गतिविधियां रफ्तार पकड़ती हैं, बल्कि दीर्घकालिक विकास लक्ष्य भी सुनिश्चित होते हैं। इसमें उन परियोजनाओं को वरीयता देनी होगी, जिन्हें केंद्र सरकार सीधे लागू करने की स्थिति में हो। राज्य सरकारों के साथ बेहतर समन्वय भी बनाना होगा, जिनके चलते अक्सर परियोजनाएं लटक जाती हैं।
जनसांख्यिकीय लाभांश की व्यापक संभावनाओं को भुनाने के लिए नई सरकार को स्कूली शिक्षा में सुधारों को मूर्त रूप देना चाहिए। पिछले कार्यकाल में सरकार राष्ट्रीय शिक्षा नीति लाई थी। यह सरकार राज्यों को वह नीति जल्द से जल्द लागू करने के लिए प्रेरित करे। साथ ही यह भी ध्यान रखा जाए कि केवल स्कूली शिक्षा ही पर्याप्त नहीं, बल्कि उसकी गुणवत्ता भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। जहां शिक्षा के अधिकार कानून ने पढ़ाई-लिखाई तक बच्चों की पहुंच बेहतर बनाई है, लेकिन नेशनल अचीवमेंट सर्वे यानी एनएएस के अनुसार शिक्षा की गुणवत्ता में विभिन्न राज्यों के स्तर पर विसंगतियां देखने को मिली हैं।
एनएएस 2021 के अनुसार चंडीगढ़, पंजाब, राजस्थान और हरियाणा जैसे राज्यों में छात्र गणित एवं विज्ञान जैसे विषयों में बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं, जबकि मेघालय, मिजोरम, नगालैंड और छत्तीसगढ़ बहुत पिछड़ रहे हैं। इस विसंगति को दूर करने के लिए राज्यों को समग्र शिक्षा अभियान के माध्यम से केंद्र से सहयोग लेकर प्रभावी समाधान में जुटना चाहिए। इस मुहिम में एनएएस के डाटा का उपयोग कर लक्षित हस्तक्षेप किया जाए। अध्यापकों के प्रशिक्षण को प्राथमिकता मिले और शैक्षणिक प्रक्रिया में अभिभावकों एवं सामुदायिक सक्रियता बढ़ाई जाए। विभिन्न राज्यों के बीच शिक्षा के स्तर पर बन रही खाई को पाटने और उसकी गुणवत्ता को सुधारने के लिए ये कदम अत्यंत आवश्यक हो गए हैं।
शोध एवं विकास (आरएंडडी) इकोसिस्टम और शोध-अनुसंधान एवं नवाचार के स्तर पर भारत चुनौतियों से जूझता आया है। ऐसे में नई सरकार को इस मोर्चे पर ध्यान देना होगा। देश के उच्च शिक्षण संस्थानों में एक प्रतिशत से कम संस्था ही गुणवत्तापरक शोध में संलग्न हैं। इससे देश में शोध से जुड़ी क्षमताएं पूरी तरह आकार नहीं ले पा रही हैं। इन संस्थानों में वित्तीय संसाधनों का अभाव और कुछ अवरोधक नीतियां इसके लिए जिम्मेदार हैं। भारत में आरएंडडी व्यय भी जीडीपी के अनुपात में बहुत मामूली है। इस मामले में वह चीन एवं अमेरिका जैसे नवाचार में अग्रणी देशों से काफी पीछे है। इसके अलावा, हाल के वर्षों में राजकोषीय अनुशासन और वित्तीय सुधारों ने आइआइटी, आइआइएसईआर और आइआइएस जैसे संस्थानों के लिए संसाधनों की उपलब्धता और उनके नीतिगत लचीलेपन को प्रभावित किया है।
राजस्व बढ़ाने के लिए प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष कर सुधार भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। सरकार को कर का दायरा बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए। रियायतों को सीमित किया जाए और अनुपालन आसान बनाएं ताकि कर संग्रह में और उछाल आए। कारपोरेट इनकम टैक्स और निजी आयकर के स्तर पर व्यापक सुधारों की लंबे समय से प्रतीक्षा की जा रही है। सुगम कर ढांचा और रियायतों की सीमा अनुपालन लागत एवं मुकदमेबाजी घटाने में मददगार बनेगी। प्रत्यक्ष करों में सुधार के तहत नए कर ढांचे में सभी रियायतों को समाप्त कर टैक्स की दरें घटाई जाएं। अधिक वस्तुओं एवं सेवाओं को शामिल कर जीएसटी का दायरा बढ़ाने के साथ ही उसकी दरें तार्किक करें, जिससे सक्षमता बढ़ने के साथ ही राजस्व संग्रह भी बढ़ेगा। जीएसटी परिषद को नियमित तौर पर विमर्श के माध्यम से इन सुधारों को मूर्त रूप देकर सुनिश्चित करना चाहिए कि यह तंत्र उभरती आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति कर सके।
हालांकि सुधारों की सूची तो बहुत लंबी है, लेकिन यदि सरकार इन क्षेत्रों पर ही ध्यान केंद्रित करे तो काफी स्थितियां बेहतर हो सकती हैं। इससे सतत एवं तेज आर्थिक वृद्धि और राजकोषीय स्थायित्व की स्थिति बनेगी। इससे सुनिश्चित होगा कि भारत आर्थिक प्रगति के पथ पर अग्रसर रहकर नई उपलब्धियां हासिल करता रहेगा।
(देवराय प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के प्रमुख और सिन्हा परिषद में ओएसडी-अनुसंधान हैं)