[शशांक मणि] पुलवामा में हुए आतंकी हमले के बाद भारत द्वारा पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों पर की गई एयर स्ट्राइक यह दर्शाती है कि भारतीय गणतंत्र का प्रवाह अपने चरम पर है। सीआरपीएफ के शहीद जवानों में शामिल मेरे जिले देवरिया के विजय मौर्या का शव जब गांव पहुंचा तो युवाओं का सैलाब उमड़ पड़ा। जिले के विभिन्न हिस्सों से जुलूस निकाले गए और हफ्तों तक पाकिस्तान के पुतले जलाए गए। हमारे युवाओं की ये अभूतपूर्व भावनाएं विश्व के सबसे बड़े युवा राष्ट्र की दबी हुई ऊर्जा की ओर इशारा करती हैं। पुलवामा की घटना ने इस ऊर्जा को ज्वलंत रूप में प्रदर्शित किया है, किंतु हमारे युवा इस ऊर्जा को दूसरे कार्यो में भी सकारात्मक रूप से प्रदर्शित कर सकते हैं। विरोध महत्वपूर्ण है, किंतु युवाओं को यह समझना होगा कि निर्माण उससे कहीं अधिक महत्वपूर्ण है।

पुलवामा की घटना ने राष्ट्र का ध्यान छोटे कस्बों और गांवों की ओर खींचा है। इस घटना से एक बड़ा हिस्सा जिसे मैं ‘मध्य-भारत’ कहता हूं, आक्रोशित हुआ। यह मध्य-भारत न तो अमीर है और न ही गरीब, यह टियर-2 और टियर-3 जिलों में बसने वाला वह हिस्सा है जो ज्यादातर सैनिक सीमा पर भेजता है। पुलवामा ने यह दिखा दिया कि सीमाओं की निगरानी अधिकांशत: छोटे गांवों और कस्बों से आने वाले नागरिकों द्वारा ही की जाती है।

हमारी सीमाओं की सुरक्षा करने वाले जवानों को एक ऐसे मजबूत गणतंत्र की आवश्यकता है जो उन्हें उच्च गुणवत्ता वाले हथियार, कपड़े और रक्षा-प्रणाली उपलब्ध करा पाने के लिए आर्थिक रूप से समृद्ध और सामाजिक रूप से सामंजस्यपूर्ण हो। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2022 तक देश से एक नया भारत बनाने का वादा किया है, लेकिन यह नया भारत केवल पुतले जलाने और सड़कों पर कदमताल करने से नहीं बनेगा, विशेषकर पाकिस्तान के खिलाफ, जो कि हमारे लिए खतरे से ज्यादा कोलाहल का कारण बनता है। जो एक परमाणु हथियार से लैस विरोधी जरूर है, लेकिन भारत के साथ निरंतर युद्ध जारी रखने के लिए उसके पास भू-रणनीतिक गहराई और मजबूत आर्थिक पकड़, दोनों का ही अभाव है, जब तक कि उसे अपने आका चीन का समर्थन नहीं मिलता।

संयुक्त राष्ट्र द्वारा आतंकी संगठन जैश-ए-मुहम्मद और उसके सरगना मसूद अजहर को प्रतिबंधित करने के लिए कई बार प्रस्ताव लाए गए, किंतु इनमें से किसी पर भी चीन ने अपना समर्थन कभी नहीं दिया। चीन जानता है कि भारत को बैकफुट पर रखने के लिए उसके इस दावे का होना महत्वपूर्ण है कि हमारा लोकतंत्र अस्थिर है, लेकिन चीन के साथ हमारी प्रतिद्वंद्विता, उसके द्वारा पाकिस्तान की रक्षा करने और सैन्य आयाम से भी परे है। यदि यह प्रतिद्वंद्विता आर्थिक, राजनीतिक और दार्शनिक हो तो भारत के लिए स्वस्थ हो सकती है, लेकिन वर्तमान में भारत अपने एक प्रतिस्पद्र्धी योग्य राष्ट्र के विरुद्ध खड़ा है। चीन के साथ बराबरी के मानकों की स्थापना करके भारत पाकिस्तान से दूर निकल सकता है, जो कि हमारी सोच को संकुचित बनाए हुए है।

2022 तक भारत केवल चीन से बड़ा ही नहीं, बल्कि विश्व का सबसे बड़ा देश बनेगा। ये दोनों ही राष्ट्र प्राय: विकास के विभिन्न, किंतु प्रतिस्पद्र्धी मार्ग प्रस्तुत करते रहते हैं। भारत पूरी तरह से परखा जा चुका लोकतंत्र है, जबकि चीन अभी भी आर्थिक रूप से स्वतंत्र, किंतु राजनीतिक रूप से बाध्यकारी राजनीति द्वारा संचालित है। भारत की ताकत उसके 1.35 अरब नागरिक हैं जो उद्यम के माध्यम से तेजी से देश का निर्माण कर रहे हैं। चीन ने बड़े बांधों, शहरों, पुलों और दुनिया की किसी भी बड़ी चीज को बनाने के काम में महारत हासिल कर ली है, लेकिन वह अब भी बीजिंग द्वारा संचालित है।

हमारे उत्तर में स्थित इस विशालकाय देश के समक्ष एक प्रमुख प्रतिस्पद्र्धी ताकत के रूप में भारत के पास अपनी गणतंत्रीय ऊर्जा है, जो कि हमने बीते सप्ताह देखी। पाकिस्तान जैसा देश, जो कि व्यापक रूप से असफल माना जाता है, पर ध्यान केंद्रित रखकर हम अपने ही कद को कम कर रहे हैं।

चीन के साथ युद्ध केवल डोकलाम में नहीं, देवरिया जैसे छोटे शहरों में भी लड़ा जाएगा। हमें अपने टियर-2 और टियर- 3 जिलों का निर्माण करना होगा, जहां हमारी 58 फीसद आबादी निवास करती है, तभी बनेगा एक नया भारत जो केवल प्रतिस्पर्धा ही नहीं, बल्कि चीन से बेहतर प्रदर्शन भी कर सके और इसके लिए हमें अपनी जनतांत्रिक ऊर्जा को नए सिरे से परिभाषित करना होगा। इसके लिए हमें अपनी नजरें चीन से दीर्घकालीन प्रतिस्पर्धा के प्रयासों पर टिकानी होंगी, न कि केवल पाकिस्तान में पनपने वाले आतंकी संगठनों पर। इसके मूल में अपने 1.35 अरब नागरिकों को राष्ट्र-निर्माण के लिए प्रेरित करने की प्रक्रिया है।

लोकतंत्र का दीर्घकालिक विकास नागरिकों पर राष्ट्र निर्माता के रूप में टिका है। सभी प्रेरित युवा सीमा पर सैनिक नहीं हो सकते, लेकिन सबसे बड़े और तेजी से बढ़ते लोकतंत्र के सामने कई मुद्दों को हल करने के लिए युवा ऊर्जा की आवश्यकता है। छोटे-छोटे जिलों और कस्बों में स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार जैसे अनेक मुद्दों के समाधान के लिए युवाओं को उद्यमिता का रास्ता चुनना होगा। इसके लिए एक वातावरण तैयार करना होगा। अपना उद्देश्य और रोजगार खोजने में सफल होने वाला प्रत्येक युवा उद्यमी अप्रत्यक्ष रूप से मोर्चे पर हमारे सैनिकों की मदद ही करेगा।

इस प्रकार की पुन: निर्देशित ऊर्जा विकास लाएगी, गांवों और कस्बों में आर्थिक और सामाजिक सामंजस्य लाएगी। ‘सीमा पर जवान’, ‘खेत में किसान’ और ‘निर्माण में युवा’, जहां युवा विकास के सिपाही होंगे। यह गणतांत्रिक विस्तार हमारी आर्थिक सुदृढ़ता को विस्तृत और गहरा करता है और इसे गुरुग्राम और मुंबई तक सीमित रखने के बजाय अनेक छोटे-मझोले शहरों तक लेकर आता है। हमें एक ऐसे मजबूत और अधिक समावेशी विकास प्रतिमान की दरकार है जो अनेक लोगों को लाभान्वित करे। देश को समय पर बेहतर हथियार, अधिक प्रशिक्षित सैनिक, लड़ाकू-विमान प्राप्त होने चाहिए ताकि यदि उत्तर की ओर हमारे पड़ोसी के साथ व्यापक संघर्ष भी हो तो पूरा गणराज्य तैयार रह सके।

उड़ी के कमांडों के शौर्य की प्रशंसा करनी हो या सुबह 3:30 बजे एलओसी पार करने वाले फाइटर पायलट का सम्मान करना हो या फिर विंग कमांडर अभिनंदन के धैर्य को सराहना हो अथवा पुलवामा में शहीद हुए जवानों को श्रद्धांजलि देना हो, सबका एक मात्र तरीका यही है।

(लेखक जागृति यात्र के संस्थापक हैं)