अवधेश कुमार। COVID-19 Lockdown: कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी का ताजा बयान है कि लॉकडाउन विफल रहा। उन्होंने यह भी पूछा कि प्रधानमंत्री आगे का ब्लूप्रिंट बताएं। इसके पहले जनता ने देखा कि कांग्रेस ने किस तरह बसों को लेकर सस्ती राजनीति की। इसकी चर्चा आवश्यक है। प्रियंका गांधी वाड्रा ट्वीट और वीडियो में बता रही थीं कि उप्र सरकार श्रमिकों को सवारी देकर उनके घर नहीं पहुंचा रही। फिर उन्होंने कहा कि हम एक हजार बसें दे रहे हैं। कांग्रेस के लोगों को लगा था कि योगी सरकार उनके प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करेगी और उसे सरकार को कठघरे में खड़ा करने का मौका मिल जाएगा।

कांग्रेस की अपेक्षा के विपरीत उप्र सरकार बसों की सेवा लेने को तैयार हो गई। इससे हड़कंप मच गया, क्योंकि एक हजार बसों की व्यवस्था तो की ही नहीं गई थी। उप्र सरकार ने नहले पर दहला मारते हुए कहा कि कोई बात नहीं, हमें बसों की विस्तृत जानकारी दे दें। कांग्रेस को इसकी भी उम्मीद नहीं थी। मजबूरी में उसने यह शोर मचाना शुरू कर दिया कि हमारी बसें आगरा से प्रवेश कर रही हैं, लेकिन अनुमति नहीं दी जा रही। सवाल उठता है कि आखिर प्रियंका ने महाराष्ट्र, पंजाब, राजस्थान को बसें क्यों नहीं उपलब्ध कराईं? वहां से भी तो लोग पैदल या असुरक्षित सवारी से निकल रहे थे।

जो राजस्थान सरकार प्रियंका के वचन को पूरा करने के लिए अपने परिवहन निगम की बसें उत्तर प्रदेश को दे सकती है वह अपने यहां की स्थिति क्यों नहीं सुधार सकती? कांग्रेस का तर्क है कि प्रियंका महासचिव जरूर हैं, लेकिन उन पर दायित्व उप्र का है इसलिए वह उप्र की चिंता कर सकती थीं। अगर वह केवल उत्तर प्रदेश की नेता हैं तो राजस्थान सरकार ने उनके कहने पर बसें क्यों दीं? सच यह है कि कांग्रेस ने पैदल लौटते श्रमिकों की मीडिया में मानवीय कवरेज का राजनीतिक लाभ उठाने के लिए फिल्मों की तरह लगातार स्टंट की राजनीति की। शायद प्रियंका के सलाहकारों ने समझा दिया था कि आप लगातार बसें देने की मांग करेंगी तो आपको सहानुभूति एवं वाहवाही मिलेगी। यह आ बैल मुङो मार वाली राजनीति थी। उन्होंने 1049 बसों की सूची भेजी। इसमें बसें केवल 879 ही थीं। बाकी थ्री व्हीलर, कार, स्कूटर, एंबुलेंस थीं। बिना फिटनेस 78 बसें थीं। बिना बीमा की 140 बसें थीं। बिना बीमा एवं बिना फिटनेस की 78 थीं। 70 ऐसी थीं जिनका कोई डाटा उपलब्ध नहीं थी, लेकिन कांग्रेस ने तीन दिनों तक अपने स्टंट में पूरे देश को उलझाया।

जब आप एक मानवीय आपदा में छिछली राजनीति कर किसी सरकार को कठघरे में खड़ा करेंगी तो वह भी राजनीतिक तरीके से आपको जवाब देगी। योगी सरकर ने एक-एक नंबर और नाम की जांच कर दी। प्रियंका और कांग्रेस के पास कोई जवाब नहीं था। यह समझ से परे है कि सबसे लंबे समय तक शासन करने वाली कांग्रेस इस तरह की स्टंट राजनीति कर सकती है? उत्तर प्रदेश में ही दो अन्य प्रमुख पार्टयिां बसपा एवं सपा हैं। वे भी योगी सरकार की आलोचना करती हैं, किंतु उन दोनों ने ऐसा नहीं किया। उनको सच मालूम है।

वस्तुत: जबसे लॉकडाउन आरंभ हुआ तबसे कांग्रेस केंद्र सरकार को घेरने के नाम पर स्टंट राजनीति कर रही है। सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री को सात पत्र लिखे और सातों मीडिया के माध्यम से सार्वजनिक किए। अन्य किसी पार्टी ने पत्र नहीं लिखा। सोनिया का एक वीडियो जारी हुआ जिसमें वह कह रही थीं कि कांग्रेस श्रमिकों की रेल यात्र का पूरा किराया देगी। इसी तरह राहुल गांधी दो बार कामगारों से मिले।

एक का वीडियो तो गानों के साथ फिल्मी शैली में जारी किया गया। राहुल भूल गए कि सबसे ज्यादा कामगार यदि किसी राज्य से निकले या निकाले गए तो वह महाराष्ट्र है। राहुल का वीडियो स्वयं कांग्रेस पार्टी के ही खिलाफ था। पत्रकार वार्ता में राहुल ने जवाब दिया कि महाराष्ट्र सरकार में हम निर्णायक नहीं हैं, समर्थन दे रहे हैं। क्या आपने किसी अन्य पार्टी को कभी ऐसा कहते सुना? वास्तव में कोई पार्टी जब नीति, नेतृत्व और रणनीति के स्तर पर दिशाभ्रम की शिकार हो जाती है तो वह ऐसे ही स्टंट करती है। इसी को रणनीतिक दरिद्रता या वैचारिक क्षुद्रता कहते हैं। जब सोनिया ने कहा था कि कांग्रेस मजूदरों का रेल भाड़ा देगी तब कायदे से रेल मंत्री पीयूष गोयल को कहना चाहिए था कि ठीक है, हम इस प्रस्ताव को स्वीकार करते हैं और श्रमिकों के किराये का पूरा बिल 10 जनपथ भेज दिया जाएगा। यह कांग्रेस के स्टंट का सही जवाब होता।

कांग्रेस का अपना व्यवहार देखिए। उप्र सरकार ने अपने छात्रों को कोटा से लाने के लिए राजस्थान की कुछ बसों का उपयोग किया। कोटा में उप्र सरकार ने 560 बसें भेजी थीं, क्योंकि उसके पास 10 हजार छात्र-छात्रओं के फंसे होने की सूचना थी, किंतु वहां जाकर पता चला संख्या 12 हजार है। तो उप्र ने 70 बसों की मदद राजस्थान से ली। साथ ही यह आग्रह किया कि हमारी बसों में भी डीजल भरवा दिया जाए। पहले डीजल का बिल साढ़े 19 लाख आया, जिसका भुगतान कर दिया गया। उसके बाद फिर राजस्थान ने किराये के एवज में 36 लाख 36 हजार 664 रुपये का बिल भेजा। राजस्थान सरकार कह रही है कि उनसे बिल मांगा गया। बिल मांगना प्रशासन का काम था, लेकिन आखिर शासन की क्या जिम्मेवारी थी? अब बिहार सरकार ने कहा है कि उनके छात्रों को कोटा से वापस लाने के पहले राजस्थान सरकार को करीब एक करोड़ रुपये देने पड़े। यह कितनी शर्मनाक हरकत है? कांग्रेस अगर गंभीरता से अपने रवैये पर पुनíवचार कर बदलाव नहीं करती तो वह लगातार जनता की नजर से उतरती चली जाएगी।

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं)