नई दिल्ली [प्रदीप]। जहां एक ओर कोरोना की वजह से मानव जीवन बुरी तरह प्रभावित हुआ है, वहीं प्रकृति के लिए यह किसी वरदान से कम नहीं है। हम सिर्फ सिक्के के एक पहलू के आधार पर कोरोना वायरस को महामारी मान रहे हैं, परंतु दूसरे पहलू को देखा जाए तो यह पारिस्थितिकी तंत्र, प्रकृति एवं पर्यावरण के लिए वरदान सिद्ध हो रहा है।

पूरी दुनिया जिस पर्यावरण और पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा की खातिर बड़ी-बड़ी कार्य योजनाएं बनाती रही, वैश्विक चिंतन होता रहा, अरबों रुपये भी खर्च हो चुके हैं, फिर भी कुछ खास नतीजा नहीं निकला, वही यह काम एक अदने वायरस की बदौलत हुए विश्वव्यापी लॉकडाउन ने कर दिखाया।

इंसानियत पर भारी कोरोना ने बड़ी सीख और ज्ञान भी दिया। अब भी समय है चेतने और जाग उठने का, वरना देर हुई और प्रकृति ने कहीं और भी तेवर दिखाए तो क्या गत होगी, यह नन्हें विषाणु कोरोना ने जता दिया है। प्रकृति ने हम इंसानों को जीवन-यापन के लिए एक से बढ़कर एक संसाधन दिए, मगर अपने लालच एवं स्वार्थ के चलते इंसान सबकुछ से निर्वासित हो गया और हालात ऐसे बन गए हैं कि उसे अपनेअपने घरों में बंद होकर जीना पड़ रहा है।

आज मानवीय क्रियाएं ठप पड़ चुकी हैं और इसका प्रत्यक्ष लाभ प्रकृति को मिल रहा है। वातावरण स्वच्छ और निर्मल हो गया है। पानी, नदियां, हवा, जंगल, भूमि एवं पूरा पर्यावरण खिलखिला रहा है। हवा शुद्ध होने से आसमान भी साफ हो गया है। अमेरिका और यूरोप सहित विश्व के ज्यादातर देशों में लॉकडाउन है। सड़कों पर गाड़ियों के नहीं चलने से सकारात्मक परिणाम देखने को मिल रहा है।

पर्यावरण को दमघोंटू प्रदूषण से राहत मिली है। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद से यह पहला मौका है जब दुनिया में जहरीली गैसों का उत्पादन बेहद कम हो रहा है। आजकल आकाश भी नीला दिखने लगा है, क्योंकि प्रदूषण की वजह से ओजोन परत का संतुलन बिगड़ गया था, उसमें सुधार हो रहा है। यह जगजाहिर है कि किस प्रकार से चीन पर्यावरण से जुड़े अंतरराष्ट्रीय समझौतों का उल्लंघन करते हुए अपने उद्योग-धंधों में ओजोन परत के लिए घातक गैसों का व्यापक पैमाने पर इस्तेमाल करता रहा है। पृथ्वी पर जीवन के लिए ओजोन परत का बहुत महत्व है।

पृथ्वी के धरातल से लगभग 25-30 किमी की ऊंचाई पर वायुमंडल के समताप मंडल क्षेत्र में ओजोन गैस का एक पतला आवरण है। यह आवरण पृथ्वी के लिए एक सुरक्षा कवच की तरह काम करती है। ओजोन परत सूरज से आने वाली जीव जगत के लिए बेहद घातक पराबैंगनी किरणों को पृथ्वी पर आने से रोकती है। अगर पृथ्वी के चारों ओर ओजोन रूपी यह सुरक्षा छतरी नहीं होती तो शायद अन्य ग्रहों की तरह पृथ्वी भी जीव-विहीन होती।

वर्ष 1974 में कैलिर्फोिनया यूनिर्विसटी के मारियो मोलिना और शेरवुड रोलैंड ने पहली बार यह पता लगाया कि सीएफसी ओजोन परत को गंभीर नुकसान पहुंचा रही है, क्योंकि इसमें मौजूद क्लोरीन के अणु ओजोन के लाखों अणुओं को नष्ट कर देने में सक्षम हैं। हालांकि प्रारंभ में इस बात को न तो वैज्ञानिकों ने गंभीरता से लिया और न ही राजनेताओं और औद्योगिक घरानों ने।

वर्ष 1985 में जब वैज्ञानिकों ने पृथ्वी के दक्षिणी ध्रुव यानी अंटार्कटिका के ऊपर ओजोन की परत में एक विशालकाय सुराख देखा, जो निरंतर बड़ा होता जा रहा था, तब जाकर इस बड़े खतरे का अहसास हुआ। अभी औद्योगिक गतिविधियों के बंद होने की वजह से ओजोन परत में सुधार हो रहा है। लॉकडाउन की बदौलत हमारी पृथ्वी में पहले से बहुत कम कंपन हो रहा है।

इन दिनों हमारी पृथ्वी पहले से कहीं अधिक स्थिर हो गई है। भूवैज्ञानिकों के मुताबिक अब पृथ्वी उतनी नहीं कांप रही जितनी लॉकडाउन से पहले कांपती थी। ऐसा परिवर्तन इसलिए हुआ है, क्योंकि विश्वव्यापी लॉकडाउन के दौरान पृथ्वी पर होने वाली गतिविधियां बंद हैं।

पूरी दुनिया इस समय ठहरी हुई है। पृथ्वी का कंपन कम होने के कारण वैज्ञानिकों को पृथ्वी की सतह पर होने वाली प्राकृतिक गतिविधियों का बेहतर अध्ययन करने का ये सुनहरा अवसर है। इस दौरान भूवैज्ञानिक ज्वालामुखी के व्यवहार की भविष्यवाणी करने और भूकंप के उपकेंद्र के स्थान को त्रिभुजित करने के लिए जिम्मेदार समुद्र की लहरों के प्रभाव सहित अन्य शोध-अनुसंधान सरलता से कर सकेंगे।

विश्वव्यापी लॉकडाउन के कारण कार्बन उत्सर्जन बेहद कम हो गया है। दुनिया भर में द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से पहली बार कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन में पांच प्रतिशत से अधिक की कमी दर्ज की गई है। विशेषज्ञों के अनुसार एक फरवरी से 19 मार्च, 2020 के बीच पिछले वर्ष की समान अवधि की तुलना में उद्योगों से कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में एक करोड़ टन की कमी दर्ज की गई है।

इस महामारी ने एक बात स्पष्ट कर दी है कि संकट की घड़ी में पूरी दुनिया एक-दूसरे का साथ देने के लिए तैयार है। तो फिर क्या यही जज्बा और इच्छाशक्ति हम पर्यावरण बचाने के लिए जाहिर नहीं कर सकते? आज जब हम घरों में बैठे हैं तो हमारे पास सलीके से सोचनेविचारने, चिंतन करने का पर्याप्त समय है। भावी पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी तंत्र के खतरों से निपटने के लिए आज यह उपयुक्त समय है जब हमें प्रकृति के लिए कुछ करने की जरूरत है, अन्यथा हमें इसके खतरनाक परिणाम जरूर देखने को मिलेंगे।

(विज्ञान विषय के जानकार)