चंदन कुमार चौधरी। डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनल एंड ट्रेनिंग यानी कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग ने हाल में एक दिशा-निर्देश जारी किया है जिसके मुताबिक सरकार की ओर से हर माह एक रिपोर्ट बनेगी जिसमें किन-किन मंत्रालयों में कितनी नई नियुक्ति हुई इसका लेखा-जोखा दिया जाएगा। इसमें सीधी और प्रतियोगिता के माध्यम से होने वाली दोनों नियुक्तियां शामिल होंगी। सभी मंत्रालयों और विभागों को भेजे गए दिशा-निर्देश में नई व्यवस्था को फरवरी से लागू करने के लिए कहा गया है।

ऐसे समय में जब देश के युवा बेरोजगारी की समस्या से जूझ रहे हैं, वैसी परिस्थिति में निश्चित रूप से सरकार का यह पहल एक स्वागत योग्य कदम है। केंद्र सरकार ने तमाम मंत्रालयों और विभागों में पिछले छह वर्षो के दौरान रिक्त पदों को भरने की प्रक्रिया में लगातार तेजी आने का दावा भी किया है और इसके लिए सरकार ने आंकड़ा भी जारी किया है। नौकरी और बेरोजगारी को लेकर सरकार लगातार सवालों के घेरे में रही है। इस मुद्दे को लेकर विपक्ष सरकार पर हमलावर है और उसे घेरती रही है। ऐसे में लगता है कि सरकार ने युवाओं को रोजगार देने और विपक्ष की चुनौतियों से निपटने के लिए एक बेहतर दिशा-निर्देश जारी किया है।

सरकार का कहना है कि खाली पदों की संख्या में पिछले छह वर्ष में पांच फीसद कमी आई है। वर्ष 2014 में यह 16 फीसद थी जो 2019 में घटकर 11 फीसद रह गई है। अभी कुल खाली पदों की संख्या 6,83,823 है। सरकार ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि अभी करीब चार लाख पदों को भरने की प्रक्रिया चल रही है। हालांकि यह अलग बात है कि इस रिपोर्ट में यह आंकड़ा नहीं दिया गया है कि कितने पदों को समाप्त किया गया है या कितने पदों को मिला कर एक पद किया गया है।

दरअसल सरकार को समझना होगा कि भारत में लंबे समय से रोजगार की स्थिति ठीक नहीं है। जिस तेजी से ग्रामीण खपत में कमी आई है और देश में बेरोजगारी की दर बढ़ी है उसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए। दूसरी तरफ केंद्र में सत्तासीन मोदी सरकार भारत को पांच ‘टिलियन डॉलर इकॉनामी’ बनाने का सपना देख रही है। यह तभी संभव है जब हर हाथ को काम मिले और देश में बेरोजगारी की दर कम हो। इसके लिए हमें त्वरित कार्रवाई करनी होगी और लगातार प्रयास करने होंगे।

नौकरी को लेकर देश और विदेश से अक्सर जारी होने वाली रिपोर्ट चिंता बढ़ाने का काम करती है। हाल में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की रिसर्च रिपोर्ट ‘इकोरैप’ के अनुसार मौजूदा वित्त वर्ष में नौकरियों में भारी गिरावट की आशंका है। रिपोर्ट के मुताबिक, अर्थव्यवस्था में सुस्ती की वजह से रोजगार पर बुरा असर पड़ा है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि वित्त वर्ष 2018-19 के मुकाबले वर्ष 2019-20 में 16 लाख कम नई नौकरियां सृजित हुईं और रोजगार के कुल 89.7 लाख नए मौके आए थे।

आम लोगों के लिए रोजगार एक बहुत ही अहम मुद्दा होता है। इससे वे अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं और अगर लोगों के पास रोजगार ना हो तो इससे देश की अर्थव्यवस्था पर भी असर पड़ना स्वाभाविक है। ‘इकोरैप’ रिपोर्ट के इस हिस्से से आसानी से समझा जा सकता है। रिपोर्ट के मुताबिक असम, बिहार, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और ओडिशा जैसे राज्यों से मजदूरी और नौकरी के लिए बाहर गए लोगों के घर वापस भेजे जाने वाले पैसों में भी कमी दर्ज की गई है।

आम लोगों के सामने नौकरी की समस्या एक बड़ा सवाल होती है। सरकार भी इस बात को समझती है और शायद यही वजह है कि डीओपीटी ने सभी विभागों और मंत्रालयों को दिशा-निर्देश जारी किया है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के हाल के एक रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2018 में प्रतिदिन औसतन 35 बेरोजगारों और स्वरोजगार से जुड़े 36 लोगों ने खुदकुशी की। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, ऐसे में इन दोनों श्रेणियों को मिलाकर वर्ष 2018 में कुल 26,085 लोगों ने आत्महत्या की। आंकड़ों के अनुसार उस वर्ष 12,936 बेरोजगारों और स्वरोजगार से जुड़े 13,149 लोगों ने खुदकुशी की। यह आंकड़ा कृषि क्षेत्र से जुड़े खुदकुशी करने वाले 10,349 लोगों की तुलना में अधिक है।

निश्चित रूप से एनसीआरबी का यह आंकड़ा चौंकाने और चिंतित करने वाला है। आमतौर पर यह माना जाता है कि देश की कुल आबादी का एक बड़ा हिस्सा कृषि क्षेत्र पर निर्भर है। देश में कृषि सेक्टर की स्थिति बहुत बेहतर और आदर्शजनक नहीं है। आमतौर पर हम मान कर चलते हैं कि देश में कृषि संकट के दौर से गुजर रहा है और इसमें सुधार नहीं होने और माली हालत खराब होने के कारण किसान खुदकुशी कर रहे हैं।

हालांकि ऐसा करते हुए शायद हम बेरोजगारों की खुदकुशी से जुड़ी एक अहम बात को नजरअंदाज कर देते हैं। यह रिपोर्ट बताती है कि देश में बेरोजगारी की स्थिति कितनी भयावह है। अगर ऐसा नहीं होता तो किसानों की तुलना में बेरोजगार इतनी अधिक संख्या में खुदकुशी नहीं करते। बेरोजगारों के अत्महत्या की घटनाएं चिंतित और परेशान करने वाली है। हमें इन घटनाओं पर लगाम लगाना ही होगा। इसके लिए हमें वर्तमान हालत में सुधार करना होगा और रोजगार दर को बढ़ाना होगा ताकि कोई युवक बेरोजगार नहीं रहे और वह खुदकुशी करने के लिए मजबूर ना हो। निश्चित रूप से इसके लिए सरकार प्रभावी और ठोस कदम उठा रही है। हालांकि साथ में सामाजिक संगठनों को भी अहम और प्रमुख भूमिका निभानी होगी और समयबद्ध तरीके से कार्रवाई करनी हो।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)