लालजी जायसवाल। Rainwater Harvesting आज एक तरफ देश के कुछ प्रदेश बाढ़ के कहर से जूझ रहे हैं तो वहीं कुछ पानी की कमी की मार भी ङोल रहे हैं। और यह स्थिति कमोबेश हर साल देखने में आती है। इसका एक बड़ा कारण यह भी है कि हम वर्षा जल संचयन के प्रति ज्यादा जागरूक नहीं हैं। साथ ही जल का मालिकाना हक स्वयं के पास ही होने की अनुभूति के कारण वह पानी के अपव्यय को अधिक प्रेरित होता रहा है। ऐसे में सरकार को सुनिश्चित करना चाहिए कि सभी को समान रूप से पानी मिल सके। भूगर्भ जल का आज देश भर में भरपूर दोहन हो रहा है। इस पर नियमन की व्यवस्था है, लेकिन उसका सख्ती से पालन नहीं होता है।

सरकार ने जल शक्ति अभियान तथा अटल जल मिशन चलाया है। साथ ही लोगों से भी अपेक्षा की है कि जिस प्रकार स्वच्छता के लिए सभी ने मिलकर उसे एक आंदोलन का रूप दिया था, ठीक उसी प्रकार जल संचयन में भी जन आंदोलन की आवश्यकता है। ध्यातव्य है कि आज बूंद-बूंद कर जल के संचयन की जरूरत है जिसके लिए सबको एक साथ आना होगा। अगर आज भी सभी ने इसके महत्व को नहीं समझा और संचयन को महत्व नहीं दिया तो निश्चित है कि भविष्य जल विहीन हो जाएगा।

अमेरिका की खाद्य एवं कृषि संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 80 प्रतिशत जल का उपयोग कृषि कार्य में किया जाता है। कृषि प्रधान देश में जल की अधिकतर खपत गेहूं, चावल, गन्ने जैसी फसलों में होती है। जल संचयन और जल जागरूकता के उपायों में तेजी लाने के लिए देश भर में कई अभियानों की शुरुआत की जा चुकी है। प्रश्न यह है कि क्या बिना जल संचयन के घर-घर नल से जल पहुंच सकेगा? आज हम देश में बारिश और अन्य संसाधनों से मिलने वाले जल का मात्र पांच फीसद ही पेयजल के रूप में प्रयोग कर पा रहे हैं।

देश में बड़ी मात्र में जल का प्रयोग कृषि और औद्योगिक इकाइयों में होता है। अनेक जल स्नोतों का जल प्रदूषित हो चुका है। देश में व्याप्त जल समस्या एवं पेयजल की उपलब्धता को सुनिश्चित करने हेतु जल संरक्षण और उसके सदुपयोग के लिए आमजन को जागरूक करना अत्यंत आवश्यक है। यहां जल संचयन के लिए चार बातों पर ध्यान देना होगा। पहला, जल संरक्षण व वर्षा के पानी को रोकना। दूसरा, पारंपरिक व अन्य जलस्नोतों को पुनर्जीवित करना। तीसरा, पानी का पुन: उपयोग व जल संरचनाओं की रिचाìजग। चौथा, वॉटरशेड का विकास और व्यापक पौधरोपण।

आज देश में जल की खपत लगातार बढ़ती जा रही है, लेकिन जल संचयन की कोई विशेष तकनीक नहीं लाई जा सकी है। यहां तक कि सरकार के पास भी आज वर्षा जल का संचयन करने की कोई विशेष विधि तैयार नहीं हो पाई है। देश में वर्षा लगभग 4,000 अरब घन मीटर होती है। कभी-कभी तो समूचा प्रदेश बाढ़ से इतना त्रस्त हो जाता है कि यदि इसमें से कुछ ही पानी का संचयन कर लिया जाए तो वर्षो तक पानी की समस्या ही न हो। लेकिन हम केवल 700 अरब घन मीटर पानी का ही उपयोग कर पाते हैं। आज यदि केवल बारिश के समय छत के पानी का ही पर्याप्त संचयन करने की व्यवस्था मजबूत बनाई जाए तो भविष्य में जल संकट से बचा जा सकेगा। निश्चित ही यह कार्य केवल एक व्यक्ति का नहीं है, इसके लिए सभी लोगों को एक-एक बूंद कर जल बचाने की जरूरत है।

जल संचयन के लिए अलग-अलग प्रकार के अभियान भी चलाए जा सकते हैं और लोगों को जागरूक किया जा सकता है। इसके साथ ही इस अभियान में अभिनेताओं को भी आगे आना चाहिए, ताकि लोग इसकी महत्ता को समङों और उनकी बातों का अनुसरण करें। स्कूल-कॉलेज के स्तर पर भी इसे अभियान के रूप में शुरू किया जाना चाहिए। सरकार द्वारा जल स्तर में सुधार के साथ सभी घरों तक जल की पहुंच सुनिश्चित करने के लिए अनेक प्रकार की योजनाएं चलाई जा रही हैं। सरकार ने नल से जल की योजना भी चलाई है जिसमें से 82 प्रतिशत ग्रामीण हिस्सों में पेयजल की आपूíत नल के माध्यम से करने का लक्ष्य रखा गया है। गौरतलब है कि आज समय की मांग को देखते हुए सरकार जल संरक्षण को जनांदोलन का रूप देने के लिए न केवल खुद सक्रिय है, बल्कि राज्य सरकारों को भी साथ साथ सक्रिय कर रही है, क्योंकि पानी की बर्बादी को रोकने के लिए सब का साथ जरूरी है।

बेहतर खेती करने और जल संरक्षण के लिए हमें इजरायली तकनीक को अपनाना होगा। राजस्थान का एक गांव पानी की बचत करते हुए खेती के लिए मिसाल बन चुका है। इजरायल आज खारे पानी को साफ करके उसे पीने योग्य बनाने और खेती के प्रयोग लायक बनाने के मामले में वल्र्ड लीडर बन चुका है। इतना ही नहीं, वह घरों से निकलने वाले 85 फीसद अवशिष्ट पानी को रीसाइकल कर फिर से उपयोग के लायक बनाता है, जिसका इस्तेमाल खेती के लिए किया जाता है। इजरायल में प्रयोग हो चुके पानी को यानी अवशिष्ट पानी को केंद्रीकृत तरीके से बहुत बड़े स्तर पर रीसाइकल किया जाता है। फिर इस पानी को एकत्र कर माइक्रो ऑर्गेनिज्म पद्धति के द्वारा इसे साफ किया जाता है।

[अध्येता, इलाहाबाद विश्वविद्यालय]