कैलाश बिश्नोई। विश्वविद्यालय हाल ही में केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स व सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स नीति 2018 के मसौदे को जारी किया है। मसौदा नीति 2018 का उद्देश्य देश में इलेक्ट्रॉनिक्स निर्माण को बढ़ावा देकर देश के आर्थिक विकास को गति देना है। इस नीति के मुताबिक वर्ष 2025 तक मोबाइल फोन उत्पादन को 50 करोड़ इकाई से बढ़ाकर एक अरब तक पहुंचाना है तथा इलेक्ट्रॉनिक्स निर्माण क्षेत्र से 400 अरब डॉलर के राजस्व का लक्ष्य रखा गया है। इसमें मोबाइल फोन निर्माण का हिस्सा लगभग 190 अरब डॉलर होगा जिसमें 110 अरब डॉलर मूल्य के 60 करोड़ मोबाइल हैंडसेट के निर्यात करने का भी लक्ष्य रखा गया है। नीति का लक्ष्य उभरते प्रौद्योगिकी क्षेत्रों जैसे 5जी, इंटरनेट ऑफ थिंग्स, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, रक्षा, कृषि, स्वास्थ्य, स्मार्ट शहरों में उनके अनुप्रयोगों में स्टार्टअप इकोसिस्टम को भी धक्का देना है।

देश में लोगों की आय बढ़ने से इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादों के लिए उपभोक्ता मांग में वृद्धि हुई है, विशेष रूप से उन्नत टीवी, मोबाइल फोन और कंप्यूटर आदि। यह वृद्धि उद्योग के लिए सकारात्मक दृष्टिकोण को दर्शाती है। भारत में इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों की मांग अगले कुछ वर्षों में महत्वपूर्ण विकास के लिए तैयार है, जो एक मजबूत आर्थिक दृष्टिकोण से प्रेरित है। सूचना संचार टेक्नोलॉजी के माध्यम से यह ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं के विस्तार में मदद पहुंचाने के साथ साथ ई-गवर्नेंस को क्रियान्वित करने में भी अग्रणी भूमिका अदा कर रहा है। इलेक्ट्रॉनिक क्षेत्र औद्योगिक उत्पादन का ऐसा क्षेत्र है जिससे हर प्रकार के शिक्षित वर्ग के लोगों को रोजगार भी मिल रहा है यानी इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग बहुत बड़ा रोजगार सर्जक भी है।

इलेक्ट्रॉनिक्स नीति की मंजूरी मिलने के बाद आने वाले कुछ सालों में इस क्षेत्र में करीब पौने तीन करोड़ लोगों को रोजगार मिलने की उम्मीद है। बीसवीं शताब्दी में उभरे इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग ने आज अरबों डॉलर के वैश्विक उद्योग का आकार ले लिया है। एक रिपोर्ट के अनुसार देश का इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग 2015 के अंत तक करीब 82 अरब डॉलर का था, जो 100 अरब डॉलर से ज्यादा का हो चुका है। यह क्षेत्र 16 फीसद से ज्यादा की सालाना दर से बढ़ रहा है और 2021-22 तक इसके 200 अरब डॉलर से ज्यादा होने की संभावना जताई गई है। इलेक्ट्रॉनिक्स हार्डवेयर की मांग भारत में तेजी से बढ़ रही है।

इसके लिए हमें आयात पर निर्भर रहना पड़ रहा है। लगभग 50 से 60 फीसद इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पाद की मांग आयात से पूरी हो रही है, जबकि 70 से 80 फीसद इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट्स बाजार आयात पर निर्भर है। देश में बिकनेवाले स्मार्टफोन में से भारत में बने या असेंबल फोन की हिस्सेदारी महज छह फीसदी है। अच्छी बात यह है कि घरेलू इलेक्ट्रॉनिक विनिर्माण को बढ़ावा देने की नीति के तहत सरकार मोबाइल हैंडसेट निर्माण के साथ उसके स्वदेशीकरण पर भी जोर दे रही है। सरकार के चरणबद्ध विनिर्माण कार्यक्रम के तहत ऐसी इकाइयां स्थापित करने पर जोर दिया जा रहा है, जो मोबाइल हैंडसेट के कलपुर्जों का निर्माण करती हैं। स्वदेशीकरण से मोबाइल हैंडसेट में वैल्यू एडीशन होगा तो कारोबार बढ़ेगा और इससे नौकरियों के ज्यादा मौका पैदा होंगे।

सरकार के इलेक्ट्रॉनिक व सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय का मानना है कि अगले वित्त वर्ष 2019-20 तक देश में बनने वाले फोन में स्वदेशी कलपुर्जों का इस्तेमाल मौजूदा 15 से बढ़कर 37 प्रतिशत हो जाएगा। स्मार्टफोन के निर्माण में भी स्वदेशी कलपुर्जों की हिस्सेदारी मौजूदा 10 फीसद से बढ़कर 26 फीसद हो जाएगी। दरअसल भारत मोबाइल हैंडसेट निर्माण के लिए घरेलू स्तर पर पूरा तंत्र तैयार करना चाहता है। इसी रणनीति के तहत घरेलू स्तर पर कलपुर्जे बनाने वाली इकाइयों की स्थापना को प्रोत्साहित किया जा रहा है। भारत ने इसके लिए विशेष तौर पर चरणबद्ध विनिर्माण कार्यक्रम शुरू किया है। 2016-17 से लागू इस कार्यक्रम के पहले चरण में चार्जर, एडॉप्टर, बैटरी पैक और वायर्ड हैंडसेट बनाने वाली इकाइयों की स्थापना पर जोर दिया गया।

दूसरे चरण में 2017-18 में मैकेनिक्स, डाई कट पार्ट्स, माइक्रोफोन व रिसीवर, की-पैड, यूएसबी केबल बनाने वाली इकाइयों पर विशेष ध्यान दिया गया। चालू वित्त वर्ष 2018-19 में प्रिंटेड सर्किट बोर्ड असेंबली, कैमरा मॉड्यूल, कनेक्टर्स निर्माण इकाइयों की स्थापना को प्रोत्साहित किया जा रहा है। भारत स्मार्टफोन की दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ता बाजार है। विशेषज्ञों का मानना है कि भविष्य में भारत स्मार्टफोन निर्माण का हब बन सकता है। देश में इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों के निर्माण के लिए सरकार की प्रोत्साहन नीति के अच्छे नतीजे दिख रहे हैं। 2014-15 में देश में 29.2 अरब डॉलर के इलेक्ट्रॉनिक हार्डवेयर का उत्पादन हुआ था। 2016-17 तक 49.5 अरब डॉलर के स्तर तक पहुंच गया। इसी तरह देश में मोबाइल हैंडसेट और अन्य कलपुर्जे बनाने वाली इकाइयों की संख्या में भी तेज  वृद्धि हुई है।

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 2014 में देश में ऐसी इकाइयों की संख्या मात्र दो थी जो अब 115 हो गई है। भारत सरकार की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत के सकल घरेलू उत्पाद में मोबाइल उद्योग का योगदान वर्तमान में 6.5 प्रतिशत है, जो 2020 तक 8.2 प्रतिशत हो जाएगा। मोबाइल फोन उपभोक्ता के लिहाज से भारत इस साल अमेरिका को पछाड़कर दुनिया में स्मार्टफोन का दूसरा बड़ा बाजार बन चुका है तथा अगले पांच साल में भारत में स्मार्टफोन की बिक्री 100 करोड़ को पार कर सकती है। ये आंकड़े आशान्वित करते हैं कि मोबाइल उद्योग के अनुकूल माहौल बना कर भारत इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण का केंद्र बन सकता है।

देश में इलेक्ट्रॉनिक हार्डवेयर की बढ़ती मांग और सेमीकंडक्टर चिप डिजाइन तैयार करने में देश की बढ़ती क्षमता भारत को धीरे-धीरे प्रमुख वैश्विक इलेक्ट्रॉनिक हब बनने का अच्छा अवसर प्रदान कर रही है। ऐसे में जरूरी हो गया है कि भारत में इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग तेजी से बढ़ाई जाए। इसके लिए हमें इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग की चुनौतियों से पार पाना होगा। पहली चुनौती कारोबारी माहौल को और ज्यादा सुगम बनाने की है। साथ ही कर से संबंधित कई मुद्दों को सुलझाना होगा। कुशल श्रमिकों की कमी इस क्षेत्र के लिए बड़ी चुनौती है जिसे समय रहते दूर करना होगा।

(लेखक दिल्‍ली में अध्येता हैं)