[ राजनाथ सिंह सूर्य ]: शायद सभी को स्मरण होगा कि सोनिया गांधी ने 2002 में गुजरात विधानसभा चुनावों के समय नरेंद्र मोदी को मौत का सौदागर कहकर जीत हासिल करनी चाही थी। इसमें असफल होने के बावजूद कांग्रेस के भीतर अभिव्यक्ति के इस नए संस्करण का प्रकोप बढ़ता ही गया और वह 2014 के लोकसभा चुनावों के समय भी कांग्रेसी नेताओं के वक्तव्यों में नजर आया। 2019 आम चुनाव के पहले वर्तमान कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भी नरेंद्र मोदी के खिलाफ भाषा की मर्यादा लांघ रहे हैैं। वह उन्हें चोर बताने में लगे हुए हैैं। बीते एक-डेढ़ दशक में कांग्रेस ने नरेंद्र मोदी के लिए जिन विशेषणों का प्रयोग किया है वे किसी से छिपे नहीं। यह भी कोई छिपी बात नहीं कि ज्यों-ज्यों कांग्रेस की अभिव्यक्ति में मर्यादा विहीनता का प्रकोप बढ़ता गया त्यों-त्यों नरेंद्र मोदी और भाजपा का प्रसार भी बढ़ा। आज मोदी न केवल प्रधानमंत्री हैं, बल्कि देश के सबसे लोकप्रिय नेता हैं।

देश के करीब 20 राज्यों में भाजपा की सरकार है और कांग्रेस मात्र तीन राज्यों पंजाब, मिजोरम और पुद्दुचेरी में सिमटकर रह गई है। उसे अपना अस्तित्व बचाने के लिए क्षेत्रीय दलों का पिछलग्गू बनना पड़ रहा है। आज यदि कोई क्षेत्रीय दल पूरी तरह कांग्रेस और राहुल गांधी के पीछे खड़ा दिखाई पड़ रहा है तो वह लालू यादव का राष्ट्रीय जनता दल है, जो चारा घोटाला में सजा पाकर जेल में बंद हैं। आखिर क्या कारण है कि कोई भी राजनीतिक दल आज कांग्रेस के निकट आने को तैयार नहीं? कई दल तो उसकी छाया से ही किनारा कर रहे हैं।

जिन मायावती के सहारे वह राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा को हराने की रणनीति बना रही थी उन्होंने भी झटका दे दिया। उत्तर प्रदेश में जहां से लोकसभा के सबसे अधिक सदस्य चुने जाते हैं वहां भी कांग्रेस के लिए गुंजाइश कम होती जा रही है। मायावती के बाद अखिलेश यादव भी कांग्रेस से दूरी बनाते दिख रहे हैैं। कुछ समय पहले कर्नाटक के मुख्यमंत्री कुमारस्वामी की शपथ ग्रहण के दौरान भाजपा को मात देने का दावा करते हुए जनता दल सेक्युलर के सामने कांग्रेस ने जिस प्रकार आत्मसमर्पण किया था वैसा ही समर्पण स्वीकार करने के लिए अन्य राज्यों में कोई दल तैयार नहीं है।

कांग्रेस ने 2014 के निर्वाचन में जिस अभूतपूर्व पराजय का सामना किया उसके कारणों की एके एंटोनी की समीक्षा ‘अति अल्पसंख्यकवादी’ को तो शायद कांग्रेस ने स्वीकार कर लिया, लेकिन आचरण में शील और अभिव्यक्ति में मर्यादा के समावेश से उसका परहेज बना हुआ है। गुजरात विधानसभा चुनाव में जनेऊधारी हिंदू और शिवभक्त बनने और फिर कैलास यात्रा करने के बाद भी राहुल गांधी अपनी अभिव्यक्ति में मर्यादा का पुट शामिल करने का कोई संकेत नहीं दे रहे हैैं। नरेंद्र मोदी राहुल गांधी के आरोपों का उत्तर देने के बजाय अपने निर्णयों को प्रभावी रूप दे रहे हैं। ऐसा लगता है कि इससे राहुल की खीझ बढ़ती जा रही है और इसी कारण अब वह उन्हें चोर तक कहने में संकोच नहीं कर रहे हैैं।

इस तथ्य की भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि राहुल और सोनिया गांधी नेशनल हेराल्ड की मालिकाना कंपनी एसोसिएटेड जनरल की पांच हजार करोड़ रुपये की संपत्ति के घोटाले में जमानत पर चल रहे हैं। सर्वोच्च न्यायालय की ओर से इस मामले को समाप्त करने की अपील ठुकराए जाने के बाद उन्हें दिल्ली उच्च न्यायालय के निर्देश के अनुसार निचली अदालत और आयकर विभाग के सामने हाजिर होना पड़ रहा है। जिन पर ऐसे घोटाले का आरोप हैं उनके मुंह से मोदी के लिए चोर जैसे शब्द का प्रयोग ‘चोर मचाए शोर’ जैसी अभिव्यक्ति को मुखरित करता है।

जिस राफेल लड़ाकू विमान की खरीद को लेकर राहुल गांधी मोदी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगा रहे हैं उसके बारे में दस्तावेजी सबूत कुछ और ही कह रहे हैं। अब तक सार्वजनिक हो चुके विवरण में जाने की आवश्यकता नहीं है, लेकिन दस वर्षों तक सोनिया गांधी और राहुल गांधी के नियंत्रण में चली मनमोहन सरकार के कार्यकाल में घोटालों की जो लंबी फेहरिस्त है उस पर जुमलेबाजी से पर्दा नहीं डाला जा सकता। जुमलेबाजी से चुनावी जंग भी नहीं जीती जा सकती, क्योंकि जनता ठोस वैकल्पिक एजेंडा चाहती है।

राहुल गांधी बार-बार नरेंद्र मोदी को अपने सवालों का जवाब देने के लिए ललकार रहे हैं, लेकिन वह जहां जब जैसी आवश्यकता हो उसी के हिसाब से बोलने की नीति पर चल रहे हैैं। उन्होंने न तो किसी को मौत का सौदागर कहा और न उन्होंने कांग्रेस की तरह सैन्य मनोबल घटाने की अभिव्यक्तियां की हैैं। वह देश के टुकड़े-टुकड़े करने वाले तत्वों के हमसफर भी नहीं बने हैैं। अनेक कष्टकारी किंतु देश के लिए आवश्यक नीतियों पर अमल करने में उन्होंने कोई संकोच नहीं किया है।

उन्होंने भ्रष्टाचार को दूर करने के लिए लोगों को जेल भेजने की अनिवार्यता को स्वीकार करते हुए भी उसकी अपरिहार्यता को केंद्रबिंदु बनाने के बजाय उसके उन्मूलन में सहायक शासन पद्धति अपनाने को प्राथमिकता दी है। भले ही वे लोग जिनकी नीतियां सदैव निजी हितों की पूर्ति के लिए बनती रही हों, मोदी को निहित स्वार्थों का पोषक बताएं, लेकिन उनकी सरकार की ओर से जनधन से लेकर आयुष्मान भारत योजना तक जितनी भी योजनाओं की घोषणा की गई है उसका लाभ गरीब लोगों को ही मिल रहा है।

आवाज और उज्ज्वला सरीखी योजनाओं के जरिये भी मोदी सरकार गरीबों की आकांक्षाओं को पूरा कर रही है। इसी तरह हर घर तक बिजली पहुंचाने की योजना और स्वच्छता के संकल्प को पूरा करने जैसे कार्य गरीबों के लिए हैैं। मेक इन इंडिया जैसे महत्वाकांक्षी अभियान से विदेशी निवेश को उन्होंने स्वदेशी संपन्नता के लिए जिस प्रकार अमल करने का खाका खींचा उसका ही एक नमूना है राफेल लड़ाकू विमानों का सौदा। इस सौदे की शर्तों की मनमानी व्याख्या करके राहुल गांधी इस उम्मीद में मोदी को चोर बताने में लगे हुए हैैं कि इससे उन्हें सत्ता हासिल हो जाएगी। यह उम्मीद वैसे ही ध्वस्त हो सकती है जैसे 2002 में सोनिया गांधी की गुजरात की सत्ता में लौटने की उम्मीद हुई थी।

देश की जनता अमर्यादित आरोपों और लफ्फाजी से भ्रमित होने वाली नहीं है। शायद विपक्षी दल भी यह जान रहे हैैं कि राहुल गांधी की जुमलेबाजी लोगों पर असर नहीं कर रही है और इसीलिए वे कांग्रेस से दूरी बनाए रखने में ही अपनी भलाई समझ रहे हैैं।

[ लेखक राज्यसभा के पूर्व सदस्य हैैं ]