[ साकेत सूर्येश ]: चुनावी घोषणा के साथ ही आचार संहिता भी लागू हो गई। सब कुछ जस का तस थम गया है। प्रेमिका की आती हुई स्वीकृति अब मई की प्रतीक्षा में है। पाजामा थामे हुए प्रेमी मेघदूतम के यक्ष की भांति चुनावी नारों के माध्यम से प्रियतमा तक संदेश भेजने पर विचार कर रहा है, किंतु चुनाव संबंधी आचार संहिता को लेकर असमंजस में है। इस चुनावी दौर में सोशल मीडिया पर पांचजन्य के उद्घोष के साथ ट्विटर-वीरों ने धनुष संधान कर लिए हैं, कीबोर्ड-रूपी गांडीव धारण किए युवा पार्थ उत्साहपूर्वक युद्ध क्षेत्र का अवलोकन कर रहे हैं। महारथी टैग-रूपी शब्दबाण छोड़ते हैं जो धनुष की टंकार के मध्य अनगिनत हैशटैगों का रूप धारण करके आकाश को आच्छादित कर देते हैं।

युद्धक्षेत्र एक सेना से दूसरी सेना की ओर आते-जाते महारथियों के पदचापों से गुंजायमान है। महान वीर ध्वजों का आदान-प्रदान कर रहे हैं। कुछ योद्धा अपनी छोटी-छोटी युद्धभूमि बनाकर उसी में लड़ रहे हैं। इंद्रप्रस्थ के प्रतापी सम्राट महायुद्ध की अक्षौहिणी सेनाओं के मध्य अपनी टिटिहरी सेना लिए हुए उतरे हैं और युद्ध क्षेत्र के योद्धाओं को अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयास कर रहे हैं, जैसे अधेड़ होता अभिनेता मुष्टिकाएं भींच, मांसपेशियां अकड़ा कर एक्शन सिनेमा के निर्माता को लुभाने का प्रयास करता है। सैनिक वेशभूषा-धारी रिंकिया के पापा रथ लेकर पाकिस्तान सीमा की ओर प्रस्थान करने को आतुर दिखते हैं। दिल्ली सल्तनत इस चुनावी संग्राम में ओखला से बदरपुर के मध्य सीमित होती जान पड़ती है।

दिल्ली के आधे-अधूरे सुल्तान इसी ऊहापोह में हैं कि धरना करना है या नहीं करना है और अगर धरना नहीं करना है तो क्या करना है। यह चुनाव पाठ्यक्रम से बाहर जा रहा है। दिल्ली में कांग्रेस ने आप से गठबंधन को लगभग मना कर दिया है और विधि का विधान या ऊपर वाले का बेआवाज लट्ठ देखिए कि यूपी में बहनजी ने भी कांग्रेस के हाथ को लगभग गुस्से से ही झटक दिया है।

कांग्रेसी खेमे में अपनी ही चिंताएं हैं। राजकुमार अपने घातक अस्त्रों को पिछले चुनावों मे उपयोग करके श्रीहीन प्रतीत हो रहे हैं। मंदिरों में टहलने के बाद युवराज के पास फैंसीड्रेस के विकल्प समाप्तप्राय हैं। तरकश के राफेल इत्यादि तीर रामानंद सागर के धारावाहिक के शस्त्रों की भांति जगमगाकर धराशायी हो चुके हैं। युवराज्ञी की नाक की नानी से समानता का प्रारंभिक उत्साह भी अब बोर करने लगा है। जैसे संध्या होते ही बछड़े माता के पास लौट आते है, चुनावी संध्या में भीम आर्मी के विकट वीर और हार्दिक पटेल जैसे महान योद्धा कांग्रेस की गौशाला की ओर लौट रहे हैं, लेकिन अदालत उनके अरमानों पर पानी फेर रही है। सपा ‘पार्टी ही परिवार है’ और ‘परिवार ही पार्टी है’ के सिद्धांत पर ही आगे बढ़ने पर आमादा है।

पार्टी प्रवक्ताओं ने अपनी कुर्सियों के पीछे मोटी-मोटी किताबें जमा ली हैं। जिनके पास किताबें नहीं हैं, उन्होंने पुस्तक की फोटो वाले वॉलपेपर लगवा लिए हैं। प्रवक्ता सीरीज के वॉलपेपर की मार्केट में पुस्तकों और साक्षात प्रवक्ता से अधिक डिमांड है। चैनलों का माहौल देखते हुए सत्तर के दशक के बूथ कैप्चरिंग वाले बलिष्ठ पहलवान आज वॉलपेपर लगाकर प्रवक्ता बनने को तैयार हैं। सावन में प्रकट होने वाले मेंढकों की भांति बैनर, पोस्टर वालों के साथ चुनाव विश्लेषकों की नई खेप टीवी चैनलों पर उतर आई है। किस्म-किस्म के सेफोलॉजिस्ट गरारे करके वाणी की सौम्यता का अभ्यास कर रहे हैं।

एक दिशा से जहां ‘चौकीदार चोर है’ का उद्घोष होता है वहीं दूसरी दिशा ‘मैं भी चौकीदार’ का जयघोष दूसरे खेमे से उठकर उसे डुबा देता है। इस सबके बीच चुनाव आयोग मंद स्वर में जनता के बीच ‘जागते रहो’ पुकारता हुआ लाठी खटका रहा है। जनता ऊंघ सी रही है और चुनावी घोषणा पत्रों की प्रतीक्षा में कलर टीवी और लैपटॉप की खरीददारी रोके बैठी है। हमारे पड़ोस के छगनलाल जी ने दाढ़ी बनाना भी इस उम्मीद के साथ बंद कर दिया है कि उनकी दाढ़ी चुनाव तक प्रत्याशी ही बनवाएंगे और उनका मत उसी प्रतिभाशाली प्रत्याशी के पक्ष मे गिरेगा जो शेव के साथ पैडिक्योर, मैनिक्योर, फेशियल वगैरह करा के देगा।

नोटावीरों ने चुनाव की तारीखों का संज्ञान लेते हुए, लांग वीकेंड की व्यवस्था कर ली है। मुफ्त वाईफाई वाले होटल ढूंढ लिए गए हैं ताकि वहां से भारत के राजनीतिक और नैतिक पतन पर ब्लॉग निर्बाध रूप से लिखे जाएं। राग दरबारी और कैंब्रिज एनालिटिका आपस मे संघर्षरत हैं और श्रीलाल जी के शिवपालगंज में चुनाव आयोग की लाठी की खटखटाहट सुन कर वैद्यजी पूछते हैं, यह कैसा कुकुरहाव है और लाठी को तेल चढ़ाते तृणमूल कांग्रेस के बदरी पहलवान उत्तर देते हैं, देश में चुनाव है।

[ लेखक हास्य-व्यंग्यकार हैं ]