अलका आर्य। कोविड से मरने वालों का आंकड़ा पूरी दुनिया में दस लाख को पार कर गया है। आज सबसे अधिक फोकस कोरोना वायरस संक्रमण की रोकथाम, पीड़ितों के इलाज और वैक्सीन आने की खबर पर है। लेकिन इसके साथ ही यह मुददा भी महत्वपूर्ण है कि वैक्सीन से रोके जानी वाली जिन बीमारियों के लिए वैक्सीन उपलब्ध हैं, उनका इस कोरोना काल में कितना इस्तेमाल हुआ है। विश्व के अधिकांश मुल्कों में कोरोना वायरस संक्रमण रोकथाम के लिए लॉकडाउन लगाया गया और इससे बच्चों का नियमित टीकाकरण प्रभावित हुआ।

विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि कोविड-19 महामारी के कारण नियमित टीकाकरण के प्रयास बाधित होने से विश्वभर में एक साल से कम आयु के कम से कम आठ करोड़ बच्चों ने अपना नियमित टीकाकरण चक्र मिस किया है और उन पर खसरा, पोलियो व डिप्थीरिया जैसी बीमारियों का खतरा मंडराने लगा है। जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने स्पष्ट रूप से कहा था कि लॉकडाउन में जरूरी सेवाएं खास तौर पर टीकाकरण व बाल जन्म देखभाल सेवाएं प्रभावित नहीं होनी चाहिए। मगर इस सलाह को नजरअंदाज कर दिया गया।

विश्व स्वास्थ्य संगठन आंकड़ों के जरिये तमाम देशों की सरकारों को नियमित टीकाकरण के महत्व पर रोशनी डालता है। वर्ष 2018 में विश्वभर में पांच साल से कम आयु के 86 प्रतिशत बच्चों को डिप्थीरिया, टिटनेस व काली खांसी की तीन खुराक और खसरे की एक खुराक वाली वैक्सीन दी गई थी। दुनियाभर में पोलियो से प्रभावित होने वाले बच्चों की संख्या में 99.9 प्रतिशत की कमी आई है। बच्चे की जिंदगी के पहले एक साल में प्राथमिक टीकाकरण में विलंब नहीं होना चाहिए, क्योंकि यह बच्चे को कई बीमारियों से सुरक्षा प्रदान करता है जिसमें निमोनिया, डायरिया, काली खांसी और खसरा आदि है।

लिहाजा संगठन ने अपने सदस्य देशों से कोविड-19 से निपटने वाली गतिविधियों के जारी रहने पर भी टीकाकरण सेवाओं पर तुंरत काम करने को कहा, ताकि रोग प्रकोपों व मौतों को कम से कम किया जा सके। यूं तो विश्वभर के मुल्कों में लॉकडाउन के कारण सार्वभौमिक टीकाकरण प्रभावित हुआ और भारत भी इससे अछूता नहीं रहा। मुल्क में हर साल करीब 2.7 करोड़ बच्चे पैदा होते हैं और इन नवजातों का हर साल टीकाकरण होता है।

भारत जैसे विशाल देश में दूरदराज इलाकों में पहुंचना आसान नहीं है। टीकाकरण की राह में सामान्य दिनों में ही कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है तो ऐसे में कोरोना महामारी के संकट में यह काम जारी रखना आसान नहीं। लॉकडाउन के शुरुआती दौर में कुछ राज्यों में टीकाकरण गतिविधियां रोक दी गईं, लेकिन कुछ राज्यों में स्वास्थ्य केंद्रों पर टीकाकरण जारी रही। सार्वजनिक यातायात बंद होने के कारण अभिभावक बच्चों को टीका लगवाने के लिए स्वास्थ्य केंद्रों पर नहीं जा सके। कोरोना संक्रमण का डर तो था ही। इसके अलावा, आशा कार्यकर्ताओं व अन्य स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की ड्यूटी प्रशासन ने कोरोना रोकथाम संबंधी कार्यो में लगा दी थी। लिहाजा बाल टीकाकरण प्रभावित हुआ, लेकिन राज्य सरकारों ने इस पर काम करना जल्द ही शुरू दिया। केंद्रीय स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रलय ने 21 मई को दिशानिर्देश जारी किए कि स्वास्थ्य केंद्रों में बर्थ डोज वैक्सीन सुविधा जारी रहेगी, यहां तक कि कंटेनमेंट जोन में भी। लेकिन कंटेनमेंट जोन के लिए कुछ और नियम भी बनाए गए, जो जरूरी भी थे।

सरकार ने बच्चों की जिंदगी व देश की प्रगति में टीकाकरण के महत्व को समझते हुए टीकाकरण अभियान को जारी रखने के लिए राज्यों को खास पहल करने के लिए प्रोत्साहित किया। मसलन मध्य प्रदेश सरकार ने लॉकडाउन में वहां आने वाली प्रवासी आबादी के बच्चों के लिए विशेष टीकाकरण शिविर लगाए। वहां बस स्टैंड व रेलवे स्टेशनों पर सूची बनाने का काम इस अभियान में लगी टीम ने किया। बिहार में रोजाना रिपोर्टिंग के लिए गूगल शीट तकनीक का इस्तेमाल किया गया। उत्तर प्रदेश में टीकाकरण के लिए आयोजित सत्रों में टीकाकरण कवरेज की साप्ताहिक समीक्षा पर जोर दिया गया।

असम में गूगल फॉर्म पर नियमित टीकाकरण की रियल टाइम की रिपोर्टिंग वाली पहल जारी है। वहां टीकाकरण सेवाओं को मजबूती देने वाली सभाएं ऑनलाइन आयोजित की जा रही हैं। नगालैंड के सिविल अस्पताल जो कोविड-19 रोगियों के लिए सूचीबद्ध किए गए हैं, वहां अब बच्चों का टीकाकरण नहीं होता, बल्कि लाभाíथयों की सुविधानुसार नियमित टीकाकरण सत्र अन्य स्थानों पर आयोजित किए जाते हैं। मेघालय में राज्य व जिला स्तर पर डाटा की साप्ताहिक निगरानी की जाती है। महाराष्ट्र में जिन बच्चों का टीकाकरण नहीं था, उन तक पहुंच के लिए सूक्ष्म योजनाएं बनाई गई हैं। टीकाकरण के लिए नगर निगम के सहयोग से काम किया जा रहा है। इसी तरह अन्य राज्यों में भी टीकाकरण के काम ने तेजी पकड़ी है।

देश में करीब 95 प्रतिशत टीकाकरण सरकार द्वारा चलाए जा रहे सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम के तहत होता है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रलय की कोशिश है कि देश में टीकाकरण की मुहिम जल्द ही पहले जैसी रफ्तार पकड़ ले, ताकि सभी लक्षित बच्चे व गर्भवती महिलाएं स्वस्थ व सुरक्षित जिंदगी जी सकें। भारत ने टीकाकरण में प्रगति की है। पोलियो उन्मूलन में जो सफलता हासिल की, उसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराहा गया।

[सामाजिक मामलों की जानकार]