अरविंद मेदिरत्ता। कोरोना वायरस जनित संक्रमण ने पिछले छह माह में दुनिया भर में स्वास्थ्य समस्याएं पैदा करने के साथ ही अर्थव्यवस्था को भी व्यापक रूप से प्रभावित किया है। ऐसे में अपने नागरिकों को राहत प्रदान करने के लिए सरकार द्वारा एक राहत पैकेज देना अनिवार्य था। भारत की अर्थव्यवस्था विश्व की अग्रणी अर्थव्यवस्थाओं में शामिल है। देश में लॉकडाउन के कारण पैदा हुई आर्थिक समस्याओं के उपायों की समय रहते घोषणा की गई।

महामारी के दौरान प्रभावित होने वाले क्षेत्रों के लिए देश की कुल जीडीपी का लगभग 10 प्रतिशत यानी 20 लाख करोड़ रुपये का आर्थिक पैकेज घोषित किया गया। यदि इस रकम का युक्तिसंगत तरीके से उपयोग किया जाए तो इससे न केवल देश को एक नई पहचान मिलेगी, बल्कि निर्माण केंद्र के रूप में स्थापित होने समेत व्यापार को आर्किषत करने में भी मदद मिलेगी। साथ ही भारत को आत्मनिर्भर होने की राह पर आगे बढ़ने के लिए यह प्रोत्साहित करेगा।

हालांकि भारत ने हाल ही में ईज ऑफ डूइंग बिजनेस रैंकिंग में कई स्थानों पर छलांग लगाई है, लेकिन अभी भी एशिया में सबसे पसंदीदा निवेश स्थान बनाने के लिए कई उपाय करने की जरूरत है। अनेक कारणों से कई कंपनियां अब चीन से अपनी मैन्यूफैक्चरिंग यूनिटों को अन्य देशों की ओर ले जाने के बारे सोच रही हैं। यह भारत के लिए अपने महत्वाकांक्षी कार्यक्रम 'मेक इन इंडिया' के दृष्टिकोण से अच्छा अवसर है। ऐसे में पारदर्शिता अपनाते हुए और साहसिक सुधारों को बढ़ावा देते हुए देश की विनिर्माण क्षमताओं को बढ़ाया जा सकता है। इससे पहले की गई कोशिशों से कई राज्यों में विनिर्माण की क्षमता को बढ़ाया भी गया है। यह विदेशी निवेश को आर्किषत करने और रोजगार अनुपात में सुधार करने के लिए भी हमारे अनुकूल होगा।

इस बीच हमारे लिए अच्छी बात यह रही कि राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के बावजूद भारत सरकार ने खुदरा व थोक विक्रेताओं समेत किराने की दुकानों के माध्यम से आवश्यक बिक्री और आर्पूति सुनिश्चित किया। रिटेल उद्योग भारत की जीडीपी का करीब 10 प्रतिशत हिस्सा है। इसके अतिरिक्त, यह देश में आठ प्रतिशत रोजगार पैदा करता है। देश में लगभग एक करोड़ किराना स्टोर हैं, जो लोगों से सीधे जुड़े हुए हैं। किराना स्टोर पारंपरिक व्यवसाय हैं, और उनका लाभ यह है कि वे अपने उपभोक्ताओं की नब्ज और दर्द को समझते हैं। भोजन और किराना सामान के व्यापार में वे पारंगत होते हैं। इंडिया ब्रांड इक्विटी फाउंडेशन (आइबीईएफ) की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत मौजूदा समय में रिटेल क्षेत्र में दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा वैश्विक बाजार है। इस क्षेत्र में व्यापक संभावनाएं हैं, बशर्ते सामयिक तकनीकी बदलावों को इस क्षेत्र में भी पर्याप्त रूप से अपनाया जाए।

हालांकि देश में 93 प्रतिशत रिटेल क्षेत्र अभी भी असंगठित श्रेणी में आता है। राज्य और केंद्र सरकार दोनों के उपाय करने के बावजूद, इस क्षेत्र को व्यवस्थित करने के लिए और अधिक प्रयासों की आवश्यकता है। यह सही है कि केंद्र सरकार द्वारा कृषि क्षेत्र में किए जा रहे तमाम उपायों से किसानों को लाभ होगा और कृषि क्षेत्र में नए सुधारों को बढ़ावा मिलेगा। किसानों को सीधे खरीदारों से जोड़ने के लिए उठाया गया सरकार द्वारा यह एक साहसिक कदम है, जिससे व्यापारी या बड़ी फूड प्रोसेसिंग कंपनियों को भी लाभ हो सकता है। इससे अप्रत्यक्ष रूप से अतिरिक्त नौकरियां भी पैदा होंगी। मांग को प्रोत्साहित करने के लिए, सरकार को राहत उपायों पर काम करना होगा।

जर्मनी की अर्थव्यवस्था से प्राप्त कुछ संकेतों से यह पता चलता है कि करों में कुछ कमी किए जाने से खरीदारी की भावना को बढ़ाया जा सकता है। उदाहरण के लिए, आवश्यक सामान, साबुन, प्रसाधन, बिस्कुट और पैकेज्ड फूड 18 प्रतिशत टैक्स स्लैब में होने से कुछ हद तक महंगे हो जाते हैं। सरकार को ऐसी वस्तुओं के लिए कर की दर को न केवल 12 प्रतिशत तक लाने पर विचार करना चाहिए, बल्कि उन तरीकों पर भी काम करना चाहिए, जो मौजूदा जीएसटी सिस्टम में मौजूद टैक्स स्लैब की संख्या को कम कर सकते हैं। लॉकडाउन प्रतिबंधों में ढील देने और कई व्यवसायों को फिर से शुरू करने के साथ अब यह गंभीर सुधारों का समय है जो देश को आत्मनिर्भर बनाने में मददगार साबित हो सकता है। खासकर उन क्षेत्रों में जिनमें गंभीर रूप से हस्तक्षेप की आवश्यकता है, जैसे विनिर्माण, कृषि और तकनीकी सुधार आदि।

वैसे भारत में पुरातन नीतियों में बदलाव लाना आसान नहीं है। हालांकि तकनीक के अधिकतम उपयोग से ऐसा आसानी से किया जा सकता है। लॉकडाउन के दौरान भी तकनीक ने व्यापार की निरंतरता सुनिश्चित करने और ऑफलाइन रिटेल विक्रेताओं को प्रासंगिक बने रहने के लिए प्रोत्साहित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह भी ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि भविष्य में तकनीक कई सुधारों के लिए, विशेष रूप से खुदरा क्षेत्र पर निर्भर विभिन्न क्षेत्रों के लिए एक समर्थक की भूमिका निभाएगी। इन क्षेत्रों में किए गए उपाय नए निवेशों के लिए अनुकूल माहौल बनाएंगे, जो बदले में एक आत्मनिर्भर भारत की अर्थव्यवस्था को तेजी प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

[आर्थिक मामलों के जानकार]