अनुराग सिंह। हमारे समाज का बहुत बड़ा वर्ग आज जागरूक है और शिक्षा पर ज्यादा जोर देता है, क्योंकि उसे यह पता है कि बिना बेहतर शिक्षा के भविष्य उज्ज्वल नहीं हो सकेगा। यदि हम अपने समाज में बेहतर शिक्षा को लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं तो उसके लिए हमें सर्वप्रथम बेहतर शिक्षक तैयार करने होंगे, ताकि शिक्षा की बेहतर गुणवत्ता सुनिश्चित की जा सके। शिक्षा सार्वजनिक है या निजी क्षेत्र की, महंगी है या सस्ती, गुणवत्तापूर्ण है या स्तरहीन, रोजगारपरक है या नहीं आदि अनेक बहसों को हम जनसामान्य में देखते हैं, लेकिन बेहतर शिक्षक कैसे तैयार हों, इस पर बहस कम होती है। हालांकि यह उस तरह से जनसामान्य के बहस का मुद्दा तो नहीं है, यह सरकार के बहस का मुद्दा अधिक है, लेकिन फिर भी इस पर बहस होती कम दिखाई देती है और अभी तक सरकारें भी इस ओर ध्यान नहीं दे रही थीं।

नई शिक्षा नीति में विद्यालयी शिक्षा में बेहतर शिक्षक तैयार करने के लिए एकीकृत पाठ्यक्रम पर जोर दिया गया है। अभी दिल्ली शिक्षक विश्वविद्यालय को स्थापित करने का विधेयक दिल्ली विधानसभा में इसी माह पारित हो गया। इस विधेयक के पारित हो जाने के बाद दिल्ली को पहला शिक्षक विश्वविद्यालय मिलना सुनिश्चित हो गया। इस विधेयक के अनुसार यह एक सार्वजनिक विश्वविद्यालय होगा। बारहवीं कक्षा के बाद विद्यार्थी चार वर्षीय एकीकृत पाठ्यक्रम के अंतर्गत इसमें शिक्षा ग्रहण कर सकेंगे। इस विश्वविद्यालय में स्नातक पाठ्यक्रम में मानविकी, विज्ञान या वाणिज्य शाखा के साथ साथ शिक्षा स्नातक की उपाधि मिलेगी। वर्तमान समय में तीन वर्षीय स्नातक और और दो वर्षीय शिक्षा स्नातक पाठ्यक्रम अलग-अलग चलते हैं। इनकी कुल अवधि पांच वर्षों की है, परंतु यहां यह अवधि केवल चार वर्षों की होगी जिससे विद्यार्थियों का एक वर्ष का समय भी बचेगा।

इस तरह के संस्थान स्थापित करने का उद्देश्य देश भर में उच्च गुणवत्ता से पूर्ण शिक्षकों की नई पीढ़ी को तैयार करना है जो देश की शिक्षा व्यवस्था को बेहतर बनाने में मदद कर सकें और यदि शिक्षा व्यवस्था बेहतर हुई तो आगे बहुत से सकारात्मक बदलाव स्वयं ही परिलक्षित होने लगते हैं।

दिल्ली के बक्करवाला गांव में 12 एकड़ भूमि पर यह विश्वविद्यालय साकार रूप लेने वाला है। इसमें सैद्धांतिक पक्ष के साथ-साथ भावी शिक्षकों को व्यावहारिक शिक्षा देने के लिए दिल्ली सरकार के विद्यालयों में भेजा जाएगा, ताकि पढऩे-पढ़ाने के दौरान आने वाली चुनौतियों से वे शुरुआत में ही परिचित हों और उसका समाधान यहीं सीख सकें जो बाद में पूरे जीवन अध्यापन के दौरान उन्हें लाभान्वित करेगा।

सरकारों के द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में समय-समय पर बदलाव देखने को मिलते हैं। इसी तरह का एक बदलाव यहां देखने को मिला है जिसके कारण उपरोक्त तरह की व्यवस्थाएं देखने को मिल रही हैं। एकीकृत शिक्षक शिक्षा कार्यक्रम (आइटीईपी) को राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुसार शिक्षा मंत्रालय द्वारा अधिसूचित किया गया। इस कार्यक्रम के अनुसार यह पहले 50 बहुविषयक संस्थान में पायलट मोड में लाया जाएगा। अन्य पाठ्यक्रमों की तरह इसमें भी प्रवेश राष्ट्रीय संयुक्त प्रवेश परीक्षा के माध्यम से होगा। सरकार की नई शिक्षा नीति में विद्यालयी शिक्षकों के लिए वर्ष 2030 से एकीकृत शिक्षक शिक्षा कार्यक्रम न्यूनतम अर्हता होने जा रही है। इसका आशय यह है कि वर्ष 2030 के बाद से विद्यालय में पढ़ाने वाले जितने शिक्षक होंगे उनको बारहवीं कक्षा के बाद ही अपना रास्ता तय कर लेना है। यह एक तार्किक बात भी है कि यदि आपने निर्धारित कर लिया है कि आपको विद्यालयी शिक्षण में अपना भविष्य तलाशना है तो उसके लिए आरंभ में ही आपको एक आधार दे दिया जाए, ताकि आप अपने क्षेत्र में विशिष्ट हो सकें। शिक्षा मंत्रालय के तहत राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) ने इस पाठ्यक्रम को तैयार किया है। इसके तहत अत्याधुनिक अध्यापन कला, बाल देखभाल, मूलभूत साक्षरता, समावेशी शिक्षा के साथ-साथ भारत के नैतिक मूल्य, कला व परंपरा की बेहतर समझ यह पाठ्यक्रम विकसित करेगा।

भारत में जब प्रौद्योगिकी शिक्षा की बात की जाती है तो हमें भारतीय तकनीकी संस्थानों की याद आती है, जब प्रबंधन के शिक्षा की बात की जाती है तो भारतीय प्रबंधन संस्थानों की याद आती है। जबकि चिकित्सा क्षेत्र में अध्ययन हेतु एम्स जैसे प्रतिष्ठित संस्थान हैं। इसी तरह अन्य क्षेत्रों के भी अग्रणी संस्थान मिल जाते हैं। परंतु जब शिक्षकों को तैयार करने वाले विशिष्ट सस्थानों की बात की जाती है तो उसके लिए कोई विशेष संस्थान हमें देश भर में नजर नहीं आते हैं जो पूरी तरह से उसी उद्देश्य के लिए समर्पित हों। अलग-अलग जगहों पर शिक्षा स्नातक के पाठ्यक्रम अवश्य संचालित होते हैं। वर्ष 2010 में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भारतीय शिक्षक शिक्षा संस्थान (आइआइटीई) की नींव रखी जिसका उद्देश्य भारत में विश्व स्तर के शिक्षकों को तैयार करना रहा है। यह एक दूरदर्शी सोच रही जिसकी झलक आज नई शिक्षा नीति में देखने को मिलती है। भारत में केवल शिक्षकों को तैयार करने के लिए पूर्णतया समर्पित संस्थान अपेक्षाकृत कम हैं। ऐसे में इस तरह की पहल का स्वागत किया जाना चाहिए। यहां पर एक महत्वपूर्ण बात जिस पर विचार करना है कि दिल्ली सरकार दिल्ली विश्वविद्यालय के 12 महाविद्यालयों का संचालन करती है, उसके शिक्षक लगातार पिछले वर्षों में सही समय पर वेतन न मिलने के कारण बार-बार हड़ताल करने पर मजबूर होते हैं, उन्हें पांच-छह महीने देर से वेतन मिलता है। ऐसे में दिल्ली सरकार इसे कैसे संचालित करेगी, यह किसी चुनौती से कम नहीं है।

दिल्ली के उपमुख्यमंत्री ने इस विश्वविद्यालय की तारीफ में बड़ी बातें कहीं, उन्होंने कहा कि इसमें सत्र 2022-23 से प्रवेश आरंभ हो जाएगा। अभी विश्वविद्यालय का भवन ठीक से निर्मित होकर खड़ा नहीं हुआ, फिर इतनी हड़बड़ी का कोई तुक नहीं है। इस तरह के कुछ व्यावहारिक सवालों के तार्किक उत्तर दिल्ली सरकार के पास होने चाहिए। विद्यालयों में आने वाले समय में जिस नए पाठ्यक्रम के आधार पर शिक्षकों की नियुक्ति की जानी है वह एक सफल पहल तभी साबित हो सकेगी, जब उस पाठ्यक्रम को संचालित करने के लिए बेहतर संस्थानों की स्थापना की जाएगी अन्यथा इस बदलाव का कोई विशेष अर्थ नहीं रह जाएगा और यह विशेष पाठ्यक्रम भी पहले की ही तरह सामान्य रह जाएगा।

(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं)