कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यम। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी हमारे लिए एक शानदार और समृद्ध विरासत छोड़ गए हैं। अगर इस पर मनन किया जाए कि हम उनसे क्या प्रेरणा ले सकते हैं तो इसमें सबसे प्रमुख मुझे उनकी कथनी और करनी ही नजर आती है। उन्होंने जो बातें कहीं और जो काम किए वही हमारे लिए सबसे बड़े प्रेरक बिंदु होने चाहिए। इसे अगर एक वाक्य में जानना चाहें तो उसका सार यही होगा कि हम भारतीय मूल्यों वाली जीवनशैली पर गर्व की अनुभूति करें और बेवजह के अतिवादी द्वेष को स्वयं से दूर रखें। वाजपेयी की एक कविता पर गौर करते हैं जो उन्होंने तब लिखी थी जब वह किशोरवय में थे। एक हिंदू के रूप में उनकी कविता एक हिंदू को उस सनातन धर्म के अनुयायी के रूप में रेखांकित करती है जिसने मानवता को शांति के साथ जीवन जीने का मंत्र दिया। वही धर्म जो ‘वसुधैव कुटुंबकम’ के सिद्धांत के साथ समस्त विश्व को अपना परिवार मानता है। इस कविता का सबसे प्रेरक भाग वह है जिसमें दर्शाया गया है कि वैदिक ज्ञान ने प्राचीनकाल से ही दुनिया को रोशनी दिखाई है:

मैं अखिल विश्व का गुरु महान, देता विद्या का अमर दान, मैंने दिखलाया मुक्ति मार्ग 

मैंने सिखलाया ब्रह्म ज्ञान। मेरे वेदों का ज्ञान अमर, मेरे वेदों की ज्योति प्रखर 

मानव के मन का अंधकार क्या कभी सामने सका ठहर? मेरा स्वर नभ में घहर-घहर, सागर के जल में छहर-छहर 

इस कोने से उस कोने तक कर सकता जगती सौरभ मैं।  

इसका सार यही है कि मैं वह शिक्षक हूं जिसने दुनिया को ज्ञान की अनुपम भेंट उपहार में दी है। मैंने ही विश्व को मुक्ति मार्ग दिखाने का साथ ही ब्रह्म ज्ञान से साक्षात्कार कराया है। मेरे वेदों में समाहित ज्ञान अमरता प्राप्त है और वैदिक ज्ञान की प्रखर ज्योति ने हमेशा विश्व को मार्ग दिखाया है। क्या वैदिक ज्ञान के आगे अज्ञानता का अंधकार कभी टिक पाया है? इस कविता की प्रेरक पंक्तियां तीन प्रमुख पहलुओं को उद्घाटित करती हैं। पहला यह कि दुनिया में कहीं भी कोई जब मानव जीवन का अर्थ तलाशने की जुगत में जुटता है तो उसके उत्तर की खोज वह भारत के वैदिक ज्ञान में ही करता है। प्राचीनकाल से ही हमारे ग्रंथ मानव जीवन के शोधार्थियों की शरण बनते रहे हैं। शोध की पश्चिमी अवधारणा में अवलोकनकर्ता और जिस पहलू का अवलोकन किया जा रहा है उस पर गौर किया जाता है। इसके विपरीत शोध की प्राचीन भारतीय संकल्पना में अद्वैत दर्शन की झलक मिलती है। इसमें जो अवलोकन करता है और जिसका अवलोकन होता है, वे एक ही बने रहते हैं। महान गणितज्ञ रामानुजम के शोध में यह अद्वैतवाद नजर भी आता है। वह बिना किसी साक्ष्य के ही गणितीय सिद्धांत प्रतिपादित कर देते थे, जबकि किसी अन्य गणितज्ञ के लिए यह अवलोकन करना जरूरी होता था कि इस सिद्धांत पर पहुंचे कैसे? हमारे प्राचीन शोध के साक्ष्य कालजयी ग्रंथ बन गए हैं जिनमें उपनिषद, पतंजलि का योगसूत्र, भगवतगीता, अष्टावक्र गीता, नारद भक्ति सूत्र जैसी अंतहीन सूची है।

दूसरा सार तत्व यह है कि आध्यात्मिक दायरे से इतर भी युवा भारत को हमेशा यह स्मरण होना चाहिए कि आखिर भारत के ज्ञान ने कैसे पूरे विश्व को दैदीप्यमान किया? मैरिओस लुकास और उनके साथी लेखकों ने वर्ष 2010 में जर्नल ऑफ एनाटॉमी में प्रकाशित एक आलेख में उल्लेख किया कि सुश्रुत संहिता में दी गई मानवीय शल्य क्रिया की जानकारी ऐसी मृत देहों के अवलोकन से निकली जिनका उचित रूप से अंतिम संस्कार नहीं हो पाया था। यह उपचार के दौरान मरीजों पर किए गए परीक्षण के शोध पर आधारित था। 

कविता का तीसरा सार तत्व है कि भारतीय मूल्यों वाली जीवनशैली में वाजपेयी की गवरेक्ति एक मजबूत और अडिग पहचान पर आधारित थी जिसे मान्यता के लिए उदारवाद के पश्चिमी आदर्शो की कोई आवश्यकता नहीं थी। पहचान का यह सशक्त भाव उन नीतियों में भी झलकता है जो उनके नेतृत्व में भारत ने अपनाई थीं। पोखरण परमाणु परीक्षणों ने जहां भारत की शोध एवं विकास की क्षमताओं का प्रदर्शन किया तो इस अविस्मरणीय क्षण पर उनके भाषण में भारत की पहचान शांति के ऐसे पैरोकार की उभरी जो बाहुबल में यकीन नहीं रखता। उनकी नीतियों ने ऐसे भारत की तस्वीर पेश की जो अपनी आंतरिक क्षमताओं को लेकर आत्मविश्वास से लबरेज है, जो आर्थिक प्रतिबंधों से जूझने के लिए तैयार है और साझेदारी के फायदों को भी समझता है। उन्होंने अमेरिका के साथ फायदेमंद साझेदारी की शुरुआत की और भारत-अमेरिका संबंधों की धुरी को हमेशा के लिए बदल दिया। 

वाजपेयी ने यह भी रेखांकित किया कि अंधविरोध अक्सर अपर्याप्त मूल्यांकन से उपजता है। यह पश्चिमी अर्थव्यवस्थाओं की एक समस्या है। अमेरिका में एक दशक बिताने और अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर शोध करने के अनुभव से मैं कह सकता हूं 215 वर्ष पुराने लोकतंत्र में जिन संस्थानों ने आकार लिया उनमें उचित निगरानी के बावजूद वहां भारी भ्रष्टाचार से इन्कार नहीं किया जा सकता। मुझे भ्रष्टाचार के हल्के-फुल्के वाकयों की भी याद है। एमोरी यूनिवर्सिटी में मेरे एक सहकर्मी ने मुझे बताया था कि 1960 के दशक में वह सिग्नल तोड़ने पर पुलिसकर्मी को रिश्वत देकर कैसे बच निकलते थे। आज वह ऐसे भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए अमेरिकी तंत्र में मौजूद उपायों को गिनाएंगे। वहां चालान काटने पर पुलिसकर्मी को करीब 500 डॉलर की राशि मिलती है। ऐसे में पुलिसकर्मी को चालान काटने से रोकने के लिए चालक को 500 डॉलर से अधिक की रिश्वत देनी पड़ेगी जो 100 डॉलर की उस राशि से काफी अधिक होगी जिसे अदालत में जमा कराकर वह चालान से कानूनी तौर पर मुक्त हो सकता है। इसके उलट विकासशील देशों में दूसरे तौर-तरीकों के चलते भ्रष्टाचार कायम है। इसके लिए व्यवहार में परिवर्तन करने होंगे।

वाजपेयी भारतीय लोकाचार की समृद्ध विरासत से जो जुड़ाव रखते थे उसे आज पुनर्जीवित करने की जरूरत है। शुरुआत के लिए शैक्षिक तंत्र को नई पीढ़ी को उन धर्मग्रंथों से भी रूबरू कराना चाहिए जिनमें हमारी समृद्ध विरासत और ज्ञान का खजाना समाहित है। आज भारत में स्कूली पढ़ाई ऐसे किसी अनुभव के बिना ही री हो जाती है। आम तौर पर लोगों का मोहभंग तब होता है जब अवसरों की कमी के साथ यह भावना बलवती होती है कि तंत्र अमीरों और ताकतवर लोगों की मुट्ठी में है। सभी के लिए अवसरों की समानता सुनिश्चित करने और न्यायिक तंत्र सभी के लिए एकसमान बनाने से इस भावना को दूर किया जा सकता है। राजनीति और व्यापार, इन दोनों ही क्षेत्रों में वंशवाद का प्रभाव कम करना होगा ताकि इसमें चरणबद्ध तरीके से कमी आए और दूसरों के लिए अवसर बढ़ सकें। इन पहलुओं के अनुरूप नीतिगत कदम उठाकर ही हम हम भारत को अटल बिहारी वाजपेयी के सपनों के भारत और विश्व गुरु के रूप में स्थापित कर सकते हैं।

(लेखक हैदराबाद स्थित इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस में प्रोफेसर हैं)