हर्षवर्धन त्रिपाठी। मनमोहन सिंह लगातार 10 वर्षो तक देश के प्रधानमंत्री रहे, लेकिन आज भी जब उनकी चर्चा होती है तो पहली छवि प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव की कैबिनेट में वित्त मंत्री के तौर पर उनके आर्थिक सुधारों की ही सामने आ जाती है। दरअसल ऑक्सफोर्ड से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट डिग्री प्राप्त करने वाले डॉ. मनमोहन सिंह को सरकार के साथ जोड़ने वाले थे तत्कालीन मिनिस्टर ऑफ फॉरेन ट्रेड ललित नारायण मिश्र। अब मिनिस्टर ऑफ फॉरेन ट्रेड को वाणिज्य मंत्री (कॉमर्स मिनिस्टर) के नाम से जाना जाता है।

आज के वाणिज्य मंत्रलय में डॉ. मनमोहन सिंह को बिहार के दिग्गज कांग्रेसी नेता ललित नारायण मिश्र ने वर्ष 1970 के आसपास सलाहकार के तौर पर जोड़ा था। कहा जाता है कि ललित नारायण मिश्र और डॉ. मनमोहन सिंह की मुलाकात भारत से अमेरिका की उड़ान में हुई थी और इसी छोटी सी मुलाकात में ललित नारायण मिश्र, डॉ. मनमोहन सिंह के आर्थिक ज्ञान से बेहद प्रभावित हुए। उसके बाद डॉ. मनमोहन सिंह लगातार कांग्रेस की सरकार में महत्वपूर्ण आर्थिक जिम्मेदारियां संभालते रहे।

वर्ष 1972-76 तक मनमोहन सिंह मुख्य आर्थिक सलाहकार और 1982-85 तक भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर रहे और 1985-87 में नीति आयोग प्रमुख रहे, लेकिन अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह को सबसे बड़ी पहचान मिलना अभी शेष था और भले ही 2004-2014 तक मनमोहन सिंह देश के प्रधानमंत्री रहे, लेकिन भारत के साथ संपूर्ण विश्व उनको सर्वश्रेष्ठ भूमिका में 1991 की पीवी नरसिंह राव की सरकार में वित्त मंत्री के तौर पर ही देखता है।

पूर्व प्रधानमंत्री नरसिंह राव के निर्देशन में वित्त मंत्री रहते मनमोहन सिंह के किए सुधारों ने भारत को उस समय के आर्थिक संकट से तो उबारा ही था, भारत की अर्थव्यवस्था की पूरी दिशा भी उन्होंने बदल दी थी और जिस भारत में आम लोगों के सपने तेजी से पूरा करने की ताकत दिखती है, उसकी बुनियाद तब के प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव के वित्त मंत्री रहते मनमोहन सिंह ने ही रखी थी। लेकिन अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह को जैसे ही राजनीति करने का संयोगवश अवसर मिला तो दुर्भाग्य से उन्होंने सबसे पहले अर्थशास्त्र के साथ ही इसकी शुरुआत की।

पीवी नरसिंह राव के महत्वपूर्ण योगदान को मनमोहन स्वीकारने से बचते रहे

डॉ. मनमोहन सिंह ने सबसे पहली राजनीति यही की कि जिन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव ने उन्हें वित्त मंत्री के तौर पर देश के सबसे बड़े आर्थिक सुधारों को करने का अवसर दिया, उन राव साहब के महत्वपूर्ण योगदान को मनमोहन सिंह सार्वजनिक तौर पर स्वीकारने से हमेशा बचते रहे। इस वजह से सोनिया गांधी के गांधी परिवार वाली कांग्रेसी हुकूमत में वह नंबर एक के नवरत्न हो गए। हालांकि कांग्रेस तेलंगाना इकाई के एक कार्यक्रम में मनमोहन सिंह ने सार्वजनिक तौर पर स्वीकारा कि पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव की ही वजह से 1991 के कड़े आर्थिक सुधार हो पाए, लेकिन नरसिंह राव की जन्म शताब्दी समारोह के उद्घाटन के अवसर पर भी मनमोहन सिंह सोनिया गांधी के प्रति ज्यादा निष्ठा दिखाने का अवसर छोड़ नहीं सके और कहा कि नरसिंह राव, राजीव गांधी की ही तरह गरीबों की बहुत चिंता करते थे।

मनमोहन भूल गए हैं कि वह मूलत: अर्थशास्त्री ही हैं

अब जब देश के गरीब किसानों को उनकी उपज की बेहतर कीमत देने के लिए और सरकारी जंजाल से निकलने के लिए मोदी सरकार तीन कृषि कानून लेकर आई है, तो मनमोहन सिंह यह पूरी तरह से भूल गए हैं कि वह मूलत: अर्थशास्त्री ही हैं और देश अभी भी उन्हें देश का प्रधानमंत्री होने से बहुत ज्यादा सम्मान देश का वित्त मंत्री होने के नाते देता है। वैसे तो भारत का प्रधानमंत्री बनने के पहले के अपने ही किसी भी बयान को मनमोहन सिंह ध्यान कर लें तो शायद ही तीनों कृषि कानूनों का विरोध कर पाएंगे, लेकिन इसी वर्ष जुलाई में नरसिंह राव के जन्म शताब्दी कार्यक्रम के उद्घाटन में फ्रांसीसी कवि और उपन्यासकार विक्टर ह्यूगो के हवाले से उन्होंने कहा था, जिस विचार का समय आ गया हो, दुनिया की कोई भी ताकत उसे रोक नहीं सकती। वर्ष 1991 में देश के आर्थिक सुधारों की ही तरह 2020 में कृषि कानूनों के लिए भी यही कहा जा सकता है कि जिस विचार का समय आ गया हो, उसे दुनिया की कोई ताकत रोक नहीं सकती।

कौशिक बसु और रघुराम राजन पर भी राजनीतिक लोभ हावी

मनमोहन सिंह की ही तरह मुख्य आर्थिक सलाहकार के तौर पर काम कर चुके कौशिक बसु और रघुराम राजन ने भी अर्थशास्त्र की समझ पर राजनीतिक लोभ को हावी होने दिया है। आर्थिक सर्वेक्षण 2011-12 के लेखक और तत्कालीन मुख्य आर्थिक सलाहकार कौशिक बसु ने कहा था कि किसी किसान को एपीएमसी मंडी के बाहर बेहतर कीमत मिल रही है तो उसे उसकी इजाजत होनी चाहिए। कौशिक बसु ने मुख्य आर्थिक सलाहकार के तौर पर उपज के आयात का भी सुझाव दिया था। और यही सुझाव 2012-13 के आर्थिक सर्वेक्षण में रघुराम राजन ने भी आगे बढ़ाया। थोक उपज प्रसंस्करण, बुनियादी ढांचे और खुदरा कारोबार के बीच एकरूपता, जुड़ाव होना चाहिए और ऐसा बाजार तैयार करने के लिए निजी क्षेत्र को मंज़ूरी दी जानी चाहिए।

मनमोहन ने अर्थशास्त्र के सिद्धांतों को तिलांजलि दे दी

कृषि मल्टीब्रांड रिटेल में विदेशी कंपनियों को खुला आमंत्रण देने की इच्छा रखने वाले दोनों अर्थशास्त्री अब नेता हो गए हैं। ठीक वैसे ही जैसे विद्वान अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री की कुर्सी मिलने के बाद अपने ही अर्थशास्त्र के सिद्धांतों को तिलांजलि दे दी और आर्थिक सुधारों पर सोनिया गांधी के राजनीतिक समाजवाद को हावी होने दिया।

भारत में भी सब्सिडी खत्म नहीं हो रही 

दरअसल कौशिक बसु कह रहे हैं कि छोटे किसानों को बेहतर फसल की तरफ जाने के लिए आर्थिक मदद दी जानी चाहिए, किसानों की ऐसी मार्केटिंग समितियां बनानी चाहिए, जिससे किसान बेहतर भाव पा सकें, प्रशिक्षण मिले ताकि किसान मार्केटिंग प्रक्रिया का हिस्सा बन सकें, समय से उन्हें कर्ज मिल सके। कमाल की बात है कि यही सबकुछ करने के लिए ही तीनों कृषि कानूनों को लागू किया जा रहा है। बसु दलील दे रहे हैं कि विश्व भर में किसानों को सब्सिडी सरकार देती है और बिना कोई ऐसा ही तंत्र तैयार किए इस एमएसपी यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य की सब्सिडी को खत्म करने से भारतीय किसानों की स्थिति ज्यादा खराब हो सकती है। जबकि सच्चाई यह है कि भारत में भी सब्सिडी खत्म नहीं हो रही है।

अर्थव्यवस्था और किसान के भले के कानून को कुतर्को से खारिज कर रहे

अर्थशास्त्री से यह उम्मीद की जाती है कि बिना किसी राजनीतिक, लोकलुभावन दबाव के तर्क और तथ्य के आधार पर लोककल्याण के लिए सुझाव देगा, लेकिन दुर्भाग्यवश राजनीतिक अवसरवाद के शिकार होकर डॉ. मनमोहन सिंह, कौशिक बसु और रघुराम राजन जैसे बड़े आर्थिक विद्वान अर्थव्यवस्था और किसान के भले के कानून को कुतर्को से खारिज करने की कोशिश कर रहे हैं।