महिला और पुरुष का भेद पुरातन है। पहले जीव एक सेल के गैमेट (युग्मक) होते थे। ये एकलिंगीय और केवल एक कोशिका से बने होते थे। इनमें नर और मादा नहीं होते थे। फिर भी दो गैमेट के संयोग से नए गैमेटों का सृजन होता था। बड़े गैमेट अपनी जगह स्थिर रहने लगे, जबकि छोटे गैमेट तेजी से इधर-उधर चलकर उनके साथ जुटने लगे। ये बड़े गैमेट समयक्रम में मादा बने और छोटे गैमेट नर बने। आज भी पुरुषों की तुलना में महिलाओं की शारीरिक दृढ़ता ज्यादा होती है। शायद यही कारण है कि अमेरिका में महिलाओं की औसत आयु 80 वर्ष है, जबकि पुरुषों की औसत आयु मात्र 70 वर्ष है।

अचेतन वार्तालाप

महिलाएं छोटे बच्चों को इसलिए आसानी से पाल पाती हैं, क्योंकि वे उनसे अचेतन वार्तालाप कर सकती हैं और बातें करते रहना उनके लिए आसान होता है। गणित आदि तार्किक विचारों और संकल्प की पूर्ति में पुरुष ज्यादा निपुण होते हैं। जैसे-जैसे जीवों का विकास होता गया वैसे-वैसे नर और मादा के अंतर बढ़ते गए और आज यह अंतर मनोवैज्ञानिक भी हो गया है। हम यह मान सकते हैं कि जिस प्रकार बीते अरबों वर्षों में यह अंतर बढ़ता गया है, आगे भी यह बढ़ता ही जाएगा।

परिवार की संरचना

21वीं सदी के परिवार की संरचना को समझने का दूसरा आधार नई तकनीकें हैं। बिजली से जलने वाले बल्ब एवं बिजली से ही चलने वाली मिक्सी और वाशिंग मशीन, पाइप से आने वाला पानी, गैस से चलने वाले स्टोव आदि उपकरणों से घरेलू कार्य सरल हो गए हैैं। पहले परिवार चलाने के लिए एक व्यक्ति को पूरा समय इन कार्यों को करने के लिए देना पड़ता था। अब ये कार्य घंटे दो घंटे में संपन्न हो जाते हैं। इसलिए महिला के लिए अब पर्याप्त समय दूसरे कार्यों के लिए उपलब्ध हो गया है।

बराबर का योगदान

21वीं सदी के परिवार की संरचना हमें इन दोनों कारकों के बीच खोजनी है। एक यह कि महिला और पुरुष के बीच अंतर बढ़ता जाएगा और दूसरा यह कि गृह कार्य के लिए एक व्यक्ति को अपना पूर्ण समय देना अब जरूरी नहीं रह गया है। इसी परिप्रेक्ष्य में हम आज के प्रचलित परिवार के नए ढांचे के सुझावों का आकलन कर सकते हैं। एक सुझाव है कि महिला और पुरुष गृह कार्य में बराबर का योगदान करें जैसे भोजन पकाने अथवा कपड़ा धोने के लिए। यह महिला और पुरुष अथवा नर और मादा के बीच बढ़ते अंतर के ऊपर बताए सिद्धांत के विरुद्ध बैठता है। अरबों वर्षों की जीवों की यात्रा बताती है की नर और मादा का अंतर बढ़ता गया है। एक कोशिका वाले गैमेट में केवल आकार या वजन का अंतर था। पौधों में केवल फूल के आकार में अंतर होता है। मनुष्य में मनोवैज्ञानिक अंतर भी हो गया है। आने वाले समय में यह अंतर बढ़ेगा। इसलिए पुरुष और स्त्री के कार्यों में भी अंतर बढ़ेगा। दोनों घर का बराबर काम करें, यह नहीं चलेगा।

महिला अर्थोपार्जन

दूसरा सुझाव है कि महिला अर्थोपार्जन करे। तमाम अध्ययनों से यह प्रमाणित होता है कि स्वतंत्र आय हासिल करने से महिला का सबलीकरण होता है और उसका मानसिक स्वास्थ्य भी सुधरता है, लेकिन दूसरे अध्ययनों से यह भी पता लगता है कि पूर्णकालिक कार्य करने वाली महिला पर दोहरा वजन आ पड़ता है। कनाडा के परिवारों पर किए गए एक अध्ययन में पाया गया है कि पूर्णकालिक कार्य करने वाली महिलाएं 25 मिनट कम सो पाती हैं। इसलिए यह सुझाव गृह कार्य से मुक्ति के ऊपर बताए गए सिद्धांत के विरुद्ध बैठता है। इस सुझाव में महिला को गृह कार्य तो कम करना पड़ता है, लेकिन कम गृह कार्य को पूर्णकालिक कमाई के साथ करने से उसके ऊपर कुल कार्य का वजन पड़ता है। इसलिए ये दोनों सुझाव मानव विकास की मूल धारा के विपरीत हैं और ये लंबे समय तक चल पाएंगे ऐसा नहीं लगता है।

आर्थिक असमानता

प्रश्न है कि इन सुझावों के असफल होने के बावजूद इन्हें क्यों बढ़ाया जा रहा है। ऐसा समझ आता है कि महिला और पुरुष के बीच बराबरी की बात छेड़कर समाज में व्याप्त आर्थिक असमानता से हमारा ध्यान हटा दिया जा रहा है। जिस प्रकार एक चतुर बंदर ने दो मूर्ख बिल्लियों की लड़ाई के बीच उनकी रोटी चट कर ली थी अथवा जिस प्रकार एक चतुर उद्यमी दो ट्रेड यूनियनों को आपस में लड़ाकर लाभ कमाता है उसी प्रकार महिला और पुरुष को घर के अंदर बराबरी का मंत्र देकर समाज में बढ़ती आर्थिक असमानता से हमारा ध्यान हटा दिया जा रहा है। हर वर्ष समाचार छपते हैं कि देश में अरबपतियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है, लेकिन इस बढ़ती असमानता के ऊपर तनिक भी सामाजिक हलचल नहीं होती, क्योंकि समाज ने परिवार के अंदर महिला और पुरुष के बीच बराबरी हासिल करने को प्राथमिक बना दिया है और सामाज में गरीब और अमीर के बीच बढ़ती असमानता को छिपा दिया है ताकि अमीरों की बढ़ती आय से समाज का ध्यान हट जाए।

पार्ट टाइम कार्य

ऊपर दिए गए दोनों कारकों को देखते हुए आने वाले समय में परिवार का रूप दूसरा बनाया जा सकता है। वह यह कि महिला को पार्ट टाइम कार्य के लिए अवसर प्रदान किए जाएं। साथ में उसके द्वारा किए गए गृह कार्य को सम्मानित किया जाए। ऐसा करने से महिला और पुरुष का जो बढ़ता अंतर है वह उपयोगी सिद्ध होगा। महिला की बच्चों को पलने की जो शक्ति है उसका समाज को भरपूर लाभ मिलेगा। महिला बच्चों के पालन में उनकी मनोवैज्ञानिक परवरिश कर सकेगी। साथ-साथ पार्ट टाइम कार्य करने से महिला का आर्थिक सबलीकरण भी होगा। उसके ऊपर दोहरा बोझ भी नहीं आएगा।

आर्थिक सबलीकरण

मेरे एक जानकर मित्र की पत्नी ब्रिटिश सरकार के लिए कार्य करती हैं। बच्चे पैदा होने के दो साल बाद तक उन्होंने सप्ताह में केवल दो दिन कार्य किया, शेष पांच दिन उन्होंने अपने बच्चों और घर को समर्पित किया। ऐसा करने से उनका आर्थिक सबलीकरण भी हुआ और उन पर कार्य का दोहरा बोझ भी नहीं पड़ा। हमें इस पर विचार करना होगा कि महिलाओं के लिए सुलभ समय और दिन के कार्य के अवसर प्रदान करें। जैसे गार्ड का कार्य आठ घंटे की जगह चार घंटे की शिफ्टों में किया जा सकता है अथवा महिलाओं को सप्ताह में दो या तीन दिन कार्य करने और इतने ही दिन अवकाश लेने की सुविधा दी जा सकती है। इस प्रकार के परिवर्तन से महिला और पुरुष का जो मनोवैज्ञानिक अंतर है उसका समाज को लाभ मिलेगा और नई तकनीकों से महिला का वास्तविक सबलीकरण होगा न कि उसे दोहरे बोझ से लाद दिया जाएगा।

( लेखक वरिष्ठ अर्थशास्त्री एवं आइआइएम बेंगलुरु के पूर्व प्रोफेसर हैं )